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भारत की एकता का प्रकटीकरण है ‘महाकुम्भ’

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जयपुर। पाथेय कण संस्थान द्वारा ‘पाथेय संवाद’ नाम से प्रयागराज महाकुम्भ को लेकर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। मालवीय नगर में आयोजित गोष्ठी की प्रस्तावना रखते हुए संस्थान के अध्यक्ष एवं राजस्थान विश्वविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. नन्द किशोर पाण्डेय ने कुम्भ की सर्वव्यापकता, प्राचीनता व महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि सत्संगति क्या होती है, सत्संगति का सुख क्या है, यह डेढ़ महीने तक महाकुम्भ में देखा गया। महाकुम्भ मात्र एक स्नान नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक चिंतन का प्रवाह है। महाकुम्भ हजारों-लाखों वर्षों की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हमारे मन में उतरता हुआ एक श्रद्धा भाव है।

वनस्पति विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय के सहायक प्रो. अमित कोटिया ने बताया कि रुड़‌की के वैज्ञानिकों ने शोध में पाया कि गंगा में कितना ही अपवित्र अपशिष्ट पदार्थ गिरा दो बारह किमी चलने के बाद गंगा स्वयं को पवित्र कर लेती है। वैसे ही हिन्दू मन स्वयं को संशोधित करता रहता है। गंगाजल में ऐसी क्षमता है कि कैसी भी परिस्थिति हो, वह अपने आप को शुद्ध कर लेता है। ब्रिटिश वैज्ञानिक हॉकिंस ने हैजे के जीवाणुओं को जब गंगा जल में डाला तो पाया कि वे सारे के सारे नष्ट हो गए। ऐसी अदभुत क्षमता है गंगाजल की।

राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान केन्द्र, लखनऊ के वैज्ञानिक प्रो. नौटियाल ने गंगाजल कब तक कितना शुद्ध रहता है, यह जानने के लिए एक जीवाणु ‘ईकोलाई’ लेकर गंगाजल में डाला तो वह जीवाणु तीन दिन में नष्ट हो गया। इसी को अधिक परखने के लिए उन्होंने जब 8 से 16 दिन पुराना गंगाजल लिया तो उसमें भी वह जीवाणु कुछ समय के बाद नष्ट हो गया। इसका अर्थ यह है कि कुछ तो है गंगाजल में जो आज भी अपने आप को विशेष बनाए हुए है।

उन्होंने बताया कि गंगाजल को आप तीन तरह से देख सकते हैं। एक भौतिक रूप में, एक रसायन रूप और तीसरा जैविक रूप में। इन तीनों रूपों की एक विशेषता यह है कि यह हानिकारक जीवाणुओं को पनपने से रोकता है। गंगा के पानी में ऑक्सीजन को डिजॉल्व करने की क्षमता बहुत अधिक है। आप किसी नदी के जल की तुलना में अगर देखें तो गंगाजल में यह 25 प्रतिशत अधिक है।

इस अवसर पर पत्रकार, प्रबुद्धजन, रिसर्च स्कॉलर, डॉक्टर सहित बड़ी संख्या में अध्ययनरत विद्यार्थी उपस्थित थे।

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