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पर्व एक, नाम अनेक

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रंगों का पर्व होली देश के विभिन्न अंचलों में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। इसके नाम भी अलग-अलग हैं। प्राचीन संस्कृत साहित्य में होली के अनेक रूपों का विस्तृत वर्णन है। वेंदों विशेषकर ऋग्वेद और सामवेद में रंगों और ऋतुओं के महत्व का वर्णन मिलता है।

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड में होली को फगुआ या फाग कहते हैं। केरल में होली को मंजल कुली और उक्कुली, जबकि पश्चिम बंगाल और ओडिशा में यह ‘बसंत उत्सव’ और ‘डोल पूर्णिमा’ के नाम से जाना जाता है। गुजरात की गोविंदा होली के तो क्या कहने। त्रिपुरा, नागालैंड, सिक्किम और मेघालय में भी होली धूमधाम से मनाई जाती है।

काशी में रंगभरी एकादशी का विशेष महत्व है। जैसे होलाष्टक से ब्रज में होली पर्व शुरू होता है, वैसे ही काशी में रंगभरी एकादशी से होली शुरू होकर 6 दिन तक चलती है। रंगभरी एकादशी भगवान शिव के स्वागत में मनाई जाती है। विवाह के बाद इसी दिन भगवान शिव पहली बार माता पार्वती को विदा कराकर ले जाने के लिए काशी आए थे।

ब्रज क्षेत्र मथुरा, नंदगांव, गोकुल, वृंदावन और बरसाना में अलग तरह से होली खेली जाती है, जिसे लट्ठमार होली कहा जाता है। यहां होली खेलते हुए महिलाएं पुरुषों को लाठियों से मारती हैं। वृंदावन में फूलेरा दूज पर फूलों की होली खेली जाती है।

पंजाब में यह पर्व होला मोहल्ला के रूप में मनाया जाता है। यह एक तरह की योद्धा होली है, जो निहंग सिक्खों द्वारा मनाई जाती है। इस दिन निहंग मार्शल आर्ट का प्रदर्शन करते हैं।

हरियाणा में होली को दुलंडी या धुलंडी कहा जाता है।

मध्यप्रदेश – छत्तीसगढ़ में पहले दिन होलिका दहन, दूसरे दिन धुलंडी और पांचवें दिन रंग पंचमी मनाने की परंपरा है। यहां के जनजातीय समाज में होली विशेष रूप से प्रचलित है।

मणिपुर में मनाई जाने वाली होली को योशांग या ओसांग पर्व कहा जाता है, जो पांच दिन तक चलता है। यहां धुलंडी को पिचकारी कहा जाता है। रंगों के साथ इस पर्व को लोग गायन, नृत्य और अन्य पारंपरिक तरीकों से मनाते हैं। मुख्य आकर्षण थाबल चोंगबा होता है, जो मणिपुरी लोक नृत्य है।

पश्चिम बंगाल में होली को ‘डोल जात्रा’ कहा जाता है। इस दिन लोग राधा-कृष्ण की मूर्ति पालकी में रखकर गुलाल से होली खेलते हैं।

उत्तराखंड-हिमाचल प्रदेश में संगीत के साथ खड़ी होली, बैठकी होली और महिला होली मनाने की परंपरा है। किन्नौर स्थित सांगला घाटी की होली भी विशिष्ट होती है। होली के दौरान पूरी घाटी रंगों में रंगी नजर आती है। संगीत, नुक्कड़ नाटक और नृत्य के साथ मनाए जाने वाले उत्सव के तीसरे दिन रामायण की प्रस्तुति भी की जाती है। उत्तराखंड की कुमाउंनी होली प्रसिद्ध है।

असम में होली को फकुवा, फगवाह या देओल कहा जाता है। यह ‘डोल जात्रा’ की ही तरह होता है। अंतर सिर्फ इतना होता है कि यह पर्व दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन होलिका दहन की कथा के बाद दहन किया जाता है। दूसरे दिन लोग रंगों की होली खेलते हैं।

महाराष्ट्र में होली को ‘फाल्गुन पूर्णिमा’ और ‘रंग पंचमी’ के नाम से जाना जाता है। गोवा में इसे शिमगो या शिमगा कहा जाता है।

तमिलनाडु में होली कामदेव के बलिदान के रूप में मनाई जाती है। इस दिन कामदेव की पूजा की जाती है। इसलिए इस पर्व को काम दहनम कहा जाता है।

कर्नाटक में होली को कामना हब्बा, कामाविलास, कमान पंडिगई और कामा-दाहानाम कहा जाता है। इसे काम के देवता कामदेव के बलिदान से जोड़ा जाता है।

आंध्र प्रदेश-तेलंगाना मेंहोली को ‘मेदुरू होली’ कहा जाता है, पर्व 10 दिन चलता है। इस दौरान विशेष लोकनृत्य ‘कोलतास’ किया जाता है और लोग एक-दूसरे पर रंग-गुलाल फेंकते हैं।

इनपुट – पाञ्चजन्य

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