करंट टॉपिक्स

घर-घर में संस्कारक्षम वातावरण बनाने की आवश्यकता 

Spread the love

नर – नारी तत्वतः कोई भेद नहीं

डॉ. किशन कछवाहा

नारी की महत्ता का उल्लेख ऋग्वेद (4.14.30) में मिलता है. ऊषा के समान प्रकाशवती, हे राष्ट्र की पूजा योग्य नारी! तुम परिवार और राष्ट्र में सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् की अरूण कांतियों को छिटकती हुयी आओ.

‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता.

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रिया..’

जहाँ नारियों की पूजा होती है, सम्मान-सत्कार होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ नारियों की पूजा नहीं होती है, उनका सम्मान नहीं होता है, वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं. ‘भारतीय वाङमय में नारी की महत्ता का अनेकों प्रसंगों में उल्लेख मिलता है.’

“तापस वेष जनक सिय देखी.

भयउ पेमु परितोषु बिसेषी..”

सीताजी के वनवासी जीवन और तपस्विनी वेश देखकर विदेह राज जनक को विशेष आत्मसंतोष की प्राप्ति हुई. उन्होंने कहा कि बेटी.! तुम्हारे आचरण-व्यवहार से आज दोनों कुल पवित्र हो गए.

वैदिक काल में मैत्रेयी, गार्गी, अपाला, घोषा आदि ऋषि कन्याएं वेदों का अध्ययन करती थीं तथा अध्यापन का महत् कार्य भी सम्पन्न करती थीं. इतना ही नहीं गुरूकुलों के सफल संचालन में उनका सराहनीय योगदान भी होता था. भारत के स्वाधीनता संग्राम में महारानी लक्ष्मीबाई, क्रान्तिकारियों की आदरणीय दुर्गा भाभी (दुर्गा देवी) के महान साहस को कैसे विस्मरित किया जा सकता है? वर्तमान समय में भी श्री रामकृष्ण परमहंस की जीवनसंगिनी माँ शारदा, महर्षि अरविन्द के साथ श्री माँ का आध्यात्मिक उत्कर्ष, ये ऐसे योगदान हैं, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रकाश स्तम्भ साबित होंगे.

नारी अबला नहीं, सबला है. सती-सावित्री की कथा, जिसमें यमराज के पास से अपने पति सत्यवान के प्राणों को वापिस ले आने का चित्रण है, वह नारी के ही तप-बल का प्रभाव था.

ईश्वर ने नर-नारी को समान रूप से सामर्थ्यवान बनाया है. यह इस श्लोक से स्पष्ट हो जाता है –

“द्विधा कृत्वामनो देहमर्धेन पुरूषोऽभवत्.

अर्धेन नारी तस्तां स विरागभत्सृज प्रभुः..”

हिरण्य गर्भ ने अपने शरीर के दो भाग कर आधे से पुरूष और आधे से स्त्री का निर्माण किया. सिर्फ नर और नारी की संरचना में अंतर है. भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप इस तथ्य का द्योतक है.

मध्ययुग में जब नारी को संकीर्ण बंधनों में आबद्ध कर दिया गया था, सामाजिक कुरीतियाँ, मूढ़ मान्यताओं और पाखण्ड पूर्ण स्थितियाँ बलवती हो गयी थीं, तब राजा राममोहान राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, महर्षि अरविन्द, पं. मदन मोहन मालवीय, महात्मा फुले आदि महापुरूषों ने आगे आकर अपने व्याख्यानों, लेखों, आन्दोलनों के माध्यम से समाज को दिशा दी. यद्यपि आज भी बहुत कुरीतियां परिवार और समाज में व्याप्त हैं, जिन्हें दूर किये जाने की आवश्यकता है. नारी जागरण, के लिये आज के समय में प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता महसूस हो रही है. गायत्री परिवार द्वारा भी इस दिशा में श्लाघनीय प्रयास किये गये हैं और किये जा रहे हैं.

21वीं सदी को ‘नारी सदी’ घोषित करने के पीछे मंतव्य यही है कि नारी को अवांछनीयताओं से मुक्त कराया जा सके. भारत ही नहीं सारे विश्व में नारी जागरण के लिये युद्ध स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं और सार्थक परिणाम यह सिद्ध कर रहे हैं कि नर और नारी के भेद मिटने लगे हैं. नारी ईश्वर द्वारा निर्मित सम्माननीय एवं वंदनीय अनुपम कृति है. सृजन एवं संवेदन की इस महामाया के प्रति हर स्तर पर सम्मान और श्रद्धा के पावन भाव रोपित करने की आवश्यकता है.

घर-परिवार के बाद, विद्यालय, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में ऐसा पावन वातावरण निर्मित किया जाए, जहां नारी के प्रति गरिमापूर्ण भाव भी जागृत हों और उन्हें पाश्चात्य संस्कारों के दुष्प्रभावों से भी बचाया जा सके. यह कार्य उतना सरल नहीं है. माता-पिता-अभिभावकों द्वारा छात्राओं को प्रेरक स्वाध्याय से भी जोड़े जाने की आवश्यकता है. ताकि श्रेष्ठ विचारों का खाद-पानी उनके मस्तिष्क में भरा जा सके. घर-घर में संस्कारक्षम वातावरण बनाने की आवश्यकता है, ताकि संस्कारवान पीढ़ी का निर्माण किया जा सके.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *