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पंच परिवर्तन कार्यक्रम नहीं, एक आंदोलन; समाज में होगा सकारात्मक ऊर्जा का संचार

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प्रोफेसर रवीन्द्र नाथ तिवारी

भारत अपनी सनातन संस्कृति, सभ्यता, और परंपराओं के कारण अनादिकाल से विश्व का मार्गदर्शन करता आया है। आज, जब देश 21वीं शताब्दी में एक नई ऊंचाई की ओर अग्रसर है, समाज में अनुशासन, देशभक्ति और समरसता की पुनर्स्थापना एक प्रमुख आवश्यकता बन गई है। इस दिशा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पिछले 99 वर्षों में निःस्वार्थ सेवा और समर्पण से राष्ट्र निर्माण में अतुलनीय एवं अविस्मरणीय योगदान दिया है। समाज में अनुशासन और सकारात्मक परिवर्तन लाने के उद्देश्य से संघ ने ‘पंच परिवर्तन’ का आह्वान किया है, जो न केवल विकसित भारत की नींव रखने में सहायता करेगा, बल्कि समाज को एक नई दिशा देगा। इस पंच परिवर्तन में पाँच आयाम शामिल हैं – स्व का बोध, नागरिक कर्तव्य, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता और कुटुंब प्रबोधन।

स्व का बोध

‘स्व का बोध’ का तात्पर्य अपने मूल, अपने देश और अपनी संस्कृति को पहचानना। इसका उद्देश्य स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देना और आत्मनिर्भरता की भावना को सशक्त करना है। जब प्रत्येक नागरिक स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करेगा, तो देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। मितव्ययता का भाव और देश में ही रोजगार के अवसर बढ़ाने का संकल्प देश को आत्मनिर्भर बनाएगा। ‘स्व’ केवल व्यक्ति का नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र की चेतना का भी आधार है। यह आत्म-संयम, त्याग और समरसता पर केंद्रित है। ‘स्व’ का चिंतन हमें हमारे स्वधर्म और कर्तव्यों का बोध कराता है। राष्ट्र निर्माण में ‘स्व’ का भाव अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्वतंत्रता के आंदोलन में स्वधर्म, स्वराज और स्वदेशी ने आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त किया।

नागरिक कर्त्तव्य

नागरिक कर्तव्यों के प्रति सजगता देश को उन्नति की ओर ले जाती है। भारतीय संविधान में मूल अधिकारों के साथ-साथ मूल कर्तव्यों का भी उल्लेख है। कानून का पालन, सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान और सामाजिक सद्भावना को बनाए रखना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। एक अनुशासित और जागरूक समाज ही एक समृद्ध राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। विशेषकर युवाओं को नशाबंदी, दहेज प्रथा और मृत्यु भोज जैसी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध सक्रिय भूमिका निभानी होगी।

पर्यावरण संरक्षण

भारतीय सनातन संस्कृति में पृथ्वी की रक्षा के लिए वृक्ष और जल का महत्व अनादिकाल से ही रहा है। यह संस्कृति प्रकृति के महत्व को स्वीकारते हुए प्रत्येक जनमानस से इसके संरक्षण की अपेक्षा करती है। आज पर्यावरण की रक्षा एक वैश्विक चुनौती है। विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2023 के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक है। लगभग 136 मिलियन भारतीय (भारतीय जनसंख्या का 96 प्रतिशत) विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित स्तर 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से सात गुना अधिक पीएम 2.5 सांद्रता का सामना करते हैं। 66 प्रतिशत से अधिक भारतीय शहरों में वार्षिक औसत 35 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक दर्ज किया गया है।

भारत सहित दुनिया भर में नदियों का प्रदूषण स्तर प्रमुख चिंता का विषय है। पंच परिवर्तन का यह आयाम जल संरक्षण, प्लास्टिक के उपयोग को समाप्त करने और हरियाली को बढ़ावा देने पर जोर देता है। पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने और उसकी रक्षा के लिए अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगठन तत्परता से कार्य कर रहे हैं, फिर भी पर्यावरणीय मुद्दों के समाधान में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। इन समस्याओं का वास्तविक समाधान आधुनिक उपभोक्तावादी व्यवहार को नकार कर भारतीय सनातन मूल्यों एवं परंपराओं में निहित प्रकृति के प्रति अनन्य प्रेम को पुनः स्थापित करना होगा।

सामाजिक समरसता

सामाजिक समरसता के अंतर्गत समाज में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, सहिष्णुता, सहयोग, बंधुत्व और समानता को बढ़ावा देना। भारत में प्राचीन काल से ही यज्ञ, अनुष्ठान, पर्व जैसे सामाजिक पहलू समरसता स्थापित करते रहे हैं। वेद, पुराण और उपनिषद जैसे धार्मिक ग्रंथ सद्भावना और प्रेम का संदेश देते हैं। आज जाति और धर्म के भेदभाव को मिटाकर समाज में समानता और भाईचारे का भाव स्थापित करना समय की मांग है। पंच परिवर्तन के अंतर्गत समाज के विभिन्न वर्गों के साथ मिल-जुलकर त्योहार मनाने, मंदिर, पानी और श्मशान में भेदभाव समाप्त करने जैसे प्रयास सामाजिक समरसता को सशक्त बनाएंगे, जिससे समाज में भावनात्मक सहयोग और समानता का वातावरण तैयार होगा।

कुटुम्ब प्रबोधन

भारत में प्राचीन काल से ही संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलन में रही है, जो लोगों में भावनात्मक सहयोग, चरित्र निर्माण एवं भावी पीढ़ी के समुचित विकास में सहायक रही है। परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई है और इसके मजबूत होने से ही समाज मजबूत बनता है। बढ़ते एकल परिवारों के चलन को रोकने और परिवारों में संवाद, संस्कार, और संवेदनशीलता को बढ़ावा देने के लिए “कुटुम्ब प्रबोधन” आवश्यक है। परिवारों में सप्ताह में एक बार पूजा, महापुरुषों के विचारों पर चर्चा, और बच्चों को संस्कार देने की पहल भारतीय संस्कृति को संरक्षित रखने में मदद करेगी।

पंच परिवर्तन केवल विचार और चर्चा का विषय नहीं है; इसे आचरण में उतारने की आवश्यकता है। प्रत्येक नागरिक को छोटे-छोटे प्रयासों से इसकी शुरुआत करनी होगी। यह परिवर्तन व्यक्तिगत स्तर से शुरू होकर सामूहिक स्तर तक पहुंच सकता है। पंच परिवर्तन केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक आंदोलन है, जो समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करेगा। यह भारत को आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक रूप से सशक्त बनाएगा। जब समाज में समरसता, पर्यावरण संरक्षण, नागरिक कर्तव्यों के प्रति जागरूकता, स्वदेशी अपनाने की आदत, और परिवारों में संस्कार उत्पन्न होंगे, तब भारत एक सशक्त और संतुलित राष्ट्र के रूप में उभरेगा। राष्ट्रांग होने के नाते प्रत्येक जनमानस को अपने-अपने स्तर पर इस दिशा में यथा संभव प्रयास करने होंगे फलस्वरूप भारत विकसित राष्ट्र बनकर विश्वगुरु के पद पर प्रतिष्ठित होगा।

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