स्वराज प्राप्ति के 75वें वर्ष में प्रवेश करता अपना भारत. यह वर्ष स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है. इस गौरवशाली अवसर को सम्पूर्ण रूप (सरकारी व गैर सरकारी, यानि समस्त समाज द्वारा) से मनाने की आवश्यकता है. सरकारी आयोजनों पर काफी कुछ बजट भी खर्च होगा, पर क्या कभी आपने सोचा है कि राष्ट्रीय महत्व के दोनों पर्व स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के लिए हमारा व्यक्तिगत बजट कितना है? जन सहभागिता कितनी है.
जिन पर्व और त्यौहार का हमसे सामाजिक अथवा व्यक्तिगत जुड़ाव है, उन अवसरों पर हमारा खर्च, हमारा उत्साह कितना होता है और 26 जनवरी – 15 अगस्त जैसे राष्ट्रीय पर्व पर हमारा खर्च कितना होता है, कभी सोचा है क्या?
होली, दीपावली, रक्षाबंधन, जन्मदिन, विवाह-वर्षगांठ इत्यादि त्यौहारों-अवसरों के साथ हमारा पारिवारिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जुड़ाव है, होना भी चाहिए, कोई आपत्ति नहीं. ये पारिवारिक, सांस्कृतिक, धार्मिक सम्बन्ध और अधिक प्रगाढ़ होने चाहिएं. विभिन्न परम्परागत पर्व और त्यौहार समाज को जड़ों से जोड़े रखते हैं, नई पीढ़ी तक परम्परा को पहुंचाते हैं. इनका अपना महत्व है.
इनके साथ ही राष्ट्रीय पर्वों के आयोजन में भी जन सहभागिता बढ़ाने की अत्यंत आवश्यकता दिखाई देती है. लोगों को नागरिक जिम्मेदारी का दायित्व बोध करवाने और राष्ट्रीय चरित्र के विकास में इन उत्सवों अत्यंत महत्व है.
हम दीपावली आदि त्यौहार जितने उत्साह और खर्च से मनाते हैं, उस का दस प्रतिशत खर्च भी राष्ट्रीय पर्व पर खर्च करने लग जाएं तो देश में राष्ट्रप्रेम का भाव और संस्कार बहुत गहरे तक जा सकता है.
जिनके बच्चे स्कूल विद्यार्थी हैं, उन परिवारों में तो फिर भी कुछ हलचल रहती है, कुछ ख़र्चा हो जाता है. पर शेष सब परिवारों को तो जैसे 15 अगस्त, 26 जनवरी के राष्ट्रीय पर्व से कोई सम्बन्ध ही नहीं है, एक छुट्टी का अवसर मान लेते हैं.
स्वतंत्रता के बाद बनी सभी शिक्षा नीतियों में, शिक्षा में जीवन मूल्यों की बात की गई, शिक्षा में राष्ट्रप्रेम के संस्कारों की भी बात की गई. और शिक्षा के केंद्रों में इन पर्वों के माध्यम से इस दिशा में लगातार प्रयास भी किया जाता है. किंतु जैसे बालक अपना विद्यार्थी जीवन पूरा करके एक व्यक्ति के रूप में सामाजिक जीवन में प्रवेश करता है तो धीरे-धीरे उसका उसके जीवन में इन महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्वों का स्थान कुछ-कुछ कम होने लगता है. यह अत्यंत चिंताजनक है.
इस वर्ष हमारा देश स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. इसे अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है. केंद्र और राज्य सरकारें अपने स्तर पर स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ को लेकर विभिन्न आयोजन करने वाली हैं. किंतु जनसामान्य में तो बहुत अधिक उत्साह दिखाई नहीं पड़ता. कोरोना की महामारी इसका एक कारण है, किन्तु राष्ट्रीय पर्व के प्रति हमारी उदासीनता और निष्क्रियता तो वर्षों पुरानी है.
काश……स्वतंत्रता के तुरंत बाद से ही इन्हें आमजन का उत्सव बनाने के कुछ प्रयास किये जाते. इन्हें केवल सरकारी समारोह नहीं रखा जाता, बल्कि यह अवसर जन महोत्सव के अवसर होने चाहिएं.
तिरंगा फहराने की आमजन को मिली छूट के बाद अब धीरे-धीरे यह राष्ट्रीय पर्व जनता के उत्सव में बदलते जा रहे हैं. इन उत्सवों के लोक उत्सव में बदलने की गति अधिक होनी चाहिए.
राष्ट्रीय महत्व के यह आयोजन देशभक्ति का संस्कार देने के अच्छे माध्यम हैं और देशभक्ति केवल बच्चों तक ही क्यों रहे, बड़ों में भी तो आनी चाहिए. अतः समाज में व्यापक स्तर पर राष्ट्रीय पर्वों का आयोजन हो, इसकी आवश्यकता है.
कहते हैं राष्ट्रभक्ति सभी सद्गुणों की जननी है. राष्ट्रप्रेम का भाव रहेगा तो भ्रष्टाचार भी रुकेगा, कालाबाजारी भी रुकेगी, जातिवाद भी रुकेगा, बेईमानी भी रुकेगी, मिलावट खोरी भी रुकेगी.
राष्ट्रीय चरित्र का विकास अनेक समस्याओं का समाधान करेगा. हम सभी को मिलकर बहुत सारे प्रयास और प्रयोग करने की आवश्यकता है.
पिछले 5-6 वर्षों से मैंने इस दिशा में अपने कुछ पुराने विद्यार्थियों के साथ एक प्रयोग शुरू किया है. मेरे बहुत सारे पुराने विद्यार्थी देश के विभिन्न भागों में व्यवसायरत हैं. उनका एक व्हाट्सएप ग्रुप बना रखा है और सभी से आग्रह किया जाता है कि अपनी-अपनी दुकान पर 15 अगस्त, 26 जनवरी को राष्ट्रीय ध्वज का वंदन अवश्य करें, आसपास के दुकानदारों को जोड़ते हुए करें, यह क्रम लगातार चल रहा है.
कुछ सामान्य उपाय/प्रयोग हम सब अपने घर पर कर सकते हैं…..
– घर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराएं.
– घर पर भारत माता का चित्र लाकर सपरिवार भारत माता पूजन कर सकते हैं.
– अपने घर बूंदी के लड्डू जरूर लाएं.
– अपने दुकान/ फर्म/ कार्यालय पर भी राष्ट्र ध्वज वंदन- भारत माता पूजन के कार्यक्रम करें.
– आसपास के दुकानदारों परिचितों को भी इस आयोजन में जुड़ने का आग्रह करें.
– सभी लोग राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दें, पुष्प अर्पित करें. इस अवसर पर सबके साथ कुछ मीठा भी हो जाए.
– अपने निकट के किसी स्थान पर राष्ट्रीय पर्व के कार्यक्रम में अवश्य सम्मिलित हों, कार्यक्रम चाहे विद्यालय स्तर का हो या जिला स्तर का.
यह देश हम सबका है और हम सभी को इसकी सार संभाल करनी होगी.
जय भारत
संदीप जोशी
सदस्य NCTE (केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय)