जबलपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य राम माधव ने कहा कि आजाद हिन्द फौज ने 1944 में मणिपुर मोरांव गांव में देश के उस हिस्से को स्वाधीन घोषित करते हुए सम्पूर्ण भारत की स्वतंत्रता का उद्घोष किया और प्रथम तिरंगा लहराया था. भारत को स्वाधीनता देने के निर्णय का विरोध करने वाले पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल को उत्तर देते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री एटली ने कहा था कि भारत को स्वाधीनता देनी ही होगी क्योंकि ब्रिटिश सेना के भारतीय सैनिक हमारे खिलाफ हैं. यह आजाद हिन्द फौज के कारण हुआ था. वे स्वाधीनता अमृत महोत्सव के अवसर पर मानस भवन में आयोजित व्याख्यानमाला में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि ब्रिटिश लोग और उनसे प्रभावित लोग कहते थे कि अंग्रेजों के जाने के बाद भारत में अराजकता होगी और यहाँ लोकतंत्र कभी सफल नहीं होगा. लेकिन हमने सिद्ध कर दिया कि भगवान श्री राम के समय से हमारे रक्त में, हमारे संस्कार में है. स्वाधीनता और स्वतंत्रता के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि 15 अगस्त को हम स्वाधीन हुए, स्वतंत्र नहीं. अपना तंत्र कैसा हो इस पर गांधी जी ने कहा था कि हमें राजनैतिक आजादी मिली है, लेकिन देश के करोड़ों लोगों को सामाजिक, आर्थिक और नैतिक आजादी मिलना शेष है. हिन्दू संस्कृति विपरीत विचारों के समन्वय, सबको स्थान देने के लिए जानी जाती है, इसलिए यहाँ जातिगत विद्वेष का कोई स्थान नहीं होना चाहिए, तभी स्वतंत्रता आएगी.
आत्मनिर्भर भारत केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, सारे समाज का दायित्व है. तब अपना तंत्र होगा. जब एक महिला आधी रात को भी सड़क पर निर्भय होकर घूम सके, एक स्त्री के स्वप्नों को पूरा करने का अवसर मिले, तब स्वतंत्रता सार्थक होगी.
इस अवसर पर महाकौशल की मातृशक्ति का स्वाधीनता संग्राम में योगदान नामक पुस्तक का विमोचन हुआ. मुख्य अतिथि समाजसेवी वासुदेव खत्री सांवल ने कहा कि हम स्वाधीनता के अनगिनत सैनानियों को नहीं जानते, जिन्होंने अपना सब कुछ बलिदान किया और उनके बारे में देश को बताया नहीं गया. जिन लोगों ने विभाजन की त्रासदी को सहा है, उनके कष्टों और हानियों को भी आज स्मरण किया जाना चाहिए. स्वदेशी चेतना और स्वावलंबी भारत आज हमारे विचार और व्यवहार के केंद्र में होना चाहिए.
स्वाधीनता अमृत महोत्सव समिति की महानगर सह संयोजिका भावना तिवारी ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखी.