कोरोना की दूसरी लहर के बीच स्वास्थ्य व जीवन की रक्षा सबसे अहम चुनौती है. ऑक्सीजन, वेंटीलेटर, इंजेक्शन, आईसीयू जैसे हम सबके जीवन का हिस्सा बन गए हैं. महामारी ने एक बार फिर हमें यह चुनौती दी है कि कैसे हम जीवन बचा सकते हैं. वर्तमान दौर में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति कारगर साबित हो रही है. उदयपुर की 62 साल की भंवर धाभाई राष्ट्रीय गुणी मिशन के माध्यम से कोरोना काल में जड़ी-बूटियों से काढ़ा बनाकर बांट रही हैं. यह काढ़ा लोगों की इम्युनिटी तो बढ़ा ही रहा है, भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति को भी एक नई पहचान दिला रहा है.
1988 में हुई शुरुआत
भंवर धाभाई कहती हैं, उन दिनों वे सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उदयपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में काम करती थीं. कुराबड़ के आस-पास के गांवों में डिप्थीरिया बीमारी फैल गई थी. मेरी आंखों के सामने 10-15 बच्चों ने दम तोड़ दिया. इस घटना ने मुझे झकझोर कर रख दिया. मैंने दिल्ली तक यह बात पहुंचाई, तब कहीं जाकर डॉक्टरों ने सुध ली. लेकिन तभी मैंने ठान लिया था कि गांवों में लोगों को इलाज के अभाव में नहीं मरने देना है. डॉक्टर नहीं पहुंचते तो हम पारंपरिक जड़ी-बूटियों से ही इलाज करेंगे. इस तरह राष्ट्रीय गुणी मिशन की शुरुआत हुई. आज पूरे देश में हमारा नेटवर्क है. हम लोगों को पारंपरिक जड़ी-बूटियों के बारे में जागरूक करते हैं, हमारे शरीर पर औषधि कैसे काम करती है और कैसे परंपरागत पद्धति से स्वस्थ रहा जा सकता है, इस बारे में लोगों को जागरूक करने का काम करते हैं.
दो लाख से अधिक लोगों को पिलाया काढ़ा
भंवर धाभाई ने बताया कि पिछली बार जब कोरोना का प्रकोप शुरू हुआ था, तो हमने अपनी संस्था के माध्यम से दो लाख से अधिक लोगों को पारंपरिक जड़ी-बूटियों से तैयार किया काढ़ा पिलाया था. इस बार भी काढ़ा वितरण चल रहा है. कोरोना महमारी में सबसे अहम रोल है इम्युनिटी का. वायरस से बचना तो लगभग नामुमकिन है, जिसकी इम्युनिटी बेहतर होगी वो उतना ही जल्दी वायरस को हरा देगा.
उदयपुर के आस-पास जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों में 30-35 लोगों की टीम है, जो जंगलों में रहते हैं. इन्हें अपने बुजुर्गों से जड़ी-बूटियों का ज्ञान प्राप्त हुआ है. भंवर धाभाई के शब्दों में इन्हें ’गुणी’ कहा जाता है. विरासत में मिले जड़ी-बूटियों के ज्ञान के सहारे वे पारंपरिक पद्धति से कई गंभीर बीमारियों का उपचार करते हैं. भंवर धाभाई ने बताया कि राजस्थान सहित देश के कई राज्यों में ऐसे ‘गुणी‘ हैं. ये लोग इलाज के बदले कोई फीस नहीं लेते हैं. डब्ल्यूएचओ, आईयूसीएन और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ जैसी संस्थाओं ने भी इन्हें ट्रडीशनल हेल्थ प्रेक्टिशनर्स का दर्जा दिया है.
जंगलों में छिपा सेहत का खजाना
राष्ट्रीय गुणी मिशन की संस्थापक भंवर धाभाई कहती हैं, हमारे जंगलों में सेहत का खजाना छिपा है. जड़ी-बूटियों का प्रयोग करके डाइबिटीज, अस्थमा, चर्मरोग सहित कई बीमारियों का स्थायी निदान संभव है. बड़ी तालाब के पास ही ऐसी कई जड़ी-बूटियां हैं, जिनसे पेट से जुड़ी कई बीमारियों का उपचार हो सकता है. लेकिन लोगों को जानकारी ही नहीं है.
नई पीढ़ी तक पहुंचे पारंपरिक ज्ञान
धाभाई कहती हैं, धीरे धीरे हमारी जड़ी बूटियों के बारे में जानने वालों की संख्या कम होती जा रही है. नई पीढ़ी को इन सबके बारे में बताने वाले बहुत कम लोग बचे हैं. राष्ट्रीय गुणी मिशन के माध्यम से हम अपने प्राचीन ज्ञान को नई पीढ़ी तक पहुंचाना चाहते हैं. हमारा उद्देश्य पैसा कमाना नहीं है. बस, अनमोल ज्ञान का खजाना इतिहास में दबकर न रह जाए, इसलिए हम चाहते हैं कि सरकार पारंपरिक जड़ी-बूटियों से इलाज की पद्धति को मान्यता प्रदान करे. इसके परिणामों का वैज्ञानिक रूप से अध्ययन होना चाहिए.