भारतीय सेना को आत्मनिर्भर, सशक्त बनाने के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं. इसी कड़ी में हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने भारतीय थल सेना के लिए 155 मिमी/52 कैलिबर की K9 वज्र-टी स्वचालित तोपों की खरीद के लिए लार्सन एंड टूब्रो (L&T) के साथ एक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किए. सौदे की कुल लागत 7628.70 करोड़ रुपये है. रक्षा मंत्रालय ने कहा कि समझौते पर मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों और कंपनी के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में हस्ताक्षर किए गए.
दक्षिण कोरिया के K9 थंडर हॉवित्जर का भारतीय संस्करण, K9 वज्र-टी तोप अत्याधुनिक तकनीक से लैस है और इसे उच्च सटीकता से लंबी दूरी तक गोले दागने की क्षमता हासिल है. यह शून्य से कम तापमान में भी काम करने में सक्षम है, जिससे इसे ऊंचे पहाड़ी इलाकों में इस्तेमाल किया जा सकता है. तोप की खरीद भारतीय सेना के लिए एक ऐतिहासिक कदम है, जो “मेक इन इंडिया” के तहत पूरी तरह से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने में मदद करेगा.
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, परियोजना से अगले चार वर्षों में 9 लाख से अधिक मानव श्रम दिवस का सृजन होगा और इसमें एमएसएमई सहित विभिन्न भारतीय उद्योगों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा.
* K9 वज्र-टी तोप की मारक क्षमता 38 किलोमीटर है, जो शून्य से लेकर उच्चतम तापमान तक काम करने में सक्षम है.
* 155 मिमी/52 कैलिबर की यह तोप 50 टन वजन की है और 47 किलो का गोला फेंकने की क्षमता रखती है.
* तोप में एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह महज 15 सेकंड में 3 गोले दागने में सक्षम है.
* इसकी चारों ओर घूमने की क्षमता इसे किसी भी दिशा में सटीक हमला करने में सक्षम बनाती है.
* यह तोप सड़क और रेगिस्तान दोनों ही प्रकार की भौगोलिक स्थितियों में समान रूप से संचालन करने में सक्षम है.
K9 वज्र-टी तोप का निर्माण मेक इन इंडिया के तहत किया जा रहा है, जिसमें 80% स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया है. दक्षिण कोरियाई कंपनी हान्वा टेकविन ने तोप की तकनीक प्रदान की, जबकि निर्माण की जिम्मेदारी भारतीय कंपनी एलएंडटी ने ली. मई 2017 में रक्षा मंत्रालय ने वैश्विक बोली के जरिए एलएंडटी को यह ऑर्डर दिया था, और 4500 करोड़ रुपये में 100 K9 वज्र हॉवित्जर बनाने का आदेश दिया था.
गुजरात के हजीरा में जनवरी 2018 में K9 वज्र-टी तोपों के निर्माण के लिए एक इकाई शुरू की गई थी. नवंबर 2018 में भारतीय सेना ने पहली K9 वज्र हॉवित्जर को अपने बेड़े में शामिल किया था. इस परियोजना में 1000 से अधिक एमएसएमई कंपनियों ने भाग लिया और उन्होंने 13000 से ज्यादा पुर्जों का निर्माण किया. ये पुर्जे गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटका और तमिलनाडु जैसे चार राज्यों में बनाए गए.