‘गोमय वसते लक्ष्मी’ अर्थात गाय के गोबर में लक्ष्मी जी निवास करती हैं. इस पर हमारा दृढ़ विश्वास है. अर्थात इसका कारण भी वैसा ही है. गोमय किसानों को आर्थिक आय देती है. विष रहित और प्रदूषण रहित गोबर से बने कंडे पूजापाठ के समय होम-हवन के लिए उपयोग होते हैं. इसका धुआं हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करता है. ऐसे व्यापक और पर्यावरण हितैषी गोमय का उपयोग अब गणेश प्रतिमा बनाने के लिए किया जा रहा है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गौ-सेवा गतिविधि, कोकण प्रान्त ने इस साल पहली बार पर्यावरण संवर्धन और संरक्षण का ‘श्रीगणेश’ किया. १०० प्रतिशत गाय के गोबर और गौमूत्र से बनी भगवान गणेश की इको फ्रेंडली मूर्ति गुजरात प्रान्त से लाकर उसे रंग देने का कार्य किया गया. अब तक मुंबई, ठाणे, रायगढ़ और रत्नागिरी जिलों में कुल 200 गोमय गणेश मूर्तियों की बिक्री की जा चुकी है. मूर्तियाँ 10 से 24 इंच लंबी और वजन में हल्की हैं. गोमय गणेश की मूर्ति बनाने की प्रक्रिया 6 महीने से शुरू हो जाती है. सूखे गोबर के चूर्ण में सरसों का तेल और गोमूत्र मिलाकर गणेशजी की मूर्ति के सांचे में भरकर गणेश जी की मूर्ति बनाई जाती है. सांचे में से निकाली गयी मूर्ति को पूरी तरह सूखने में 24 घंटे लगते हैं.
पुराने समय में भगवान गणेश की मूर्तियाँ मिट्टी का उपयोग करके बनायी जाती थीं. लेकिन अब भगवान गणेश की मूर्ति के लिए आवश्यक मिट्टी दुर्लभ होती जा रही है. भगवान गणेश की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी की जगह प्लास्टर ऑफ पेरिस का उपयोग पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है. इन मूर्तियों के विसर्जन के बाद यह प्लास्टर ऑफ पेरिस प्रकृति, समुद्र, तालाब, नदियों और पूरे पर्यावरण के लिए चिंता का विषय बन गया है. इसके विकल्प के रूप में ‘गोमय गणेश’ बनाने का विचार किया गया. इस गोमय गणेश के कारण जल, कृषि और प्रकृति पर प्रतिकूल प्रभाव से बचा जा सकेगा. इसका उपयोग गोवंश रक्षण और गौशालाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी किया जा सकता है.
इस पहल के माध्यम से किसानों और गौ पालकों को आर्थिक समृद्धि मिलेगी. इसके प्रति अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है. पर्यावरण की रक्षा, गायों की रक्षा, किसानों की समृद्धि और गोमय को अपेक्षित मूल्य दिलाना, इस तरह के कई लाभ गोमय गणेश मूर्तियों के कारण प्राप्त हो रहे हैं. केवल इतना ही नहीं, तो इन मूर्तियों को घर में भी विसर्जित किया जा सकता है. खास बात यह है कि विसर्जन के बाद 24 घंटे में घुलने वाली मूर्ति के गोमय अवशेष को घर के बगीचे में पौधों के लिए खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.
नागरिकों में पर्यावरण जतन और संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है और प्रत्येक नागरिक को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. गोमय गणेश को स्थापित करके त्योहार का आनंद लें; आइए पर्यावरण को बचाएं.