चैन्नई. मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आर महादेवन और न्यायमूर्ति मोहम्मद शफीक की पीठ ने कहा कि राज्य को नागरिकों के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को बरकरार रखना चाहिए.
अदालत ने इस प्रकार आरएसएस को तीन अलग-अलग तारीखों पर रूट मार्च (पथ संचलन) करने के लिए नए सिरे से आवेदन दायर करने का निर्देश दिया और तमिलनाडु पुलिस को निर्देश दिया कि आरएसएस को राज्य भर के विभिन्न जिलों में ऐसी किसी भी तारीख को पथ संचलन निकालने की अनुमति दी जाए.
मद्रास उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा किए जाने वाले रूट मार्च पर कुछ शर्तें लगाने के एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह को अनुमति दी.
आरएसएस ने एकल न्यायाधीश के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी थी कि जानबूझकर अवज्ञा का आरोप में दायर अवमानना याचिका में पथ संचलन की अनुमति देने वाले उसके पहले के आदेश को एकल न्यायाधीश संशोधित नहीं कर सकता था. एकल न्यायाधीश ने संगठन को निर्देश दिया था कि पथ संचलन ग्राउंड या स्टेडियम जैसे परिसर में किया जाए.
आरएसएस ने प्रस्तुत किया कि सार्वजनिक जुलूस (पथ संचलन) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने का एक स्वीकार्य तरीका है और राज्य का कर्तव्य है कि वह इसकी अनुमति दे.
आदेश एक अवमानना कार्यवाही में पारित किया गया था, और केवल यह देखना था कि अवमानना की गई है या नहीं.
आरएसएस ने यह भी तर्क दिया था कि फैसले में भी, एकल न्यायाधीश ने कहा था कि खुफिया रिपोर्टों पर गौर करने के बाद, उन्हें उनमें कोई महत्वपूर्ण सामग्री नहीं मिली. फिर भी, उन्होंने कार्यवाही के संचालन पर कुछ शर्तें लगाईं. जनता की राय और प्रेस रिपोर्ट सबूत का रूप नहीं ले सकते.
न्यायालय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को तीन अलग-अलग तिथियों पर पथ संचलन निकालने के लिए दोबारा आवेदन देने का निर्देश दिया. न्यायालय ने तमिलनाडु पुलिस को राज्य के विभिन्न जिलों में निकाले जाने वाले पथ संचलन के लिए अनुमति देने का निर्देश दिया.
इसके पहले राज्य सरकार और पुलिस की तरफ से इंदु मक्कल काची-तमिझगम (IMKT) को भी राज्यस्तरीय सम्मेलन की इजाजत नहीं दी गई थी. पुलिस ने कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी थी. संगठन ने इसके बाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था.
मद्रास उच्च न्यायालय ने 29 जनवरी 2023 को आयोजित राज्यस्तरीय सम्मेलन की अनुमति दे दी थी. अपने आदेश में कहा था कि धार्मिक सभाओं के आयोजन पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता.