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“लहू को ही खाकर जिए जा रहे हैं, है खून या कि पानी, पिए जा रहे हैं”

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मौत में अपना अस्तित्व तलाशता मीडिया

डॉ. नीलम महेंद्र

आजकल टीवी ऑन करते ही देश का लगभग हर चैनल “सुशांत केस में नया खुलासा” या फिर “सबसे बड़ी कवरेज” कार्यक्रम दिन भर चलाता है तो किसी शायर के ये शब्द याद आ जाते हैं, “लहू को ही खाकर जिए जा रहे हैं, है खून या कि पानी, पिए जा रहे हैं.”

ऐसा लगता है कि एक फिल्मी कलाकार मरते-मरते चैनल्स को जैसे जीवन दान दे गया. क्योंकि कोई इस कवरेज से देश का नंबर एक चैनल बन जाता है तो कोई नम्बर एक बनने की दौड़ में थोड़ा और आगे बढ़ जाता है. लेकिन क्या खुद को चौथा स्तंभ कहने वाले मीडिया की जिम्मेदारी टीआरपी पर आकर खत्म हो जाती है? देश दुनिया में और भी बहुत कुछ हो रहा है, क्या उसे देश के सामने लाना उनकी जिम्मेदारी नहीं है? खास तौर पर तब जब वर्तमान समय पूरी दुनिया के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है. एक ओर लगभग आठ महीनों से कोरोना महामारी ने सम्पूर्ण विश्व में अपने पैर पसार रखे हैं तो दूसरी ओर वैज्ञानिक दवा की खोज में तमाम प्रयास कर रहे हैं.

कोरोना का प्रभाव मानव जीवन के विभिन्न आयामों से लेकर तथाकथित विकसित कहे जाने वाले देशों पर भी पढ़ा है. देशों की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ परिवारों की अर्थव्यवस्था भी चरमरा रही है. कितने ही लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है. ऐसे हालात में कितने लोग अवसाद का शिकार हुए. इन कठिन परिस्थितियों में भारत केवल कोरोना से ही नहीं लड़ रहा, बल्कि एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत उसके कुछ पड़ोसी देश उसे सीमा विवाद में उलझा रहे हैं. एलओसी पर पाकिस्तान की ओर से गोली बारी और उसके द्वारा प्रायोजित आतंकवादी घुसपैठ के अलावा अब एलएसी पर चीन से भारतीय सेना के टकराव के बाद तनाव की स्थिति निर्मित हो गई है. इतना ही नहीं चीन की शह पर नेपाल भी भारत के साथ सीमा विवाद में उलझ रहा है. इस बीच यह खबर भी आई कि चालू वित्त वर्ष की अप्रैल जून तिमाही में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट -23.9% दर्ज की गई है.

लेकिन, इन विषमताओं के बावजूद देश में आपदा को अवसर में बदलने को बहुत से कदम भी उठाए गए, जैसे आत्मनिर्भर भारत की नींव और वोकल फ़ॉर लोकल का संकल्प. इतना ही नहीं संकल्पों से आगे बढ़कर देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने वाले कुछ महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पूर्ण हुए और देश को समर्पित भी किए गए. जैसे, भारत व बांग्लादेश के बीच व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने के लिए कोलकाता से बांग्लादेश के लिए जलमार्ग शुरू किया गया. 10171 फ़ीट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे लंबी रोड टनल “अटल रोहतांग टनल” बनकर तैयार हो गई. इससे ना सिर्फ अब लद्दाख सालभर देश से जुड़ा रहेगा, बल्कि मनाली से लेह की दूरी करीब 46 किलोमीटर कम हो गई है. चेन्नई और पोर्ट ब्लेयर को जोड़ने वाली सबमरीन ऑप्टिकल फाइबर केबल की सुविधा शुरू हो गई है. जिससे अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में मोबाइल और इंटरनेट कनेक्टिविटी की दिक्कत समाप्त हो जाएगी और यहाँ से बाहरी दुनिया से डिजिटल सम्पर्क करने में आसानी होगी. इसी प्रकार मध्य प्रदेश की रीवा में स्थित एशिया के सबसे बड़े सोलर पॉवर प्रोजेक्ट का उद्घाटन भी हाल ही में किया गया. निःसंदेह ये ना सिर्फ गर्व करने योग्य देश की उपलब्धियां हैं, बल्कि जनमानस में सकारात्मकता फैलाने वाली खबरें भी हैं.

लेकिन शायद ही स्वयं को चौथा स्तंभ मानने वाले देश के मीडिया ने इन खबरों का प्रसारण किया हो अथवा किसी भी प्रकार से देश की इन उपलब्धियों से देश की जनता को रूबरू कराने का प्रयत्न किया हो. दस हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर सामरिक दृष्टि से अत्यंत दुनिया की सबसे लंबी टनल चैनल्स के लिए चर्चा का विषय नहीं है. एशिया का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा का सयंत्र आकर्षण का केंद्र नहीं है. आज़ादी के 74 साल बाद तक डिजिटल रूप से अब तक कटा हमारे देश का एक अंग अंडमान निकोबार अब देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के भी संपर्क में है, इनके लिए यह कोई विशेष बात नहीं है. क्योंकि इन खबरों से इनकी टीआरपी नहीं बढ़ती. लेकिन एक फिल्मी कलाकार की मृत्यु इनके लिए बहुत बड़ा मुद्दा बन जाता है. इतना बड़ा कि “सुबह की खबरों” से लेकर रात की “प्राइम टाइम” तक इसी मुद्दे को लगभाग हर चैनल पर जगह मिलती है. वो अब चल दिए हैं, वो अब आ रहे हैं, यही दिखा कर सब पैसा कमा रहे हैं. यह टीआरपी का खेल भी अजब है कि रिया अब घर से निकल रही हैं, से लेकर रिया अब घर वापस जा रही है, की रिपोर्टिंग बकायदा “हम रिया की कार के पीछे हैं और आपको पल पल की खबर दे रहे हैं” तक चलती है. व्यावसायिकता की इस दौड़ में आज किसी की मौत को ही पैसा कमाने का जरिया बनाने से भी गुरेज नहीं किया जाता. और तो और इनकी “खोजी पत्रकारिता” जिस प्रकार से रोज “नए खुलासे” करती है, उसके आगे सभी जांच एजेंसियां भी फेल हैं. शायद इसलिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस मामले में विभिन्न मीडिया संस्थानों द्वारा की गई कवरेज को देखते हुए मीडिया को पत्रकारीय आचरण के मानकों का ध्यान रखने की हिदायत दी है. अब यह तो मीडिया के समझने का विषय है कि वो मात्र एक मनोरंजन करने वाले साधन के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहता है या फिर एक ज्ञानवर्धक शिक्षाप्रद एवं प्रमाणिक स्रोत के रूप में.

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