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कोरोना से जंग का एक साल – विश्व में बढ़ता भारत का महत्व

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के.आर. भारती (सेवानिवृत्त आईएएस)

चीन के वुहान में जन्मे कोरोना वायरस ने मानो चक्रवर्ती राजा बनने की नीयत से अश्वमेध यज्ञ रचाया हो और एक अदृश्य अश्व खुला छोड़ दिया हो. यह अश्व विद्युत वेग से एक देश से दूसरे देश में अनियंत्रित घूमने लगा. इटली, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, इंग्लैंड जैसे समर्थ्यवान देशों को भी इसने अपने घुटने टेकने पर विवश कर दिया. 30 जनवरी, 2020 को यह भारत में भी पहुंच गया.

कोरोना महामारी के पूरे विश्व में फैल जाने के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इसे वैश्विक महामारी घोषित किया गया तथा इसका उपचार मिलने तक बचाव के लिए सोशल डिस्टेंसिंग सहित अन्य उपाय सुझाए गए. कोरोना की रोकथाम के लिए विश्व भर में वैक्सीन का विकास किया जा रहा है और बहुत से देशों ने वैक्सीन इजाद भी कर ली है तथा वैक्सीन का परीक्षण जोरों से चल रहा है. भारत भी किसी से पीछे नहीं है – कोवैक्सीन तथा कोविशील्ड नाम से दो वैक्सीन भारत ने इजाद कर ली और टीकाकरण अभियान भी देश में चल रहा है.

भारत में कोरोना के विरुद्ध जंग को एक वर्ष हो गया है. 30 जनवरी, 2020 को भारत में कोरोना वायरस का पहला केस सामने आया था और यह लेख लिखने के समय 30 जनवरी का दिन है. यह वर्ष संघर्षपूर्ण वर्ष रहा, कई चुनौतियां देश के सामने आईं, देश के नेतृत्व ने जनता का सही मार्गदर्शन किया. बिना किसी बड़े नुकसान के देश को कोरोना वायरस के इस भंवर से बाहर निकालने में सरकार व समाज ने अपनी भूमिका अदा की. लोगों ने भी अपने नेतृत्व का भरपूर सहयोग किया.

आपदाएं और विपत्तियां समय-समय पर देश व विश्व में आती रही हैं और आती रहेंगी. हम इनका कैसे मुकाबला करते हैं, यह सरकार और समाज पर निर्भर करता है. विश्व में 10 करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने कोरोना संक्रमण की मार झेली, 22 लाख लोगों की जान गई. भारत में भी संक्रमण का आंकड़ा एक करोड़ से अधिक है और 1 लाख 54 हज़ार लोग मौत का ग्रास बन चुके हैं. लेकिन भारत की जनसंख्या को देखते हुए आंकड़े भयावह नहीं कहे जा सकते. मृत्यु दर 2% से भी कम है जो अन्य विकास संपन्न देशों की मृत्यु दर से कहीं कम है. यह देश के नेतृत्व की सूझबूझ और समाज की सजगता से संभव हो पाया है.

कोरोना के भारत में दस्तक देते ही देश सतर्क हो गया, दूसरे देशों से यात्रियों के आने-जाने पर रोक लगा दी गई, सभी हवाई अड्डों पर कोरोना वायरस की जांच की जाने लगी. लोगों की आवाजाही कम हो यातायात के साधनों पर नियंत्रण किया गया. कैबिनेट सचिव ने प्रदेशों के मुख्य सचिवों व स्वास्थ्य  सचिवों से बैठक कर कोरोना नियंत्रण की चर्चा की. देश के शीर्ष नेतृत्व यानि प्रधानमंत्री ने देश के लोगों को संबोधित करते हुए 22 मार्च, 2020 को जनता कर्फ्यू की घोषणा की तथा लोगों को घरों में रहने की सलाह दी. उसी शाम फ्रंटलाइन वर्कर के प्रोत्साहन के लिए अपने अपने घरों पर ताली-थाली बजाने का आह्वान किया, जिसं देशवासियों ने उत्साहवर्धक समर्थन दिया. 24 मार्च को 21 दिन के लिए संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा हुई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए नारा दिया – जान है तो जहान है…..

इसका सीधा सीधा मतलब था कि सरकार के लिए लोगों का जीवन सर्वोपरि है. चाहे लॉकडाउन के कारण देश की आर्थिकी को नुकसान क्यों न हो. एक के बाद एक करके देश में चार लॉकडाउन लगाए गए. परंतु सभी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति यथावत चलती रही. खाद्य वस्तुओं और दवाइयों के कारखानों तथा दुकानों स्टोरों को चालू रखा गया ताकि आमजन को कठिनाई न हो. काम धंधे बंद होने के कारण प्रवासी मजदूर पैदल ही अपने घर गांव चल पड़े. हालांकि सरकार ने उनके लिए विशेष रेलगाड़ियां चलाईं, परंतु संख्या अधिक होने के कारण अत्यधिक प्रवासी मजदूर सड़कों और रेल ट्रैक पर चलते नजर आए. सरकार ने अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए प्रवासी मजदूरों के लिए व्यवस्थाएं कीं. इस काम काम में समाजसेवी व धार्मिक संस्थाओं ने भी सरकार का भरपूर सहयोग किया.

कोरोना काल में लोगों को राहत पहुंचाने के उद्देश्य से पीएम केयर्स फंड का गठन किया गया. जिसमें व्यक्तियों व सामाजिक संस्थाओं ने खुल कर धन दिया. सरकार ने जहां प्रवासी मजदूरों को उनके गांव में ही मनरेगा में रोजगार उपलब्ध करवाया, वहीं आमजन को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत 5 किलोग्राम प्रति व्यक्ति अतिरिक्त राशन सब्सिडी पर 8 महीने तक लगातार उपलब्ध करवाया ताकि लोगों को भूख का सामना ना करना पड़े. 20 करोड़ महिलाओं के खातों में 500 रुपए प्रति माह की दर से तीन महीनों तक जमा करवाए गए. किसानों की सम्मान राशि समय पर प्रदान की गई तथा गृहणियों को मुफ़्त सिलिंडेर भी दिए गए. छोटे बड़े उद्योगों को सहज ऋण उपलब्ध करवाने की घोषणा की गई, रेहड़ी फड़ी वालों को भी 10,000 तक का सस्ता ऋण उपलब्ध करवाने की घोषणा की गई. लॉकडाउन को चरणबद्ध तरीके से अनलॉक किया गया, उद्योग धंधे भले ही धीमी रफ्तार से चलने लगे. विद्यार्थियों के लिए ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करना सुनिश्चित किया गया, कंपनियों को अपने कर्मचारियों को घर से ही काम करने की इजाजत देने को कहा गया और इसे सुनिश्चित भी किया गया. देश के प्रधानमंत्री ने अब देश को नया नारा दिया – जान भी और जहान भी

कोरोना की जंग में वैसे तो समाज के हर वर्ग का योगदान रहा. परंतु डॉक्टरों, नर्सों, पैरामेडिकल स्टाफ, अस्पताल में कार्यरत सफाई कर्मचारियों का योगदान प्रथम श्रेणी का था. देश ने उन्हें फ्रंटलाइन के कोरोना वॉरियर की संज्ञा दी और यह बिल्कुल सत्य भी है. अपने संक्रमण की परवाह किए बगैर कोरोना रोगियों के उपचार व बचाव का कार्य किसी साहसिक कार्य से कम नहीं था. कई डॉक्टरों, नर्सों इत्यादि ने कोरोना वायरस से लड़ते-लड़ते अपनी जान गवाई.

जब कोरोना वायरस आया तो पीपीई किट भी उचित मात्रा में उपलब्ध नहीं थी, न ही देश में कोरोना वायरस की जंग के लिए उचित मात्रा में प्रयोगशाला थी. सरकार के प्रयासों से धीरे-धीरे देश की क्षमता निर्माण होने लगा, पीपीई किट बनने लगे, मास्क तैयार होने लगे और देखते ही देखते आवश्यकता अनुसार यह सब उपकरण और वस्तुएं देश में ही रिकॉर्ड समय में तैयार हो गईं. प्रयोगशालाओं की संख्या उतरोत्तर बढ़ती चली गयी. दिन में लाखों टेस्ट कोरोना के होने लगे. जगह-जगह क्वारंटीन सेंटर बनाए गए, जहां कोविड-19 से ग्रस्त लोगों को अलग से रखा गया ताकि दूसरों को संक्रमण से बचाया जा सके. कोविड-19 को समर्पित अलग अस्पतालों का निर्माण हुआ. सरकारी तंत्र के साथ-साथ सामाजिक संगठन डॉक्टरों व पैरामेडिकल स्टाफ को पीपीई किट, मास्क, सैनेटाइजर उपलब्ध करवाने लगे. आम जनता को भी सरकार ने आशा वर्कर व आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से निःशुल्क मास्क वितरित किए. महिला मंडल, युवक मंडल तथा अन्य कई गैर सरकारी संस्थाएं अपने अपने ढंग से कोरोना नियंत्रण में योगदान देने के लिए आगे आए. समय रहते देश में लॉकडाउन लगा देने से कोरोना की त्रासदी को बड़ा होने से सरकार व लोगों ने मिलकर बचा लिया.

जैसे हर जंग में होता आया है, इस जंग में भी देश को जानमाल की क्षति हुई. देश की आर्थिक व्यवस्था को नुकसान उठाना पड़ा. विकास दर शून्य से भी नीचे गिर गई, सकल घरेलू उत्पाद में कमी आई. लेकिन अब अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी है. विभिन्न एजेंसियों के अनुमान मानें तो आने वाले समय में विश्व में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था भारत की होगी.

भारत ने न केवल अपने देश की जनता का ध्यान रखा, बल्कि विश्व के अन्य देशों की भी कोरोना से जंग में सहायता की. अमेरिका सहित कई देशों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवाई उपलब्ध करवाई, दवाई को आरंभिक दौर में कोविड-19 के उपचार के लिए उपयुक्त माना गया था. इतना ही नहीं विभिन्न देशों को आवश्यक उपकरण उपलब्ध करवाए.

वहीं, अब जब भारत के वैज्ञानिकों ने कोवैक्सीन व कोवीशील्ड, दो वैक्सीन का निर्माण कर लिया है और इनके टीकाकरण का कार्य भी प्रारंभ हो गया है. यह देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है. प्रथम चरण में फ्रंटलाइन वर्कर्स को यह वैक्सीन दी जा रही है. चरणबद्ध तरीके से अन्य नागरिकों को भी यह वैक्सीन दी जाएगी ताकि कोरोना बीमारी को समूल नष्ट किया जा सके.

अब हमने कोरोना वैक्सीन तैयार कर ली है तो भारत ने व्यावसायिक लाभ को एक तरफ रखते हुए पड़ोसी देशों के साथ ही विभिन्न देशों को निःशुल्क दवा उपलब्ध करवाने की व्यवस्था की है. कोरोना वैक्सीन के लाखों डोज़ पड़ोसी देशों को भेजे जा चुके हैं, तथा अन्य देशों को वैक्सीन उपलब्ध करवाने का क्रम जारी है.

नोवल कोरोना वायरस की इस अप्रत्याशित बीमारी से कई देशों ने भारत से सीख ली है. विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित अंतरराष्ट्रीय संगठन व देश विभिन्न अवसरों पर भारत के प्रयासों व भारत द्वारा प्रदान की गई सहायता की प्रशंसा क कर चुके हैं. इससे भारत का वैश्विक महत्व बढ़ा है.

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