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भारतीय महिलाओं को वैदिक काल से ही आध्यात्मिक एवं शैक्षणिक अधिकार प्राप्त थे

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नारी शक्ति संगम – महिला कल, आज और कल का पूर्वी दिल्ली में आयोजन

नई दिल्ली. महाराजा अग्रसेन कॉलेज, वसुंधरा एन्क्लेव में “नारी शक्ति संगम : महिला कल, आज और कल” का आयोजन किया गया. पूर्वी विभाग के नारी शक्ति संगम के उद्घाटन सत्र का विषय “भारतीय चिंतन में महिला” था, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. सुष्मिता पांडे जी (राष्ट्रीय महिला प्रमुख, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना समिति) ने कहा कि वैदिक काल से ही भारतीय महिलाओं को आध्यात्मिक अधिकार एवं शैक्षणिक अधिकार प्राप्त थे. कई महिलाएं विदुषी हुई तथा वेदों में भी उनकी ऋचाएं हैं. प्रत्येक संस्कृति में कुछ सनातन प्रतिमान होते हैं, जिसको प्रथम धर्माणी भी कहा गया है. वैदिक युग में अनंत की खोज में सभी लोग लगे थे. महिलाएं भी उसमें सहभागी थीं. विश्वबारा, मैत्रेयी, गार्गी, अपाला, घोषा आदि उस युग की विदुषी महिलाओं के नाम हमने सुने हैं. ये सब वैदिक ज्ञान विज्ञान में पारंगत थीं, यही नहीं वैदिक काल की सामान्य स्त्रियाँ भी वैदिक ज्ञान से परिचित थीं. इसलिए वैदिक युग को गरिमामयी काल कहा गया है. इसी तरह उस काल में स्त्रियाँ शास्त्र विद्या के साथ शस्त्र विद्या में भी निपुण होतीं थीं. आज जब हम किसी सभ्यता या संस्कृति का आकलन करते हैं तो उसके मूल्य क्या हैं और वो किस प्रकार से क़ानून में अभिव्यक्त हो रहे हैं, उसे देखना चाहिए. इसलिए सामाजिक मूल्यों और सामाजिक प्रतिमानों से सभ्यता का आकलन करना होता है, सामाजिक तथ्यों से नहीं. क्योंकि प्राचीनतम काल से मानव तो मानव ही है, सभी प्रकार के दोष उसमें भी हैं. वो तथ्य तो रहेंगे ही, लेकिन संविधान क्या है, मूल्य क्या हैं उसे देखना चाहिए. उससे ही हमको किसी सभ्यता का आकलन करना चाहिए, इसमें भारतीय सभ्यता और संस्कृति सर्वश्रेष्ठ है.

प्रथम सत्र की मुख्य अतिथि कारगिल युद्ध में महावीर चक्र से सम्मानित योद्धा बलिदानी कैप्टन अनुज नय्यर जी की माता मीना नय्यर ने कहा कि नारी खुद में ही बहुत शक्तिशाली है. अपने जीवन से जुड़े आघातों से आगे निकलकर हर परिस्थिति से जूझने के बारे में महिलाओं को बताया. चर्चा सत्र का विषय “वर्तमान में महिलाओं की स्थिति, प्रश्न एवं करणीय कार्य” था.

समापन सत्र का विषय “भारत के विकास में महिलाओं की भूमिका” रहा. मुख्य वक्ता पद्मश्री निवेदिता रघुनाथ भिड़े (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी) ने कहा कि हमें स्वयं को काबिल व सक्षम बनाकर हर परिस्थिति का सामना करने वाली महिला बनना है. हमारे देश में अनेकों महिलाओं के ऐसे जीवन चरित्रों को बनाने का काम राष्ट्र सेविका समिति कर रही है. जब हम कोई अच्छा कार्य हाथ में लेते हैं तो अपने आप आत्मशक्ति प्रकट होती है. उस आत्मशक्ति के बल पर हमें अपनी तथा समाज की सुरक्षा करनी है. भारत का हर व्यक्ति दार्शनिक है, लेकिन उससे समाज में तभी प्रभाव पड़ेगा जब हमारे कर्तृत्व में वह दर्शन प्रकट है. नारी शक्ति संगम में आह्वान किया कि अपनी आत्मशक्ति की अनुभूति करके परिवार, समाज, राष्ट्र के हित में उसका प्रकटीकरण करें.

पूर्वी दिल्ली की पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) आईपीएस अधिकारी अमृता गुगुलोथ ने समापन सत्र कहा कि सभी महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में पता होना चाहिए. क़ानून आपको क्या दे रहा है, आपके लिए क्या कर सकता है, इन सारी बातों का महिलाओं को ज्ञान होना चाहिए. अगर किसी महिला या बालिका पर कोई मुसीबत आ गयी तो उनको पता होना चाहिए. उन्होंने पुलिस सेवा के अनुभव साझा करते हुए बताया कि आए दिन सामने आ रहे 13 से 17 वर्ष की बालिकाओं के घर से भागने के केस समाज के लिए बड़ी चिंता का विषय है. चोकलेट, रोज, टेडी बेयर, बाइक की सवारी के आकर्षण में अबोध बालिकाएं परिणाम के खतरे से अनभिज्ञ अनजान युवकों के हाथों अपना भविष्य समाप्त कर देती हैं. ज्यादातर यह निम्न आय वर्ग के घर जहाँ माता पिता दोनों आजीविका के लिए जाते हैं, वहां देखा गया है. बालिकाओं को उनके भविष्य के बारे में नहीं पता होता कि इस कदम से वह आगे कितनी बड़ी मुसीबत में पड़ जाएंगी. इसलिए माताओं तथा महिला संगठनों को इस आयु वर्ग की बालिकाओं की जागरूकता के लिए विशेष प्रयास करने चाहिए.

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