चित्तौड़. विद्या भारती राजस्थान क्षेत्र के संगठन मंत्री शिवप्रसाद ने कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत की शिक्षा का केंद्र पश्चिम ही रहा क्योंकि अंग्रेजों ने भारतीयों के मस्तिष्क में इस बात को गहराई तक बैठा दिया कि जो कुछ अच्छा है और श्रेष्ठ है, वह पश्चिम में ही है. भारत तो सदैव से ही अनपढ़ लोगों का देश रहा. वे विद्या भारती चित्तौड़ प्रांत की वेबसाइट और ई-पत्रिका के लोकार्पण कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश, स्वतंत्रता के पश्चात प्रारंभिक नेतृत्वकर्ताओं ने भी अंग्रेजों के पढ़ाए गए इस पाठ को अक्षरश: स्वीकार कर लिया. यही कारण रहा कि स्वतंत्रता के बाद से अब तक भारत की शिक्षा पश्चिम की नकल पर ही आधारित रही. जबकि भारत सदियों से संपूर्ण विश्व के लिए शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा. नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय इसके महत्वपूर्ण प्रमाण हैं. शिक्षा नीति 2020 एक बार फिर भारत केंद्रित शिक्षा की बात करती है जो एक स्वागत योग्य कदम है क्योंकि भारत केंद्रित शिक्षा से ही भारत का भाग्योदय संभव है.
उन्होंने कहा कि विद्या भारती अपने जन्म से अब तक भारत केंद्रित संस्कार युक्त शिक्षा के लिए ही प्रयत्नशील है. शिक्षा नीति-2020 के कई प्रावधान जैसे मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा, शिशु केंद्रित शिक्षा, कौशल विकास आदि सभी विषयों पर विद्या भारती शिक्षण संस्थान द्वारा संचालित सभी विद्यालयों में पहले से ही प्रयत्न किए जाते रहे हैं.
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दैनिक भास्कर अजमेर के संपादक रमेश अग्रवाल ने कहा कि शिक्षक और पत्रकार की भूमिका एक जैसी ही है, जहां एक शिक्षक अपनी कक्षा के बालकों का प्रबोधन करता है. वहीं पत्रकार का भी दायित्व है कि वह संपूर्ण समाज का प्रबोधन करे. लेकिन शिक्षक और पत्रकार तभी प्रभावी हो सकते हैं, जब उनके पास स्वयं का नैतिक और चारित्रिक बल हो. चरित्र बल के अभाव में न ही कोई शिक्षक सफल हो सकता है और ना ही कोई पत्रकार. अतः जो सुधार एक शिक्षक अपने विद्यार्थी और एक पत्रकार अपने समाज में चाहता है. यह आवश्यक है कि पहले वे सभी बातें स्वयं शिक्षक और पत्रकार के जीवन में समाज अनुभव करे, तभी यह सभी अच्छाइयां समाज में स्थापित हो पाएंगी.
जयदेव पाठक स्मृति सम्मान के बारे में विद्या भारती चित्तौड़ प्रांत के सचिव किशन गोपाल कुमावत ने बताया कि श्रद्धेय जयदेव पाठक राजस्थान में विद्या भारती के संस्थापक लोगों में से एक थे. उनका सरल, त्यागपूर्ण और शिक्षा के लिए समर्पित जीवन प्रत्येक शिक्षक के लिए अनुकरणीय है. इसी प्रेरणा के लिए प्रतिवर्ष विद्या भारती की योजना से तीन श्रेष्ठ आचार्य और तीन प्रधानाचार्य इस पुरस्कार के लिए चयनित किए जाते हैं.
इस वर्ष यह पुरस्कार आचार्यों में गणेश लाल लोहार झाडोल उदयपुर, जीवराज तेली बेगू चित्तौड़, पंकज बैरागी पिडावा झालावाड़ को तथा प्रधानाचार्य में सुरेश चंद्र पालोदा बांसवाड़ा, अविनाश कुमार शास्त्री नगर भीलवाड़ा तथा भूपेंद्र उबाना पुष्कर मार्ग अजमेर को दिया गया है.