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महाराणा प्रताप का संघर्ष साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं, संस्कृति और अस्मिता की रक्षा के लिए था

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उदयपुर, 8 जून.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का संघर्ष साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं, बल्कि संस्कृति और अस्मिता की रक्षा के लिए था. उन्होंने आततायी-बर्बर विचार वाली ताकतों के सामने खड़ा होने की हिम्मत की. मातृभूमि के प्रति समर्पण का उन्होंने ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसकी बदौलत आज भी सम्पूर्ण भारतवर्ष में उनकी जयकार होती है.

सह सरकार्यवाह शनिवार 08 जून को राष्ट्रीय तीर्थ प्रताप गौरव केन्द्र में महाराणा प्रताप जयंती समारोह के उद्घाटन कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि भारत में कई बर्बर आक्रमणकारी बाहर से आए और ऐसे आक्रमणकारियों के सामने हिम्मत से खड़े होने वाले थे महाराणा प्रताप. प्रताप की सेना का शौर्य ऐसा था कि आत्म समर्पण नहीं करेंगे, अंतिम सांस तक लड़ेंगे.

जौहर क्यों हुआ, इसके कारणों पर भी मंथन करना होगा. यह हमारे समाज के विघटित सामर्थ्य का परिणाम था; असंगठित होने के कारण आक्रमणकारियों को लाभ मिला, राजाओं के बाद तो एक कम्पनी आ गई और उसने देश पर राज किया. छह उदाहरण तो डॉ. आम्बेडकर ने दिए, जिसमें उन्होंने बताया कि राजाओं ने एक दूसरे का साथ नहीं दिया.

सह सरकार्यवाह ने कहा कि भारत हर क्षेत्र में कीर्ति कलश के रूप में विद्यमान था, लेकिन आपस में एक-दूसरे का साथ नहीं देने के कारण बाहरी आक्रमणकारी हावी होते गए. ऐसी ताकतें आज भी देश और समाज को तोड़ने के प्रयास कर रही हैं, हमारा दायित्व है कि हमारी ताकत को विघटित न होने दें.

इतिहास की त्रुटियों को दूर कर, गौरवशाली इतिहास से परिचित कराना होगा – भजनलाल शर्मा

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने आह्वान किया कि हमारी संस्कृति और हमारी विरासत पर हमें गर्व होना चाहिए. हमारे महापुरुषों की वीर गाथा नई पीढ़ी की जुबान पर होनी चाहिए. हमारा गौरवपूर्ण इतिहास नई पीढ़ी तक पहुंचना चाहिए. इतिहास में तोड़-मरोड़कर दी गई जानकारी और त्रुटियों को सुधारने की आवश्यकता है. नई पीढ़ी भी तो जाने कि हमारे महापुरुष मातृभूमि और मातृशक्ति की आन-बान-शान बचाने के लिए बलिवेदी पर न्यौछावर हो गए. वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष का उदाहरण सुनाते हुए बताया कि उन्होंने भी भारत यात्रा की दौरान महाराणा प्रताप की समाधि के बारे में पूछा था और कहा था कि उन्हीं के जीवन-संघर्ष ने वियतनाम को अपनी मातृभूमि के लिए बड़ी शक्तियों से लोहा लेने की प्रेरणा दी.

कार्यक्रम के आरंभ में महाराणा प्रताप जयंती समारोह के संयोजक महावीर चपलोत ने स्वागत उद्धबोधन दिया. वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के पूर्व अध्यक्ष प्रो. बीएल चौधरी ने उनका अभिनंदन किया.

उद्घाटन कार्यक्रम के बाद कथा-कथन ‘अमरता री वातां’ कार्यक्रम हुआ. इसमें बाबा निरंजन नाथ महाराज, शांतिलाल गुलेचा, वैद्य लक्ष्मीनारायण जोशी, विलास जानवे, मनीष शर्मा व हर्षिता शर्मा ने कथा कथन किया.

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