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जम्मू कश्मीर – 75 वर्ष बाद नियंत्रण रेखा पर स्थित किशनगंगा के तट पर आरती

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जम्मू कश्मीर. कुपवाड़ा जिले में नियंत्रण रेखा के समीप स्थित तिथवाल में पुनर्निर्मित माँ शारदा मंदिर में विभाजन (1947) के पश्चात पहली बार 2023 में शारदीय नवरात्रि में पूजा अर्चना हुई थी. अब किशनगंगा नदी के तट पर पहली बार (75 वर्ष बाद) गंगा आरती का आयोजन किया गया. किशनगंगा नदी के किनारे नवनिर्मित घाट पर आयोजित आरती में मां शारदा मंदिर में पहुंचे तीर्थयात्रियों ने भी भाग लिया.

मंदिर में पूजा अर्चना से पूर्व श्रद्धालुओं ने किशनगंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाई. इसके बाद गंगा आरती में शामिल हुए और माँ शारदा के मंदिर में भी माथा टेका. गंगा आरती का नेतृत्व सेव शारदा कमेटी कश्मीर के संस्थापक रविंदर पंडिता ने किया. रविंदर पंडिता ने कहा कि भारत पाकिस्तान के विभाजन से पहले यह घाट अस्तित्व में था. लेकिन 1947 में हुए पाकिस्तानी कबाइलियों के बाद से यहां पूजा बंद हो गई. ना सिर्फ गंगा आरती, बल्कि मां शारदा के मंदिर को भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया था. लेकिन अब एक बार फिर मंदिर और घाट का जीर्णोद्धार किया गया है. रविन्द्र पंडिता ने बताया कि भविष्य में पारंपरिक घाट पर पहले की ही भाँति आरती आयोजित की जाएगी.

शारदा पीठ – भारतीय सभ्यता व संस्कृति का केन्द्र

हिन्दुओं का यह धार्मिक स्थल लगभग 5 हजार वर्ष पुराना है. प्राचीन काल से कश्मीर को शारदापीठ के नाम से ही जाना जाता है, जिसका अर्थ है देवी शारदा का निवास. यह मंदिर पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले क्षेत्र PoJK में नीलम नदी के तट पर स्थित है. पाकिस्तान के कब्जे में जाने के बाद धीरे-धीरे यह मंदिर खंडित हो चुका है. मान्यता है कि देवी सती के शरीर के अंग उनके पति भगवान शिव द्वारा लाते वक्त यहीं पर गिरे थे. इसलिए यह महाशक्ति पीठों में से एक है या कहें कि पूरे दक्षिण एशिया में एक अत्यंत प्रतिष्ठित मंदिर, शक्ति पीठ है. आज हिन्दू माता के दर्शन के लिए उत्सुक रहते हैं, लेकिन पाकिस्तान के कब्जे में होने के कारण कोई भारतीय आसानी से यहां नहीं जा पाता है.

1948 तक, गंगा अष्टमी पर नियमित शारदापीठ यात्रा शुरू होती थी. भक्त नवरात्रों के दौरान मंदिर भी जाते. विभाजन से पहले शारदा देवी का तिथवाल मंदिर विश्व प्रसिद्ध शारदा तीर्थ का आधार शिविर था. किशनगंगा नदी के तट पर स्थित मूल मंदिर और निकटवर्ती गुरुद्वारा को 1947 में पाकिस्तानी हमलावरों ने नष्ट कर दिया था. तब से, न तो सरकारों और न ही किसी संगठन ने इन धार्मिक स्थलों के पुनर्निर्माण के लिए कोई पहल की. शारदा पीठ देवी सरस्वती का कश्मीरी नाम है. यह छठी और बारहवीं शताब्दी के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्राचीन विश्वविद्यालयों में से एक था और मध्य एशिया और भारत के विद्वान ऐतिहासिक शिक्षा के लिए यहां आते थे.

तिथवाल में शारदा मंदिर का पुनर्निर्माण शारदा पीठ की प्राचीन तीर्थयात्रा की पुन: शुरुआत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

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