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लोकमाता अहिल्यादेवी ने भारत की सांस्कृतिक एकता की पुनर्स्थापना की

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चौंडी, अहिल्यानगर। पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी ने प्रशासन में लोक कल्याणकारी विविधता, समाज के हित में सर्व समावेशकता तथा पूरे देश में धर्म व एकात्मता के लिए अध्यात्म का समावेश जैसी मौलिक चीजों की विरासत दी। उन्होंने सच्चे अर्थों में भारत की सांस्कृतिक एकात्मता की पुनर्स्थापना की।

पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी अभिवादन कार्यक्रम में आयोजित संगोष्ठी में लोकमाता अहिल्यादेवी होलकर त्रि-शताब्दी समारोह समिति की सचिव डॉ. मालासिंह ठाकुर, नयना सहस्त्रबुद्धे, शोधकर्ता डॉ. अदिती पासवान, लेखिका चिन्मयी मूळे उपस्थित रहीं। अहिल्यादेवी के लोक कल्याणकारी राज्य पर चिन्मयी मूळे ने कहा कि “अहिल्यादेवी ने न्याय, निष्पक्षता और समाज कल्याण को सर्वाधिक महत्व दिया। उनका शासन सभी वर्गों के लिए था। उन्होंने सेना में महिलाओं को समाविष्ट किया। विधवाओं को गोद लेने का अधिकार प्रदान किया। राष्ट्रीयता की भावना सभी वर्गों में उतारने का प्रयास किया।”

डॉ. मालासिंह ठाकुर ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक एकता की पुनर्स्थापना का कार्य अहिल्यादेवी ने किया। “अखंड भारत में धार्मिक स्थलों का केवल पुनर्निर्माण नहीं किया, बल्कि उन्हें स्वावलंबी करने का कार्य लोकमाता ने किया। अहिल्यादेवी यानी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का श्रेष्ठ उदाहरण हैं। समाज की कु-प्रथाओं को दूर करने का कार्य किया। इतना ही नहीं, बल्कि उसके साथ समरसता का कार्य भी समाज के सभी वर्गों तक कैसे पहुंचेगा, इसका उन्होंने ध्यान रखा।”

डॉ. अदिती पासवान ने कहा, “अहिल्याबाई केवल प्रशासक नहीं थी, बल्कि समाजसेवक थीं। उन्होंने गलत प्रथाओं का निर्मूलन किया।” नयना सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि गहन दूरदर्शिता रखने वाली अहिल्यादेवी ने आर्थिक विकास का बड़ा कार्य किया। “सुशासन का वातावरण, कल्याणकारी कर और नीतिपूर्वक संग्रहण यह अहिल्यादेवी के धर्मराज्य की विशेषता थी। अहिल्यादेवी उपभोग न करने वाली रानी थी, उन्होंने महिलाओं को केवल अधिकार ही नहीं, बल्कि कर्तव्य का भी बोध कराया। भारत को आर्थिक महासत्ता का स्वप्न साकार करना है तो महिलाओं के सहभाग से विकास होगा।”

माधुरी खांबेटे ने कार्यक्रम का सूत्र संचालन किया। स्मिता कुलकर्णी ने आभार प्रकट किया।

पूरे भारत से आई लगभग 500 महिलाओं ने अहिल्यादेवी का वाड़ा (निवास), जन्मस्थान, हवेली और ऐतिहासिक मंदिर का निरीक्षण किया। इस अवसर पर परंपरा के अनुसार सभी महिलाओं का हल्दी-कुमकुम लगाकर स्वागत किया गया। रंगोली की शोभा और फुलों ने सबका ध्यान आकर्षित किया। कहा कि चौंडी में हुए स्वागत से मायके में होने वाले मेले की अनुभूति मिली है। उन्होंने अहिल्यादेवी का विचार समाज में सभी ओर पहुंचाने का संकल्प किया।

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