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भारत के शक्तिशाली होने से आशय संहारक नहीं, संरक्षक होना है – भय्याजी जोशी

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कर्णावती, गुजरात। हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा संस्थान की ओर से आयोजित हिन्दू आध्यात्मिक सेवा मेला के उद्घाटन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य भय्याजी जोशी ने कहा कि हम सारी दुनिया को आश्वस्त करते हैं कि भारत के शक्तिशाली होने से आशय, भारत के समाज का शक्तिशाली होना संहारक नहीं, संरक्षक होना है। दुर्बलों की रक्षा करने वाला है, असहाय लोगों को सहायता देने वाला है। भारत के अलावा विश्व में ऐसा कोई देश नहीं है जो सारी दुनिया को साथ लेकर चले। यह हमारी अध्यात्म की कल्पना है, वसुधैव कुटुम्बकम की हमारी कल्पना है। हम सारे विश्व को परिवार मानते हैं।

गुरुवार को हिन्दू आध्यात्मिक सेवा मेला का उद्घाटन हेलमेट सर्किल के समीप गुजरात विश्वविद्यालय के मैदान में भय्याजी जोशी व केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल, चाणक्य सीरियल के चंद्रप्रकाश द्विवेदी सहित गणमान्य अतिथि-संतों की उपस्थिति में हुआ। 23 से 26 जनवरी तक चलने वाले मेले में विभिन्न सांस्कृतिक, धार्मिक और रचनात्मक विषयों का सुंदर संगम होगा।

भय्याजी जोशी ने कहा कि शांति का मार्ग समन्वय से होकर जाता है। सबको साथ लेकर चलने के सिद्धांत वाला ही शांति स्थापित करता है। सभी सम्प्रदाय अपनी-अपनी बातों के अनुसार चल सकते हैं, लेकिन अन्यों को चलने की स्वतंत्रता नहीं देंगे, तो शांति कहां से रहेगी। विश्व पर उसी का प्रभाव रहेगा जो सभी को साथ लेकर चलेगा, वही विश्व का संचालन कर सकता है। विश्व को न तो भौतिक संपदा वाला प्रभावित कर पाएगा, ना ही पर्याप्त संख्या बल वाला विश्व को संचालित कर सकता है।

उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश में हमारा जन्म हुआ है, यह पुण्यभूमि है, यह देवताओं की भूमि है, यह संत और सन्यासियों की भूमि है। त्याग और समर्पण की सीख देने वाली यह भूमि है। हमारी पुरानी पीढ़ी ने तो अंग्रेजों की गुलामी का अनुभव किया है। हम सभी को स्वतंत्र देश के नागरिक कहलाने का भाग्य मिला है। देश में एक परिवर्तन का चक्र प्रारंभ हुआ है। वर्तमान में हम विश्व के मंच पर अपने देश का सम्मान होता देख रहे हैं, इसके साक्षी होने का भाग्य हम सभी को मिला है। संतों- महापुरुषों की हम सबसे अपेक्षा है कि हम इस परिवर्तन के मूक साक्षी न बनें, बल्कि इस परिवर्तन को लाने के लिए सक्रिय सहयोगी बनें।

भय्याजी जोशी ने कहा कि दुनिया भर में एक अनावश्यक भ्रम है कि सेवा करने वाले कुछ चयनित लोग होते हैं। परंतु, भारत में प्राचीन परंपरा है और आज भी लगभग एक करोड़ लोग अन्न दान पाते हैं। वे चाहे गुरुद्वारों के लंगर में जाते हों, भण्डारों में जाते हैं, कई प्रकार की व्यवस्थाओं के माध्यम से लोग प्रसाद के रूप में स्वीकार करते हैं। लोग इस कार्य को पुण्य मानते हैं। आज हम अनुभव कर रहे हैं कि भारत में धार्मिक-आध्यात्मिक संस्थाएं केवल पूजा-पाठ, कर्मकांड या अनुष्ठान तक सीमित नहीं रही। बल्कि विद्यालय, चिकित्सालय, संस्कार केन्द्र की अच्छी व्यवस्थाएं, वेदों की शिक्षा देने वाले गुरुकुल आदि कई प्रकार के काम आज संतों के मार्गदर्शन में हो रहे हैं, जो नई बात नहीं है।

उन्होंने कहा कि जब हम हिन्दू कहते हैं तो कई बातों का समावेश होता है, हिन्दू यानी धर्म है, अध्यात्म है, एक विचार है, जीवन-शैली है, जीवन मूल्य है और एक सेवा है। हिन्दू केवल मंदिरों में जाने वाला या सिर्फ कर्मकांड करने वाला नहीं है, बल्कि सभी प्रकार के पहलुओं से हिन्दू की पहचान बनी है। धर्म की बात करते हैं तो उसका केन्द्र बिन्दु मानवता है, संबंध कर्तव्य से जोड़ा जाता है, परस्पर सहयोग-सहकार से जोड़ा जाता है, सत्य और न्याय की बात करते हैं। धर्म की रक्षा के लिए चाहे जिस प्रकार के कदम उठाने के लिए हिन्दू समाज हमेशा सिद्ध रहा है। जिस काम को अधर्म की श्रेणी में डाला है, ऐसे कार्य भी धर्म की रक्षा के लिए करने पड़ते हैं, हमारे महापुरुषों ने किए हैं। इसका उदाहरण महाभारत का युद्ध है। कौरवों का पक्ष अधर्म का था, पांडवों का पक्ष धर्म था। युद्ध के सारे नियम तो कौरवों ने पालन किए, लेकिन पांडवों ने यह नियम एक तरफ रखते हुए अधर्म पर विजय  प्राप्त करने के लिए अपने निजी सभी बातों को समर्पित करते हुए अधर्म को समाप्त करने का काम किया। यह धर्म और अधर्म का विवेक जो सिखाता है, वह धर्म है। अहिंसा का तत्व है, लेकिन अहिंसा की रक्षा करने के लिए हिंसा का भी आधार लेना पड़ता है। अन्यथा अहिंसा का तत्व कैसे सुरक्षित रहेगा। यह हमारे महापुरुषों ने मार्गदर्शन किया है। जब हम कहते हैं कि धर्म एक अध्यात्म है तो यह एक साधना है। आज भी हिमालय की पहाड़ियों में, जंगलों में, दूर-दराज में, जिसे हम देख नहीं पाते हैं ऐसे महापुरुष निरंतर अपनी साधना में लगे हुए हैं। इनकी साधना भारत को सुरक्षित करने का काम करती आ रही है। ऐसे कई संत हैं, जो अपनी आध्यात्मिक साधना से इस पवित्र भूमि की रक्षा कर रहे हैं।

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