ग्रामोत्थान का व्रती – सावित्रीबाई फुले महिला एकात्म समाज मंडल
निर्मल पावन भावना, सभी के सुख की कामना
गौरवमय समरस जनजीवन, यही राष्ट्र आराधना, चले निरंतर साधना….
यह गीत हमने सुना भी होगा और गाया भी होगा. गीत के शब्दों को चरितार्थ करते समाज में अनेक व्यक्ति एवं संगठन कार्य कर रहे हैं. लोगों को गौरवपूर्ण जीवन प्रदान करते हैं. अलग-अलग क्षेत्रों में यह संगठन निःस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं. उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने का यथाशक्ति प्रयास करते हैं. मराठवाडा के ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत सावित्रीबाई फुले महिला एकात्म समाज मंडल (SPMESM) एक ऐसी ही संस्था है.
औरंगाबाद के डॉ. हेडगेवार रुग्णालय से संबंधित इस संस्था ने औरंगाबाद, जालना, नंदुरबार आदि जिलों में विविध क्षेत्रों में उत्थान का काम किया है. इसमें कृषि, सह उत्पाद, जल नियोजन, शिक्षा, महिला-बाल कल्याण, वैद्यकीय सेवा, सामाजिक क्षेत्र के अनेकों क्षेत्रों का अंतर्भाव है.
शेलगांव के किसान दत्तु तुपे कहते हैं, हमने सालों तक सूखे का परिणाम देखा है. पीने तक का पानी यहां नसीब नहीं था. खेती के लिए मिलना तो और मुश्किल था. इस साल भी सूखा आया, पर हमें वह सब नहीं झेलना पड़ा जो हर साल झेलना पड़ता है. सावित्रीबाई फुले महिला एकात्म समाज मंडल ने हमारे गांव में जो काम किया है, उसके कारण आज हम जल संपन्न हो चुके है. सिर्फ पीने के लिए ही नहीं, बल्कि प्याज की खेती के लिए भी पानी मिल रहा है. आज आसपास के अनेक गांव पानी से बेहाल हैं, परंतु कम बारिश में भी हमें पानी की कोई समस्या नहीं है. SPMESM ने हमें न केवल पानी, बल्कि जीने का आत्मविश्वास दिया है.
यह केवल दत्तु तुपे का कहना नहीं है. ये हर उस किसान की कहानी है, जिसे SPMESM के जल संधारण प्रकल्प का लाभ मिला है. जल है तो कल है, ऐसा कहा जाता है. महाराष्ट्र के अनेक जिले पानी की कमी से गुजर रहे हैं. विशेष रूप से मराठवाडा और विदर्भ. जालना जिले के चिखली गांव में रहने वाले लोग भी इसी हाल में थे. सावित्रीबाई फुले महिला एकात्म समाज मंडल (SPMESM) की मदद से पिछले साल मराठवाडा के गांव में जल नियोजन करवाया गया है.
चिखली गांव से जुड़ा है, धामनगांव. धामनगांव ने दो साल पहले SPMESM और प्राज फाउंडेशन की मदद से जलस्रोत नियोजन अभियान चलाया. २०१८-१९ में चिखली में जलस्रोत नियोजन का अभियान चलाया गया. मार्च महीने में प्राज फाउंडेशन के विनायक केलकर, SPMESM के डॉ. सुहास आजगांवकर, प्रकाश चोले और सचिन माली गांव में आए. विनायक केलकर ने पूरे क्षेत्र का सर्वेक्षण किया. सर्वेक्षण के पश्चात जलसंधारण का ध्येय सामने रखकर जलस्रोत साफ़ करना, पानी के डोह बनाना, कुएं साफ़ करना, खेती में गड्ढे, खेत जलाशय, गेबियन संरचना बनाना आदि काम किये गए. इस सभी कामों के लिए गांववालों ने श्रम दान किया. गांव के सभी लोग – शिक्षक से लेकर छोटे बच्चों तक अभियान में जुट गए. इसका परिणाम यह हुआ कि सरकारी मदद लिए बिना, सफलता प्राप्त हुई. चिखली गांव केवल एक उदाहरण है.
मराठवाडा क्षेत्र में किया गया कार्य सराहनीय है. प्राज जल अभियान अंतर्गत उज्जैनपुरी, बूटेगाँव, हिवरे, वाल्हा, डोंगरगाँव, सायगाँव, देव पिंपल्गांव, धामनगाँव, में जलडोह बनाना, जल टनल, कुओं की क्षमता बढ़ाना, बांध मरम्मत की गई. इसके कारण ९७४.४७ (दशलक्ष) लीटर पानी की बढ़ोतरी हुई. ACCF एवं NABARD के साथ चलाए गए प्रोजेक्ट गिरिजा अंतर्गत मारसावाली, गिरसवाली, वाघोला, नंदरा आदि गांव में इन प्रयासों से १०५.३८(दशलक्ष) लीटर पानी की बढ़ोतरी हुई. तीसरा प्रकल्प था – प्रोजेक्ट गिरिजा नारला जो PwC India Foundation के साथ चलाया गया. नाला बनाना एवं डोह बनाने से ९.६ (दशलक्ष) लीटर पानी की बढ़ोतरी हुई.
नाना बोरुडे के खेत के पास एक सीमेंट बांध बनाया गया. इसके कारण नियमित बीज बोने के आलावा नाना ने अपने खेत में अंगूर लगाए. अपने ३.५ एकड़ खेत में अंगूर की खेती की. भरपूर पानी और कड़ी मेहनत के कारण केवल साढ़े तीन एकड़ में लगाए अंगूरों ने उन्हें अतिरिक्त १२ लाख रुपये का लाभ दिया. क्षेत्र में ऐसे अनेक परिवर्तन देखे गए.