शुभम कुमार
प्रमाणिकता के दौर में कसौटी पर सब कुछ परखा जाता है, चाहे वो “संबंध हो या प्रण”. ज्यादा अतीत में नहीं जाएंगे, केवल वर्ष 2018 से लेकर वर्तमान तक भारत-चीन संबंधों में कूटनीतिक, राजनीतिक, सामरिक, समाजिक तथा औद्योगिक आदान-प्रदान से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा करेंगे. युवा एवं खेल मंत्रालय के तत्वाधान में एक दल का चीन दौरा वर्ष 2018 में सुनिश्चित हुआ, जिसमें युवाओं का दल दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने की मुहिम का हिस्सा बना, जिसमें मैं भी शामिल रहा. मैं जब चीन के दौरे का हिस्सा बना तो मुझे बीजिंग, वुहान, शंघाई, कनमिंग, ग्वैंजो़ का दौरा करने का मौका मिला. पेकिंग विश्वविद्यालय में भारत चीन संस्कृति पर विचार गोष्ठी में भाग लिया. बुलेट ट्रेन कारखाने तथा वुहान विश्वविद्यालय का भी भ्रमण किया.
जब भारत-चीन संबंध को लेकर बात करनी हो तो इसमें यह याद रखना ही होगा कि लगभग विश्व की आधी आबादी को खुद में समेटे ये दोनों देश आज विश्व पटल पर आर्थिक और सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण भूमिका में हैं. एक तरफ जहां चीन पूरे विश्व में अपने सस्ते उत्पादों के जरिए बाजार पर एकाधिकार बनाने में कामयाब होता जा रहा है तो वहीं भारत विश्व में सबसे बड़े उपभोक्ता बाजार का केन्द्र बिंदु है, जिसकी क्षमता यह है कि यदि जिस देश के उत्पादों का बहिष्कार भारत कर दे तो उस देश की जीडीपी धड़ाम से नीचे गिर जाती है. उदाहरण के तौर पर मलेशिया को लिया जा सकता है, जब भारत पॉम ऑयल के आयात पर प्रतिबंध लगाता है तो उसकी अक्ल ठिकाने आने लगती हैं और वह भारत की शर्तों पर व्यापार करने को राजी होता है. वहीं चीन अपने उत्पादों का बड़े पैमाने पर डंपींग के जरिए अन्य देशों के उत्पादों की तुलना में सस्ता माल उपलब्ध करा पाने में कामयाब हो जाता है, जिससे प्रतिस्पर्धा के इस दौर में चीन को कामयाबी मिलती चली जा रही है.
रक्षा अनुसंधान में दोनों देशों की अपनी महत्ता है, एक तरफ कागज पर मजबूत दिखने का दावा करने वाला चीन है, तो दूसरी तरफ मजबूत फौलादी इरादों तथा राष्ट्रभक्ति की भावना से ओत-प्रोत भारत और उसके वीर जवान हैं. हाल ही में गलवान के बलवान के पराक्रम को पूरा विश्व देख चुका है.
कूटनीति के स्तर का आंकलन इससे किया जा सकता है कि वैश्विक राजनीतिक और सामरिक महत्व के दो महत्वपूर्ण ध्रुव अमेरिका और रूस दोनों हर हाल में भारत के पक्ष में खड़े हैं तो चीन अलग थलग पड़ चुका है. संयुक्त राष्ट्र संघ में 180 से भी ज्यादा देश प्रत्यक्ष रूप में समर्थक हैं, इससे भारत की मौजूदा वैश्विक कूटनीति तथा राजनीति का स्पष्ट आंकलन किया जा सकता है.
धार्मिक बिन्दु पर विस्तृत चर्चा के बजाय इसका सीधा आंकलन इससे किया जा सकता है कि जिस बौद्ध धर्म के लाखों करोड़ों अनुयायी चीन में हैं, उस बौद्ध धर्म का दर्शन भारत की पावन भूमि पर ही हुआ है.
अब आते हैं “आत्मनिर्भरता का प्रण”, सीधे शब्दों में कहें तो आत्मनिर्भरता यानि अपनी आवश्यकताओं को स्वयं पूरा करने के योग्य बनना. चीन-भारत के संबंध कठिन दौर से गुजर रहे हैं, विगत कुछ वर्षों से सीमा पर झड़प की खबरें आती रहती है. गलवान घाटी की घना ने संपूर्ण भारत को उद्वेलित कर दिया. देश में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए तथा चीन से बदला लेने एवं चीनी उत्पादों के बहिष्कार का अभियान चल पड़ा. प्रधानमंत्री ने वोकल फॉर लोकल आत्मनिर्भर भारत का आह्वान किया. सरकार ने चीन के 59 एप्स को बंद किया.
आत्मनिर्भरता के इस प्रण में विदेशी उत्पादों के उपभोग पर निर्भरता कम करने तथा स्वदेशी उत्पादों के उपभोग को बढ़ावा देने एवं एकजुट होकर कार्य करने का आवाह्न लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने किया. युवाओं को स्वावलंबी बनाने, उसे स्वरोजगार की ओर प्रेरित करने पर विशेष बल दिया जा रहा है. बीस लाख करोड़ रुपए के आत्मनिर्भर पैकेज के माध्यम से विकास को गति देने का प्रयास है जो आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देगा. स्थानीय वस्तुओं को ब्रांडिंग के माध्यम से वैश्विक बनाया जा सकता है, इस दिशा में भी काम तेजी से आगे बढ़ रहा है. वोकल फॉर लोकल के माध्यम से योजना को सफल बनाने में मदद मिलेगी.