गुजरात के खेड़ा जिले में एक किसान परिवार में 31 अक्तूबर 1875 को जन्मे लौह पुरुष और प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल अपनी कूटनीतिक क्षमताओं के लिए भी याद किए जाते हैं. वह झवेर भाई पटेल की चौथी संतान थे. उनकी माता का नाम लाडबा पटेल था. बचपन से ही उनके परिवार ने उनकी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया. हालांकि 16 साल में उनका विवाह कर दिया गया था, पर उन्होंने अपने विवाह को अपनी पढ़ाई के रास्ते में नहीं आने दिया. 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और ज़िला अधिवक्ता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली. अपनी वकालत के दौरान उन्होंने कई बार ऐसे केस लड़े, जिसे दूसरे नीरस और हारा हुए मानते थे. उनकी प्रभावशाली वकालत का ही कमाल था कि उनकी प्रसिद्धि दिनों-दिन बढ़ती चली गई. सरदार पटेल की पत्नी झावेर बा का साल 1909 में मुंबई के एक अस्पताल में ऑपरेशन के दौरान निधन हो गया. उस समय सरदार पटेल अदालती कार्यवाही में व्यस्त थे, कोर्ट में बहस चल रही थी. तभी एक व्यक्ति ने कागज़ में लिखकर उन्हें झावेर बा की मौत की ख़बर दी. पटेल ने वह संदेश पढ़कर चुपचाप अपने कोट की जेब में रख दिया और अदालत में जिरह जारी रखी और मुक़दमा जीत गए. जब अदालती कार्यवाही समाप्त हुई, तब उन्होंने अपनी पत्नी की मृत्यु की सूचना सबको दी.
गम्भीर और शालीन पटेल अपने उच्चस्तरीय तौर-तरीक़ों और चुस्त अंग्रेज़ी पहनावे के लिए भी जाने जाते थे. लेकिन गांधी जी के प्रभाव में आने के बाद जैसे उनकी राह ही बदल गई. 1917 में गांधी जी के संपर्क में आने के बाद उन्होंने ब्रिटिश राज की नीतियों के विरोध में अहिंसक और नागरिक अवज्ञा आंदोलन के जरिए खेड़ा, बरसाड़ और बारदोली के किसानों को एकत्र किया. अपने इस काम की वजह से देखते ही देखते वह गुजरात के प्रभावशाली नेताओं की श्रेणी में शामिल हो गए. जन कल्याण और आजादी के लिए चलाए जाने वाले आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के चलते उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में महत्वपूर्ण स्थान मिला. गुजरात के बारदोली ताल्लुका के जनमानस ने उन्हें ‘सरदार’ नाम दिया और इस तरह वह सरदार वल्लभ भाई पटेल कहलाने लगे. कालांतर में राष्ट्र के लिए बड़े असरदार साबित हुए.
प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया
आज हम जिस विशाल भारत को देखते हैं, उसकी कल्पना बिना वल्लभ भाई पटेल के शायद पूरी नहीं हो पाती. सरदार वल्लभ भाई पटेल एक ऐसे इंसान थे, जिन्होंने देश के छोटे-छोटे रजवाड़ों और राजघरानों को एक कर भारत में सम्मिलित किया. उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति, नेतृत्व कौशल का ही कमाल था कि 600 देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय कर सके. उनके द्वारा किए गए साहसिक कार्यों की वजह से ही उन्हें लौह पुरुष और सरदार जैसे विशेषणों से नवाजा गया. भारत आजाद तो हो गया था, पर उसे यह आजादी पाकिस्तान की कीमत पर मिली थी. उसके सामने चुनौती थी अपनी छोटी-छोटी रियासतों को एक करने की. वरना एक बड़े भारतवर्ष का सपना शायद चकनाचूर हो सकता था. कहा जाता है कि पटेल कश्मीर को भी बिना शर्त भारत से जोड़ना चाहते थे, पर नेहरू ने हस्तक्षेप कर कश्मीर को विशेष दर्जा दे दिया. नेहरू ने कश्मीर के मुद्दे को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है. अगर कश्मीर का निर्णय नेहरू की बजाय पटेल के हाथ में होता तो कश्मीर आज भारत के लिए समस्या नहीं, बल्कि गौरव का विषय होता.
कई इतिहासकार यहां तक मानते हैं कि यदि सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनने दिया गया होता तो चीन और पाकिस्तान के युद्ध में भारत को पूर्ण विजय मिलती. परंतु गांधी जी के जगजाहिर नेहरू प्रेम ने उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया. ऐसे कालजयी महापुरुष ने अपनी अंतिम सांस 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में ली. आज हमारा देश ही नहीं अपितु सारा संसार ऐसे ही लौह पुरुष की तलाश में है… जो किसी भी कीमत पर राष्ट्रीय एकता लाने में सफल हो.