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इतिहास पुरोधा ठाकुर रामसिंह जी

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16 फरवरी, 1915 (ग्राम झंडवी, जिला हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश) – 06 सितंबर, 2010 (लुधियाना, पंजाब)

ऐसा कहा जाता है कि शस्त्र या विष से तो एक-दो लोगों की ही हत्या की जा सकती है; पर यदि किसी देश के इतिहास को बिगाड़ दिया जाए, तो लगातार कई पीढ़ियाँ नष्ट हो जाती हैं. दुर्भाग्य से हमारे इतिहास के साथ भी ऐसा ही हुआ. आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से इतिहास संकलन योजना के तहत वास्तविक इतिहास को समाज के समक्ष लाने का कार्य चल रहा है. इतिहास पुरुष ठाकुर राम सिंह जी ने जीवन के अंतिम श्वास तक इस कार्य को गति प्रदान की.

ठाकुर राम सिंह जी का जन्म 16 फरवरी, 1915 को ग्राम झंडवी (जिला हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश) में श्री भागसिंह एवं श्रीमती नियातु देवी के घर में हुआ था. भारतीय इतिहास के पुरोधा ठाकुर राम सिंह जी ने लाहौर के सनातन धर्म कॉलेज से बी.ए. और क्रिश्चियन कॉलेज से इतिहास में स्वर्ण पदक के साथ एम.ए. किया. वे हॉकी के भी बहुत अच्छे खिलाड़ी थे. एम.ए. की पढ़ाई के दौरान मित्र बलराज मधोक के आग्रह पर संघ की शाखा में आना प्रारंभ किया. क्रिश्चियन कॉलेज के प्राचार्य व प्रबन्धकों ने इन्हें अच्छे वेतन पर अपने यहां प्राध्यापक बनने का प्रस्ताव दिया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया.

1942 में खण्डवा (म.प्र.) से संघ शिक्षा वर्ग प्रथम वर्ष का शिक्षण प्राप्त कर प्रचारक बन गये. उस साल लाहौर से 58 युवक प्रचारक बने थे. जिसमें से 10 ठाकुर जी के प्रयास से निकले. कांगड़ा जिला के बाद अमृतसर के विभाग प्रचारक रहे. विभाजन के समय हिन्दुओं की सुरक्षा और मुस्लिम गुंडों को मुंहतोड़ जवाब देने में अग्रणी रहे. उनके संगठन कौशल के कारण 1948 के प्रतिबन्ध काल में अमृतसर विभाग से 5,000 स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह किया था.

1949 में श्री गुरुजी ने उन्हें पूर्वोत्तर भारत में भेजा. वहां उन्होंने अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में संघ कार्य की नींव डाली. एक दुर्घटना में उनकी एक आंख और घुटने में भारी चोट आयी, जो जीवन भर ठीक नहीं हुई. 1962 में चीन के सैनिकों के असम में घुसने की आशंका से लोगों में भगदड़ मच गयी. ऐसे समय में उन्होंने पूरे प्रान्त और विशेषकर तेजपुर जिले के स्वयंसेवकों को नगर और गांवों में डटे रहकर प्रशासन का सहयोग करने को कहा. इससे जनता का मनोबल बढ़ा, और अफवाहें शान्त हुईं.

1971 में पंजाब के सह प्रान्त प्रचारक, 1974 में प्रांत प्रचारक, 1978 में सह क्षेत्र प्रचारक और फिर क्षेत्र प्रचारक बने. इस दौरान उन्होंने दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर का व्यापक प्रवास किया. उन्हें अपनी रॉयल एनफील्ड मोटरसाइकिल पर बहुत भरोसा था. सैकड़ों कि.मी. की यात्रा वे इसी से कर लेते थे. बुलन्द आवाज के धनी ठाकुर जी ने इस क्षेत्र से लगभग 100 युवकों को प्रचारक बनाया, जिसमें से कई आज भी कार्यरत हैं.

आपातकाल में ठाकुर रामसिंह जी का केन्द्र दिल्ली था. इस दौरान उन्होंने न अपना वेष बदला और न मोटरसाइकिल. फिर भी पुलिस उन्हें पकड़ नहीं सकी. उन्होंने भूमिगत रहते हुए आंदोलन के साथ ही जेल गए स्वयंसेवक परिवारों को भी संभाला. 1984 से ‘अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना’ के काम में लग गए. 1991 में अखिल भारतीय अध्यक्ष बने.

2002 में स्वास्थ्य के कारण उन्होंने जिम्मेदारी छोड़ दी; पर वे नये कार्यकर्ताओं को प्रेरणा देते रहे. उनके प्रयास से सरस्वती नदी, आर्य आक्रमण, सिकंदर की विजय जैसे विषयों पर हुए शोध ने विदेशी और वामपंथी इतिहासकारों को झूठा सिद्ध कर दिया.

2006 में हमीरपुर जिले के ग्राम नेरी में ‘ठाकुर जगदेवचंद स्मृति इतिहास शोध संस्थान’ की स्थापना कर भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन की साधना में लग गये. 94 वर्ष की अवस्था तक वे अकेले प्रवास करते थे.

छह सितम्बर, 2010 को लुधियाना में भारतीय इतिहास के इस पुरोधा का देहांत हुआ. उनकी इच्छानुसार उनका दाह संस्कार उनके गांव में ही किया गया.

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