तीस हजार से अधिक हत्याएँ, लूट और बलात्कार की दुर्दांत घटनाएं
रमेश शर्मा
दिल्ली में नादिरशाह ने एक दिन में तीस हजार स्त्री, पुरुष और बच्चों को मार डाला था. लूट और बलात्कार की तो कोई सीमा ही नहीं थी. इन हमलावर सैनिकों की क्रूरता से दिल्ली का कोई घर सुरक्षित नहीं बचा था. दिल्ली में नादिरशाह द्वारा किए नरसंहार का उदाहरण दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं मिलता.
नादिरशाह के अत्याचार केवल दिल्ली तक सीमित नहीं थे. पंजाब से दिल्ली तक लाशों के ढेर लगाए थे. रास्ते के हर गाँव और घर में लूट हुई थी. यह लूट दोनों प्रकार की थी, धन की भी थी और स्त्री बच्चों की भी. लेकिन दिल्ली में तो उसने सारी हदें तोड़ दी थीं. बादशाह को बंधक बनाकर नीचे बिठाया. शाही जनानखाने की सभी स्त्रियों को बेइज्जत किया और ढोल बजाकर दिल्ली में कत्लेआम का आदेश दिया था. सशस्त्र सैनिक और घुड़सवार दिल्ली की बस्तियों में टूट पड़े. उस दौर में एक तो विजित सेना वैसे ही पराजित राज्य पर मनमानी किया करती थी. उस पर यदि किसी क्रूर और बेरहम सेनापति ने कत्लेआम का आदेश दिया तो सहज समझा जा सकता है कि जनता के साथ क्या घटा होगा. इस कत्लेआम का विवरण इतिहास की अनेक पुस्तकों में है. हाँ, संख्या और अवधि में थोड़ा अंतर है. कहीं पूरे चौबीस घंटे तक कत्लेआम होने का वर्णन है, कहीं केवल दिन में, एक विवरण में दोपहर से शाम तक का वर्णन मिलता है. इसी तरह मृतकों की संख्या भी कहीं बीस हजार है तो कहीं एक लाख पर अधिकांश इतिहासकार तीस हजार लगभग मानते हैं. स्त्री बच्चों का अपहरण करके ले जाने और गुलामों के बाजार में बेचने का आंकड़ा सबने लगभग दस हजार माना है.
नादिरशाह मूलतः खुरासान का रहने वाला था. यह क्षेत्र उत्तर पूर्वी ईरान में पड़ता है. कहा जाता है कि उसकी माँ को उज्बेकों ने गुलाम बना लिया था. नादिर किसी तरह भाग निकला और अफ्शार कबीले में शामिल हो गया. कबीले का मुख्य धंधा युद्ध और लूट था. वे भाड़े पर युद्ध करते थे. इसके लिये लूट के माल में भागीदारी होती थी. नादिर ने इस कबीले में रहकर अपना एक समूह बना लिया था और आसपास के कबीलों में लूट मचाने लगा. धीरे धीरे उसका दल एक सैनिक समूह में बदल गया.
उन दिनों ईरान की सत्ता एक ओर उज्बेकों से तो दूसरी ओर अफगानों से घिरी हुई थी, रूसियों के भी हमले यदाकदा हुए. नादिर का दल इतना प्रभावशाली हो गया था कि ईरान के शाह ने सहायता मांगी. नादिर के दल ने हमलावरों से मुकाबला किया और विजय मिली. शाह ने प्रसंशा की. नादिर ने मौके का लाभ उठाया और अपना दल बढ़ा लिया. वह भले शासक न बना पर ईरानी सत्ता के सूत्र और शक्तियाँ उसके हाथ आ गईं. उसे “शाह” की उपाधि और सम्मान मिला. ईरान को सुरक्षित करके नादिरशाह भारत विजय और लूट अभियान पर निकला.
दिसम्बर 1738 के दिन थे. तब भारत की सत्ता मुगल बादशाह मुहम्मद शाह आलम के हाथ में थी. नादिरशाह ने कान्धार से प्रवेश किया. यहाँ उसे किसी बड़े प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा. सत्ता के आंतरिक संघर्ष में मुगल सत्ता बहुत कमजोर हो गई थी. फिर वह काबुल के रास्ते पंजाब में घुसा. मुगल सेना लगातार पीछे हटती गई. यहाँ नादिरशाह की सेना और बढ़ गई थी. लूट के लालच में अफगान सैनिकों की अनेक टुकड़ियाँ पाला बदलकर नादिर के साथ हो गई. कुछ कबीले भी जुड़ गये. पंजाब में लूटमार और हत्याएँ करता हुआ आगे बढ़ा. दिल्ली को बचाने के लिये मुगल सेना ने करनाल में मोर्चा बंदी कर रखी थी. करनाल से दिल्ली लगभग 114 किलोमीटर दूर है. यहाँ आते आते नादिरशाह की सेना कई गुना हो गई थी. वह मानों आंधी की भाँति दिल्ली की ओर बढ़ रहा था. वह 24 फरवरी, 1739 का दिन था. मुगल सेना मुकाबला न कर सकी और केवल तीन घंटे में मुगल सेना ने घुटने टेक दिये. मुगल बादशाह ने समर्पण कर दिया. बादशाह के साथ बंदियों से जैसा व्यवहार हुआ.
नादिरशाह विजेता होकर दिल्ली आया. उसने 20 मार्च, 1739 को दिल्ली में प्रवेश किया. सीधा सिंहासन पर बैठा. उसने जनानखाने और मालखाने पर कब्जा करने का आदेश दिया. सेना ने पूरे नगर में लूट और महिलाओं का अपहरण शुरु किया. नादिरशाह जहां भी हमला करता था, वहां से धन के साथ बच्चों और महिलाओं को लूट कर लाता था, उन्हें गुलामों के बाजार में बेचा जाता था. इसी लूट के दौरान 21 मार्च को चाँदनी चौक में एक घटना घटी. लोगों ने प्रतिकार किया, जिसमें नादिरशाह के कुछ सैनिक मारे गए. इसके साथ यह अफवाह फैली कि किले में एक महिला ने नादिरशाह का कत्ल कर दिया. यह समाचार नादिर के पास पहुंचा तो वह आग बबूला हो गया, उसने बादशाह को अपने कदमों में झुकाया और कत्लेआम का आदेश दिया. 22 मार्च, 1739 के दिन नादिरशाह की सशस्त्र सेना दिल्ली के निहत्थे और रक्षाहीन नागरिकों पर टूट पड़ी.
बेगुनाह नागरिकों की लाशें बिछा दी गईं. दिल्ली के चांदनी चौक, दरीबा कलां, फ़तेहपुरी, फ़ैज़ बाज़ार, हौज़ काज़ी, जौहरी बाज़ार और लाहौरी, अजमेरी और काबुली गेट जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्र लाशों के ढेर लग गए. उस एक दिन में दिल्ली के लगभग तीस हजार स्त्री, पुरुषों और बच्चों की हत्या कर दी गई थी. लगभग दस हजार स्त्री-बच्चों का अपहरण करके ले जाया गया. नादिर के सैनिकों ने जैसा अत्याचार दिल्ली में किया वैसा ही अत्याचार किले के भीतर जनानखाने में हुआ. शाही परिवार की महिलाओं ने भारी अपमान झेला. छोटी बच्चियाँ भी सुरक्षित न रह सकीं.
इन भयावह घटनाओं का विवरण अनेक इतिहासकारों ने लिखा है. समकालीन इतिहासकार रुस्तम अली की “तारीख-ए-हिंद”, अब्दुल करीम की “बयान-ए-वकाई” और आनंद राम मुखलिस की “तजकिरा” में दर्ज है.