उच्च न्यायालय ने कहा, अभिव्यक्ति की आजादी का उपयोग विवेकपूर्ण होना चाहिए
भोपाल. मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर पीठ ने विवादित लोक कलाकार नेहा सिंह राठोर के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने से इंकार कर दिया. और कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी का उपयोग विवेकपूर्ण होना चाहिए. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार एक पूर्ण अधिकार नहीं है, बल्कि उचित प्रतिबंधों के अधीन है.
मामला मध्यप्रदेश के सीधी में सामने आए पेशाब कांड को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जोड़कर एक आपत्तिजनक फोटो ट्वीट करने का है. नेहा सिंह ने खाकी निक्कर वाला कार्टून पोस्ट किया था. जिसके बाद जुलाई 2023 में नेहा के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153ए के अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज की गई थी. मामले में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर पीठ ने नेहा के विरुद्ध दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग वाली याचिका को न सिर्फ खारिज कर दिया, बल्कि सोशल मीडिया पर उनके द्वारा पोस्ट कंटेंट में संघ की वेश का जिक्र करने पर भी सवाल उठाए.
न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने पूछा कि नेहा सिंह द्वारा सोशल मीडिया पर पोस्ट किए कार्टून में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की खाकी निकर का जिक्र करते हुए एक “विशेष विचारधारा” की पोशाक क्यों जोड़ी, जबकि पीड़ित पर पेशाब करने के आरोपी ने वही पोशाक नहीं पहनी थी.
न्यायलय ने कहा “एक कलाकार को व्यंग्य के माध्यम से आलोचना करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, लेकिन कार्टून में किसी विशेष पोशाक को जोड़ना व्यंग्य नहीं कहा जा सकता है. आवेदक का प्रयास बिना किसी आधार के किसी विशेष विचारधारा के समूह को शामिल करना था. इसलिए, यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के दायरे में नहीं आता है. यहां तक कि व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति भी भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत प्रतिबंधित हो सकती है”.
न्यायालय ने कहा कि कार्टून में नेहा द्वारा विशेष पोशाक क्यों जोड़ी गई, इस सवाल का निर्णय मुकदमे में किया जाना है. “विशेष पोशाक जोड़ना इस बात का संकेत था कि आवेदक यह बताना चाहती थी कि अपराध एक विशेष विचारधारा से संबंधित व्यक्ति द्वारा किया गया था. इस प्रकार, यह सद्भाव को बाधित करने और शत्रुता, घृणा या दुर्भावना की भावनाओं को भड़काने का प्रयास करने का स्पष्ट मामला था”.
“मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता पर विचार करते हुए, यह अदालत इस बात पर विचार करती है कि हस्तक्षेप करने के लिए कोई मामला नहीं बनता है.”
उच्च न्यायालय ने नेहा के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया. अब नेहा को इस मामले में क़ानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा.
नेहा सिंह के वकील ने एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए तर्क दिया था कि आईपीसी की धारा 153 ए के तहत इसमें ऐसा कोई अपराध नहीं बनता है. हालांकि, राज्य ने नेहा सिंह की याचिका का विरोध किया और तर्क दिया कि उनके पोस्ट से तनाव बढ़ गया था.