नई दिल्ली. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने महत्वाकांक्षी स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SpaDeX) मिशन सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया. मिशन को इसरो के पीएसएलवी-सी60 रॉकेट के माध्यम से प्रक्षेपित किया गया. भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा रहा है क्योंकि यह कक्षीय डॉकिंग में देश की तकनीकी क्षमता को स्थापित करने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया है.
इसरो ने प्रक्षेपण के समय में मामूली बदलाव करते हुए पूर्व निर्धारित समय रात 9:58 बजे के बजाय रात 10 बजे लॉन्च किया. रिपोर्ट्स के अनुसार, रविवार रात 9 बजे से शुरू हुई 25 घंटे की उलटी गिनती के साथ लॉन्च की तैयारी समय पर पूरी हुई. प्रक्षेपण की घोषणा करते हुए इसरो ने कहा, “SpaDeX भारत की कक्षीय डॉकिंग क्षमता स्थापित करने का एक महत्वाकांक्षी मिशन है, जो भविष्य में मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशनों और उपग्रह सेवाओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होगा”.
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SpaDeX (स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट) मिशन भारत के लिए अंतरिक्ष तकनीकी विकास के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि है. इसका मुख्य उद्देश्य कक्षीय डॉकिंग (Orbital Docking) की प्रक्रिया को समझना और इसमें दक्षता हासिल करना है. यह तकनीक मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन, अंतरिक्ष स्टेशन निर्माण और उपग्रह सेवाओं में बेहद उपयोगी है.
SpaDeX मिशन से भारत को भविष्य में अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यानों के बीच ईंधन भरने, मरम्मत और अन्य सेवाओं की क्षमता विकसित करने में मदद मिलेगी.
इसरो ने अपने भरोसेमंद पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) का उपयोग किया, यह प्रक्षेपण यान इसरो के सबसे विश्वसनीय रॉकेटों में से एक है और इसे अब तक दर्जनों सफल प्रक्षेपणों का श्रेय दिया जाता है.
SpaDeX मिशन को इसरो के भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक आधारभूत कदम के रूप में देखा जा रहा है. कक्षीय डॉकिंग तकनीक न केवल मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन (जैसे गगनयान) के लिए आवश्यक है, बल्कि अंतरिक्ष में उपग्रहों की मरम्मत, ईंधन भरने और अन्य सेवाओं में भी क्रांतिकारी माना जा रहा है. SpaDeX मिशन के प्रक्षेपण के साथ भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान और तकनीक के क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है.
मिशन के तहत पीएसएलवी रॉकेट से दो छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित किया है. ये उपग्रह 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर डॉकिंग और अनडॉकिंग करेंगे. मिशन में शामिल दो स्पेसक्राफ्ट में से एक का नाम है टारगेट यानी लक्ष्य है, दूसरे का नाम चेजर है यानी पीछा करने वाला. लॉन्च के करीब 10 दिन बाद डॉकिंग प्रक्रिया शुरू होगी. यानी टारगेट और चेजर को आपस में जोड़ा जाएगा. करीब 20 किलोमीटर की दूरी से चेजर स्पेसक्राफ्ट टारगेट स्पेसक्राफ्ट की तरफ बढ़ेगा. इसके बाद दूरी घटते हुए 5 किलोमीटर तक पहुंचेगी, फिर डेढ़ किलोमीटर होगी, इसके बाद 500 मीटर होगी. जब चेजर और टारगेट के बीच की दूरी 3 मीटर होगी. तब डॉकिंग यानी दोनों स्पेसक्राफ्ट के आपस में जुड़ने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. चेजर और टारगेट के जुड़ने के बाद इलेक्ट्रिकल पावर ट्रांसफर किया जाएगा. इस पूरी प्रक्रिया को धरती से ही कंट्रोल किया जाएगा. इसरो के इस मिशन पर भविष्य के स्पेस प्रोग्राम टिके हैं.