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भारतीय संस्कृति के त्यौहारों का उदार स्वरूप

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हरियाणा (विसंकें). भारतीय संस्कृति में त्यौहारों का अपना एक अलग महत्व है. हमारे त्यौहार आपसी भाईचारे, प्यार-प्रेम व सद्भावना का प्रतीक हैं. भारतीय त्यौहार किसी एक समुदाय या जाति विशेष के त्यौहार नहीं हैं. त्यौहारों में हर जाति व समुदाय के लोग शामिल होकर एकता व भाईचारे का परिचय देते हैं. पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के बावजूद भी हमारे त्यौहारों का महत्व कम नहीं हुआ है. बल्कि जैसे-जैसे लोगों में त्यौहारों के प्रति जागरूकता बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे त्यौहारों का महत्व भी बढ़ता जा रहा है. साल दर साल भारतीय संस्कृति के त्यौहारों का उदार स्वरूप उभर कर सामने आ रहा है.

धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व

रक्षाबंधन भाई और बहन के रिश्ते की पहचान माना जाता है. राखी का धागा बांध बहन अपने भाई से अपनी रक्षा का प्रण लेती है. यूं तो भाई-बहन के प्रेम और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं, लेकिन रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धर्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है. रक्षाबंधन के संदर्भ में भी कहा जाता है कि अगर इस पर्व का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व नहीं होता तो शायद यह पर्व अब तक अस्तित्व में रहता ही नहीं.

महाभारत में रक्षाबंधन

महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है. जब युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्यौहार मनाने की सलाह दी थी. शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दी थी. यह भी श्रवण मास की पूर्णिमा का दिन था. कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था.

पुरु ने सिकंदर को जीवनदान दे अदा किया राखी का कर्ज

कहते हैं, सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पुरु को राखी बांध कर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था. पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवन दान दिया था.

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