हिन्दू समाज की भावनाओं का सम्मान करते हुए कर्नाटक सरकार ने महत्वपूर्ण निर्णय लिया है. सरकार के निर्णयानुसार अब राज्य के मंदिरों से मिलने वाले पैसे का उपयोग किसी और मत या मजहब के लिए नहीं होगा. कर्नाटक सरकार के निर्णय के पश्चात उम्मीद है कि अन्य राज्य सरकारें भी इस ओर कदम बढ़ाएंगी.
कर्नाटक सरकार ने हिन्दू मंदिरों से संबंधित अहम निर्णय लिया है. हिन्दू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडोवमेंट्स (मुजराई) विभाग के कोष को हिन्दू मंदिरों के अतिरिक्त अन्य कार्य में उपयोग करने से रोक दिया है. विभाग द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि हिन्दू मंदिरों से प्राप्त पैसे या मंदिरों की संपत्ति का उपयोग किसी भी तरह के गैर-हिन्दू कार्य अथवा गैर-हिन्दू संगठन के लिए नहीं किया जाएगा.
विश्व हिन्दू परिषद सहित कुछ अन्य हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को 24 मई, 2021 को पता चला था कि मंदिरों की आय का पैसा मस्जिदों के इमामों, मदरसों के मौलवियों और चर्च के लोगों को वेतन के रूप में दिया जाता था. हर इमाम, मौलवी या चर्च के पादरी को प्रतिमाह 48,000 रु. वेतन के रूप में कर्नाटक सरकार देती थी. यह व्यवस्था कर्नाटक में उस समय से ही थी, जब राज्य में केवल कांग्रेस की सरकारें हुआ करती थीं. कांग्रेस ने वोट बैंक के लिए हिन्दू मंदिरों से मिलने वाले पैसे का दुरुपयोग किया और उसे गैर-हिन्दुओं के बीच बांटने की परम्परा शुरू की थी.
इसलिए विहिप की कर्नाटक इकाई और अन्य संगठनों ने मांग की थी कि हिन्दू मंदिरों का पैसा केवल और केवल हिन्दू मंदिरों में ही खर्च हो. विहिप ने कुछ समय पहले रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडोवमेंट्स विभाग के मंत्री कोटा श्रीनिवास पुजारी को एक ज्ञापन सौंपा था. इसमें कहा था, “हिन्दू मंदिरों के पैसे का उपयोग केवल मंदिरों और हिन्दू समाज के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए.” कहा जा रहा है कि इसके बाद सरकार ने उपरोक्त निर्णय लिया है.
एक रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक सरकार के अधीन 34,526 मंदिर हैं. इन मंदिरों को आय के आधार पर ए, बी और सी तीन श्रेणी में बांटा गया है. ए और ब श्रेणी वाले मंदिरों की आय अच्छी है, लेकिन सी श्रेणी वाले लगभग 6,000 मंदिरों की आय सालाना लगभग 10,000 रु है. इतनी कम आमदनी होने के कारण उन मंदिरों में प्रात: – सायं एक दीया भी नहीं जल पाता है. संगठनों की मांग है कि सरकार बड़े मंदिरों से मिले पैसे का उपयोग छोटे मंदिरों के लिए करे.