जबलपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य भय्याजी जोशी ने कहा कि भारत का अपना दृष्टिकोण व चिंतन है जो चिर प्राचीन है. युगानुकूल व्यवस्थाओं के साथ कृषि में परिवर्तन करते हुए शास्वत चिंतन करना होगा. उन्होंने कृषि व किसान की वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मात्र खाद्यान्न उत्पादन की मंशा के साथ युगानुकूल व्यवस्थाएं अपनाकर कृषि व किसान का हित नहीं हो सकता है. हमें भूतकाल से सीखते हुए वर्तमान की समीक्षा करके भविष्य का मार्ग बनाना होगा.
भय्याजी जोशी कृषि विश्वविद्यालय परिसर में भारतीय किसान संघ व भारतीय एग्रो इकॉनोमिक रिसर्च सेंटर के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित राष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिक सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में संबोधित कर रहे थे. कृषि की समस्याओं के समाधान की बात करते हुए कहा कि कृषि व किसान की उन्नति के लिये एकात्म समन्वित कृषि की आवश्यकता है. तभी युगानुकूल व्यवस्थाएं अपनाकर कृषि, किसान व गांव स्वावलंबी, आत्मनिर्भर, समर्थ व संपन्न होंगे.
भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय संगठन मन्त्री दिनेश कुलकर्णी ने दो दिवसीय राष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिक सम्मेलन में चर्चा व चिंतन में शामिल होने वाले विषयों की प्रस्तावना रखी. कनेरीमठ के स्वामी मुप्पीन काडसिद्धेश्वर स्वामी ने कृषि क्षेत्र में पलायन पर चिंता वक्त की. प्रारम्भ में मंच पर उपस्थित गणमान्यजनों ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया.
मंच का संचालन डॉ. आशुतोष मुर्कुटे ने किया. इस अवसर पर देश भर के कृषि वैज्ञानिकों के साथ साथ भारतीय किसान संघ के अ. भा. मंत्री मोहिनी मोहन मिश्र, क्षेत्र संगठन मंत्री महेश चौधरी, प्रांत संघठन मंत्री भरत पटेल, सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित रहे.
भूमि सुपोषण, बीज, जल प्रबंधन, फ़सल सुरक्षा व पशुपालन पर होगा चिंतन
भारतीय एग्रो इकॉनोमिक रिसर्च सेंटर के महामंत्री प्रमोद चौधरी ने बताया कि दो दिवसीय राष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिक सम्मेलन में देश भर के वरिष्ठ वैज्ञानिक “आदान समग्रता से शाश्वत कृषि” विषय पर अपना चिंतन व विचार रखकर कृषि की समस्याओं पर समाधानपरक निदान रखेंगे. कृषि वैज्ञानिकों की व्यासपीठ में किसान व कृषि की उन्नति के लिये पर्यावरण सुसंगत मार्ग पर विस्तृत चर्चा होने के उपरांत उपयुक्त समाधान भी देश के नीति निर्धारकों के समक्ष रखा जाएगा. किसान व कृषि की दुराव्यवस्था के लिये पूंजीवादी व्यवस्था उत्तरदायी है. ऐसे में किसान व कृषि के पुनरुत्थान के लिये कृषि आदानों में स्वदेशी विकल्प की अनिवार्यता आवश्यक है.