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महाराणा प्रताप का जीवन स्वाभिमान एवं संघर्ष का पर्याय है – मुकुल कानिटकर

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कुंभलगढ़. चिंतक-विचारक मुकुल कानिटकर ने कहा कि महाराणा प्रताप का जीवन चरित्र संपूर्ण विश्व के लिए आदर्श, स्वाभिमानी और स्वतंत्रता के लिए प्राण-प्रण से संघर्ष का प्रतीक है. अभावों में रहकर भी अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए सर्वसमाज को एकता के सूत्र में बांधकर किसी भी कीमत पर राष्ट्र भाव को जागृत रखना, प्रताप के जीवन से सीखा जाना चाहिए. उनका पूरा जीवन संघर्ष और स्वाभिमान का पर्याय है, जो आज भी हर देशवासी को प्रेरणा प्रदान करता है. मेवाड़ की माटी की तासीर ही ऐसी है, जहाँ अनेक वीर पैदा हुए हैं. जिन्होंने हर परिस्थिति में स्वतंत्रता के संघर्ष की प्रेरणा दी. पूर्वाग्रह से ग्रसित इतिहासकारों ने महाराणा प्रताप के साथ न्याय नहीं किया, जबकि संगठन कुशलता, सामाजिक समरसता, स्वधर्म हेतु संघर्ष, सैनिक कुशलता, न्याय प्रियता जैसे अनेक गुण उनको जनमानस का नायक बनाते हैं. 500 वर्ष बाद भी जिनके प्रति जन-जन में इतना सम्मान का भाव है. 25 पीढ़ियों के गुजर जाने के बाद भी प्रताप देशवासियों के ह्वदय में अपना स्थान रखते हैं.

मुकुल कानिटकर महाराणा प्रताप जयंती के अवसर पर वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप जन्मोत्सव आयोजन समिति द्वारा अजेय दुर्ग कुंभलगढ परिसर में आयोजित शौर्य सभा को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने बप्पा रावल से प्रारंभ हुए मेवाड़ के इतिहास का वर्णन करते हुए संघर्ष, पन्ना द्वारा चंदन का बलिदान, मेवाड़ की रक्षा हेतु सर्व समाज के सामूहिक समर्पण के साथ घुमंतू, अर्ध-घुमंतू, विमुक्त जनजाति समाज, गाडिया-लौहार का तप एवं संकल्प, भामाशाह के सर्वस्व समर्पण, चित्तौड़ दुर्ग पर जौहर स्नान, चेतक और रामप्रसाद का बलिदान जैसे अनेक ऐतिहासिक वृतांत का उल्लेख करते हुए मेवाड़ को विश्व का आदर्श बताया.

कार्यक्रम में संत सान्निध्य प्रदान करने महंत ज्ञानानंद महाराज, डॉ. बलराम दास जी, चेतन दास जी महाराज, लेहरू दास जी, सिद्धेश्वर भारती जी, जानकी दास जी, मदन महाराज जी उपस्थित रहे.

समारोह के मुख्य अतिथि के रुप में कुंभलगढ विधायक सुरेंद्र सिंह राठौड़ मंचासीन थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता समाजसेवी फतह चंद सामसुखा ने की.

समारोह समिति के प्रचार-प्रसार प्रमुख सतीश आचार्य ने बताया कि कार्यक्रम के प्रारंभ में मंचासीन अतिथियों ने मेवाड़ नाथ एकलिंगनाथ और महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया.

महंत ज्ञानानंद महाराज ने सनातन धर्म की उज्जवल परंपरा का उल्लेख करते हुए महाराणा प्रताप के धर्म रक्षा हेतु कि संघर्ष से प्रेरणा लेने का आह्वान किया. कार्यक्रम के अध्यक्ष फतह चंद सामसुखा ने भी विचार व्यक्त किए. उदयपुर विभाग संयोजक शंभू सिंह आसोलिया ने सभी का आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम का संचालन कवि सतीश आचार्य ने किया.

विभिन्न स्थानों से वाहन रैलियां पहुंची

कार्यक्रम में राजसमंद, आमेट, भिंडर, सलूंबर, उदयपुर महानगर और उदयपुर जिले के विभिन्न स्थानों से प्रारंभ हुई दुपहिया वाहन रैलियां कुंभलगढ दुर्ग पर पहुंची, जिसमें सैकड़ों युवा शामिल हुए.

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