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प्रशांत पोळ
21 जुलाई, 2023 को क्रिस्टोफर नोलन का ‘ओपनहायमर’ चलचित्र, भारतीय सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुआ। जे रॉबर्ट ओपनहायमर को सारा विश्व, ‘अणुबम’ के जनक के रूप में जानता है। इसलिए, इसके बारे में लोगों के मन में उत्सुकता थी। भारत में यह सिनेमा चर्चित हुआ, वह अलग ही कारणों से। रॉबर्ट ओपनहायमर की भूमिका करने वाला किलीयन मर्फी, फ्लोरेंस बंग के साथ एक अंतरंग दृश्य में, ‘भगवद्गीता’ की कुछ पंक्तियां बोलता है, ऐसा एक दृश्य सिनेमा में दिखाया है। इस दृश्य के कारण यह भारत में विवादित हुआ। और विवादित होने के कारण हिट भी हुआ। इस दृश्य को छोड़ दें, तो भी सामान्य व्यक्ति के मन में एक बात पक्की बैठ गई कि रॉबर्ट ओपनहायमर भारतीय दर्शन का प्रशंसक था, अनुगामी था। और भगवद्गीता का उसे अभ्यास था।
रॉबर्ट ओपनहायमर मूलतः अमेरिकी भौतिक शास्त्रज्ञ थे, शोधकर्ता थे। धर्म से ज्यू थे। उनका जन्म न्यूयॉर्क का था, लेकिन उन्होंने भौतिक विज्ञान में डॉक्टरेट की, जर्मनी के गोटिंगगन विश्वविद्यालय से। वह वर्ष था 1927। इसी समय उनका परिचय भारतीय दर्शन से हुआ। जर्मन विश्वविद्यालयों में उन दिनों में भी संस्कृत का अध्ययन करने वाले और पढ़ाने वाले अनेक थे। इसलिए ओपनहायमर को भारतीय दर्शन, तत्वज्ञान और प्राचीन ग्रंथो में रुचि उत्पन्न हुई।
आगे चलकर ओपनहायमर जब अमेरिका में बर्कले के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगे, तब उन्होंने ऑर्थर राइडर (संस्कृत प्राध्यापक) की मदद से अनेक प्राचीन भारतीय ग्रथों का अध्ययन किया। उनकी विशेष रुचि भगवद्गीता में थी। उनकी राय थी कि ‘भगवद् गीता, विश्व की किसी भी भाषा के सबसे सुरीले दर्शन का गीत है’। (Bhagavad-Gita is the most beautiful philosophical song). उनके अध्ययन के मेज पर भगवद्गीता रखी रहती थी। अपने परिचितों को वह भगवद्गीता का अंग्रेज़ी अनुवाद भेंट के रूप में देते थे। आगे चलकर उन्होंने न्यू मैक्सिको के लॉस अलामोस के निकट, अलामोगार्दो में विश्व के पहले परमाणु बम का परीक्षण किया। इसलिए लॉस अलामोस के ब्रेडबरी साइंस म्यूजियम में, जो ‘यू एस नेशनल सिक्योरिटी रिसर्च सेंटर’ है, उसमें ओपनहायमर की दो व्यक्तिगत वस्तुएं रखी हैं।
एक है कुर्सी, जिस पर बैठकर अलामोस के उस ऑफिस में, ओपनहायमर ने, परमाणु विखंडन की बारिकियों पर काम किया था। दूसरी चीज है भगवद्गीता की वह प्रतिलिपि (कॉपी), जिसके प्रथम पृष्ठ पर ओपनहायमर ने उनके अद्याक्षर (initials) लिखे हैं।
दूसरे विश्व युद्ध के समय अमेरिका को परमाणु बम तैयार करने की जल्दी थी। इसलिए लॉस अलामोस में 1943 के अप्रैल माह में एक प्रयोगशाला (लैब) प्रारंभ हुई। इसके प्रमुख के नाते ओपनहायमर की नियुक्ति हुई थी। प्रयोगशाला के पास ही, अलामोगार्दो परमाणु परीक्षण का स्थान था। विश्व युद्ध अपने अंतिम चरण में था, तब रॉबर्ट ओपनहायमर ने, 16 जुलाई 1945 को, स्थानीय समय अनुसार, प्रात: 5:29 पर अलामोगार्दो में परमाणु का छोटा सा परीक्षण किया। इस परीक्षण को उन्होंने ‘ट्रिनिटी टेस्ट’ नाम दिया।
यह परीक्षण एक जबरदस्त अनुभव था। लॉस अलामोस और अलामोगार्दो पूरा रेगिस्तान का प्रदेश है। परीक्षण के समय अत्यंत प्रखर, अत्यंत तेजस्वी ऐसा प्रकाश निर्माण हुआ, और जबरदस्त ऊर्जा (ऊष्मा) निर्माण हुई।
यह प्रकाश देखते ही रॉबर्ट ओपनहायमर को भगवद्गीता के ग्यारहवें अध्याय का 12वां श्लोक याद आया। अर्थात ओपनहायमर को संपूर्ण गीता कंठस्थ थी, और उसका अर्थ भी पता था।
ओपनहायमर को जिस श्लोक का स्मरण आया, वह श्लोक था –
दिवी सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता।
यदि भाः सद्रृशी सा स्याद्धासस्तस्य महात्मा।।
बालमोहन लिमये ने इस श्लोक का अर्थ देते समय अर्जुनवाडकर जी के ‘गीतार्थ दर्शन’ की पंक्तियां दी है, वह इस प्रकार हैं –
‘हजारों सूरज की रोशनी होगी यदि प्रकट आकाश में एक ही समय। तो वह होगी शायद उस रोशनी जैसी जो है उस परमात्मा की।।
कौरव पांडव युद्ध में अर्जुन को उपदेश करते समय भगवान श्रीकृष्ण जिस प्रकार अपने प्रखर और तेजस्वी रूप में प्रकट होते हैं, बिल्कुल वैसा ही अनुभव ओपनहायमर को परमाणु परीक्षण के समय आया।
सनद रहे, ओपनहायमर भावनाओं में बहकर, कुछ भी बोलने वाले व्यक्ति नहीं थे। वह विश्व के पदार्थ विज्ञान के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक थे। वह परमाणु शास्त्रज्ञ थे।
विश्व के, सबसे पहले, छोटे से परमाणु बम का विस्फोट होने के बाद, जमीन पर और आसमान में जो अभूतपूर्व स्थिति निर्माण हुई थी, उसके कारण रेगिस्तान की रेत पिघल कर हल्के हरे रंग की कांच बन गई। यह स्थिति अत्यंत भयावह थी। यह सब देखकर ओपनहायमर को गीता के 11वें अध्याय का 32वां श्लोक याद आया –
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्त:।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा:॥
अर्थात – विनाश का रूप हूं मैं, दुर्दांत काल हूं मैं। जगत का विनाश करने, प्रवृत्त हूं मैं। तू युद्ध कर, न कर, समाप्त होंगे सारे योद्धा। जो खड़े हैं, शत्रु के सैन्य में।
‘एक विश्व प्रसिद्ध, पदार्थ विज्ञान शोधकर्ता, परमाणु वैज्ञानिक, भारत के प्राचीन ग्रंथों से इतना प्रभावित है’, इतना ही इसका महत्व नहीं है। हमारे प्राचीन ज्ञान परंपरा में अनेक बातों की स्पष्टता थी, जो ओपनहायमर जैसे लोगों के समझ में आई, और उनके मन को छू गई।
केवल गीता ही नहीं, तो भर्तृहरी के ‘शतकत्रय’ जैसे ग्रंथों का भी उन्होंने अध्ययन किया था। भर्तृहरि ने सौ -सौ श्लोकों के ‘नीति शतक’, ‘श्रृंगार शतक’, और ‘वैराग्य शतक’ लिखे। यह तीनों जिस ग्रंथ में हैं, वह ग्रंथ है ‘शतकत्रय’। विशेषतः जीवन से संबंधित तत्वज्ञान का, दर्शन का, सर्वांगीण विचार करने वाला यह ग्रंथ, ओपनहायमर संस्कृत में पढ़ते थे, यह विशेष है।
अनेक पदार्थ विज्ञान के वैज्ञानिकों को संस्कृत ग्रंथों का आकर्षण था, क्योंकि पदार्थ विज्ञान के अनेक मूलभूत सिद्धांत प्राचीन ग्रंथों में पहले से ही दिए हैं। ओपनहायमर का ही उदाहरण लेते हैं। पहले परमाणु विस्फोट के 7 वर्षों के बाद, ओपनहायमर रोचेस्टर विश्वविद्यालय में ‘परमाणु विखंडन’ विषय पर भाषण देने गए। भाषण के बाद प्रश्न – उत्तर के लिए समय था। उनमें एक विद्यार्थी ने ओपनहायमर को प्रश्न पूछा, “आलमोगार्दो में, मैनहैटन परियोजना में जो परमाणु का विस्फोट किया गया, वह पहला परमाणु विस्फोट था क्या?”
ओपनहायमर ने तत्काल, बड़ी सहजता से जवाब दिया, “हां, आधुनिक कालखंड में निश्चित रूप से।”
इस उत्तर से ओपन हायमर को वास्तव में क्या कहना था?
(क्रमशः)