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अपनी मातृभूमि, प्राचीन संस्कृति के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले परमवीर अब्दुल हमीद हम सबके आदर्श – डॉ. मोहन भागवत जी

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धामूपुर, गाजीपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने परमवीर अब्दुल हमीद की जयन्ती के अवसर पर धामूपुर (गाज़ीपुर) में ‘मेरे पापा परमवीर’ पुस्तक का विमोचन कार्यक्रम में कहा कि अपनी मातृभूमि, प्राचीनकाल से चलती आयी संस्कृति के लिए अपना प्राणोत्सर्ग करने वाले वीर योद्धा परमवीर अब्दुल हमीद हम सबके आदर्श हैं. उनके जीवन का आदर्श हम सबको एक सूत्र में बांधता है. कितना भी विपरीत समय हो, कुछ बातें हैं जो विस्मृत नहीं होतीं, मिटती नहीं हैं और समय आने पर हृदय से प्रकट होती हैं. परमवीर अब्दुल हमीद जी का बलिदान हमारे लिए सदैव स्मरणीय रहेगा. उनका जीवन अपनी मातृभूमि के लिए, राष्ट्र के लिए समर्पित हुआ. और हमारे लिए उदाहरण बन गया.

सरसंघचालक जी ने उपस्थित लोगों का आह्वान किया कि राष्ट्र जीवन में परमवीर अब्दुल हमीद के समर्पण, देश भक्ति एवं राष्ट्रीय एकता के भाव का स्मरण कर अपने जीवन में अगर कुछ कमी हो तो उसे प्रति वर्ष सुधारना चाहिए. हम एकदम अच्छे नहीं बन सकते, लेकिन थोड़ा-थोड़ा कर अच्छा बन सकते हैं. उन्होंने कहा कि बलिदानियों की चिताओं पर जो हर वर्ष मेले लगते हैं, उनका यही प्रयोजन होता है.

अपनी मातृभूमि के लिए प्राणों का बलिदान करने वाले वीर योद्धा परमवीर सेनानी अब्दुल हमीद को जीवन पर्यन्त लोग याद करेंगे. बलिदानी अमर हो जाते हैं, उनका बलिदान अपने आप में एक महान कृति है. जीवन जीना है तो उपभोग के लिए नहीं जीना, आनन्द के लिए नहीं जीना, जीवन जीकर उसके अनुभवों के आधार पर इस सृष्टि को बनाने वाले रचनाकार से साक्षात मिलना है. तो ये बहुत कठिन तपश्चर्या है. इसमें कौन सफल होते हैं? ऐसे दो प्रकार के लोग होते हैं. एक वह होता है जो योगी बनकर सतत सक्रिय रहता है, आत्म साधना में एवं लोक सेवा में और दूसरा रण में सत्य के लिए, न्याय के लिए, पराक्रम पूर्वक सीने पर घाव झेलकर अपनी आत्माहुति देने वाला होता है.

अपनी मातृभूमि के लिए परमवीर अब्दुल हमीद ने जो पराक्रम कच्छ के रण में किया, अपने आप ही वो उत्तम गति के अधिकारी हो गए हैं. परन्तु उनकी स्मृति सतत जागृत रखना, उस स्मृति को जागृत रखते हुए अपने जीवन को भी इसी प्रकार स्वार्थ को छोड़कर राष्ट्र के लिए लगाना, ये जितने भी दिन, जितने भी वर्ष तथा युगों तक चलाते हैं, उतने युगों तक बलिदानी अमर होते हैं क्योंकि मनुष्य के जीवन की कल्पना यही है.

डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि मनुष्य का विकास पशुओं की तरह केवल अपनी चिंता करना नहीं, मनुष्य जितने ज्यादा लोगों की चिंता करता है, वह उतना ही बड़ा होता है. केवल अपनी चिंता करने वाले को कोई बड़ा नहीं कहता. उन्होंने कहा कि परमवीर अब्दुल हमीद जैसे लोग हमारे सामने उदाहरण हैं. एकाएक नहीं होता. जवान देश की सीमा पर लड़ते हैं. लड़ाई में गोली आ गई, लग गई, इसलिए मर गए, ऐसा नहीं होता. उन गोलियों के सामने जो आदमी खड़ा है, उसके सामने दो ही विकल्प होते हैं, वो चाहे तो भाग सकता है, लेकिन वह भागता नहीं. वह कहता है – मुझे सीमा के रक्षण का दायित्व मिला है. इतनी सारी गोलियां चल रहीं, पता नहीं किस गोली पर मेरा नाम लिखा होगा. लेकिन मुझे भागना नहीं है. प्राण देकर भी रक्षा करनी है, क्योंकि यह भूमि मेरी मातृभूमि है. इस भूमि में रहने वाले सब अपने भाई-बहन हैं, मैं उनके लिए जीता हूं, मरना है तो उनके लिए मरूंगा. अपने लिए जीना नहीं, अपने लिए मरना नहीं, ये मन बना होता है सैनिक का.

डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत की सेना के सैनिक अपने वेतन के लिए नहीं लड़ते, वे अपने देश के लिए लड़ते हैं. इसलिए उनका उदाहरण होता है. देश के लिए जिये और देश के लिए बलिदान दिया. जीवन ऐसा होना चाहिए जो हमारे लिए अनुकरणीय उदाहरण बने. हम इसीलिए उनका स्मरण करते हैं.

इससे पूर्व सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने परमवीर अब्दुल हमीद एवं उनकी धर्मपत्नी स्व. रसूलन बीबी की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्चन कर नमन किया. तदोपरान्त उनके जीवन पर आधारित ‘मेरे पापा परमवीर’ नामक पुस्तक का विमोचन किया. डॉ. जैनुल हसन से बातचीत के आधार पर डॉ. रामचंद्रन श्रीनिवासन ने पुस्तक का लेखन किया है. मंच पर कैप्टन मकसूद गाज़ीपुरी एवं परमवीर अब्दुल हमीद के ज्येष्ठ पुत्र जैनुल हसन भी उपस्थित थे.

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