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केरल – रंजीत श्रीनिवासन की हत्या के मामले में 15 दोषियों को मौत की सजा

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केरल की एक स्थानीय अदालत ने आरएसएस स्वयंसेवक व भाजपा कार्यकर्ता रंजीत श्रीनिवासन की हत्या के मामले में पीएफआई के 15 आतंकियों को मौत की सजा सुनाई है. अदालत ने सभी आरोपियों को हत्या के मामले में दोषी पाया था. 19 दिसंबर, 2021 को अलाप्पुझा में उनके घर पर ही रंजीत की हत्या कर दी गई थी. इस मामले में गिरफ्तार सभी आरोपी प्रतिबंधित संगठन PFI के सदस्य थे.

जानकारी के अनुसार, केरल की मावेलिक्कारा के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय ने रंजीत श्रीनिवासन की हत्या के मामले में सभी 15 दोषियों को मौत की सजा सुनाई है. न्यायालय ने 8 आरोपियों को सीधे हत्या में शामिल पाया है. इन 8 आरोपियों को धारा 302 (हत्या), 149 (गैरकानूनी जमावड़ा), 449 (मौत की सजा वाले अपराध को अंजाम देने के लिए घर में अतिक्रमण), 506 (आपराधिक धमकी), और 341 ( भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) का गलत तरीके से रोकना) का दोषी पाया गया है.

न्यायालय ने नईसम, अजमल, अनूप, मोहम्मद असलम, अब्दुल कलाम उर्फ ​​सलाम, अब्दुल कलाम, सफरुद्दीन, मनशाद, जसीब राजा, नवास, समीर, नजीर, जाकिर हुसैन, शाजी पूवाथुंगल और शेरनस अशरफ को दोषी पाया था. इन्हें मौत की सजा सुनाई गई है.

19 दिसंबर, 2021 को उनके घर में पत्नी और मां के सामने बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. पीड़ित पक्ष ने न्यायालय से दोषियों को अधिकतम सजा देने की मांग की थी. अभियोजन पक्ष ने न्यायालय में कहा था कि आरोपी प्रशिक्षित हत्यारे थे और उन्होंने क्रूरता से रंजीत की उनकी मां, बच्चों और पत्नी के सामने हत्या कर दी.

20 जनवरी को मावेलिक्कारा के अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने मामले के सभी आरोपियों को दोषी ठहराया था. सजा मावेलिक्कारा अतिरिक्त जिला न्यायाधीश वीजी श्रीदेवी ने सुनाई.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, रंजीत की हत्या से एक रात पहले एसडीपीआई के राज्य सचिव केएस शान की हत्या हुई थी. इसी हत्या के प्रतिशोध में रंजीत श्रीनिवासन की हत्या की गई थी.

विशेष अभियोजक प्रताप जी पडिक्कल के अनुसार, अदालत ने पाया कि 15 आरोपियों में से एक से आठ तक सीधे तौर पर मामले में संलिप्त थे. अदालत ने चार आरोपियों (अभियुक्त संख्या नौ से 12) को भी हत्या का दोषी पाया क्योंकि वे अपराध में सीधे तौर पर शामिल लोगों के साथ थे और घातक हथियारों से लैस होकर घटनास्थल पर पहुंचे थे.

न्यायालय ने निर्णय सुनाने के बाद अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि एक निर्दोष व्यक्ति की उसकी मां, शिशु और उसकी पत्नी के सामने बेहद क्रूर और वीभत्स तरीके से हत्या करना दुर्लभतम अपराध की श्रेणी में आता है. अभियोजक ने कहा कि आईपीसी के तहत आरोपियों को अधिकतम सजा दी जानी चाहिए. न्यायालय ने यह दलील स्वीकार की.

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