भोपाल. मेजर गौरव आर्य (सेवानिवृत्त) ने कहा कि लोगों को यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि 40–50 हजार की सैलरी के लिए सैनिक दुश्मनों से भिड़ जाता है. यह काम कोई और कर सकता है क्या? सैनिक देश के प्रति अपने कर्तव्य को जीते हैं, इसलिए अपने प्राणों की चिंता नहीं करते. सेना में कहा जाता है कि हम नाम, नमक और निशान के लिए जीते हैं. यानी सैनिक किसी तनख्वाह के लिए नहीं बल्कि नाम, नमक और निशान के लिए कठिनतम लड़ाई में उतर जाते हैं.
गौरव आर्य ‘भारत कल, आज और कल’ विषय पर भारतीय विचार संस्थान न्यास की ओर से रवींद्र भवन, भोपाल में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला के दूसरे दिन मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के राज्य समन्वयक नितिन चंदसोरिया ने की.
उन्होंने कहा कि शक्ति से ही शांति स्थापित होती है. हमारी तैयारी है कि आने वाले समय में भारत की तीनों सेनाएं थल, जल और वायु सेना एकजुट होकर लड़ सकें. इसलिए प्रयास हो रहे हैं. हम बोफोर्स के कारण कारगिल नहीं जीते, बल्कि हम अपने सैनिकों के साहस एवं रणनीति के कारण कारगिल जीते. उन्होंने भारतीय सैनिकों के शौर्य की कई गाथाएं सुनाईं.
उन्होंने कहा कि थल सेना, जल सेना और वायु सेना ने पिछले कुछ वर्षों में जिस प्रकार से अपनी क्षमता को बढ़ाया है, वह बहुत महत्व का है. याद रखें कि भारत के आने वाले कल में सैन्य कूटनीति का महत्व बढ़ जाएगा. पाकिस्तान की आर्मी सांप है. भारत का वास्तविक दुश्मन आतंकवाद नहीं अपितु पाकिस्तान की सेना है क्योंकि आतंकवाद वही पैदा करती है. पाकिस्तान की सेना लड़ने नहीं आती, वह आतंकियों को भेजती है.
मेजर आर्य ने कहा कि हमें बच्चों को बताना चाहिए कि भारत ने दुनिया के कई हिस्सों को जीता था. रणजीत सिंह के नेतृत्व में अफगानिस्तान तक भारत का ध्वज फहराया था. डोगरा सेना तिब्बत तक पहुंची. चोल साम्राज्य ने थाईलैंड सहित आसपास के कई देशों में भारत का परचम फहराया. थाईलैंड की पुरानी राजधानी का नाम आज भी अयोध्या है. उन्होंने रेजांगला और हाइफा के युद्ध का भी उल्लेख किया. मेजर आर्य ने कहा कि हमें अपने बच्चों को बताना चाहिए कि भारत की स्वतंत्रता में महात्मा गांधी जी का योगदान था तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस का भी बहुत योगदान था. आजाद हिंद फौज के 40 हजार सैनिकों का बलिदान हुआ, उनके नाम भी हमें पता नहीं हैं. अंग्रेज भारत से इसलिए गए क्योंकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में 30 लाख प्रशिक्षित सैनिक भारत में घूम रहे थे.
भारत जिज्ञासुओं की भूमि – नितिन चंदसोरिया
नितिन चंदसोरिया ने कहा कि गरीबी इसलिए निर्मित होती है क्योंकि संसाधनों का संतुलित ढंग से उपयोग नहीं किया जाता है. हमें चीजों का भंडारण नहीं करना चाहिए. हमें अपने उपभोग को अपनी आवश्यकतानुसार ही करना चाहिए. यदि हम ऐसा कर पाए तो अप्रत्यक्ष रूप से देश की प्रगति में योगदान दे सकेंगे. आज भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, जो जल्द ही दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी.
उन्होंने कहा कि भारत जिज्ञासुओं की भूमि है. हमारा दर्शन प्रश्नोत्तरी पर आधारित है. देवी पार्वती प्रश्न पूछती जाती हैं और भगवान शिव उनके उत्तर देते जाते हैं. ऐसे अनेक उदाहरण हैं. हमारे यहां जीवनशैली की परिकल्पना में मोक्ष को उद्देश्य माना गया है. हमारे सभी कार्य मोक्ष को प्राप्त करने की दिशा में होते थे. उन्होंने कहा कि हमें अनासक्त भाव के साथ अपना कार्य करना चाहिए. यदि आसक्ति के साथ काम करते हैं तो उसके परिणाम की चिंता हमारी कार्य क्षमता पर प्रतिकूल असल डालती है. हम अपने आसपास के वातावरण के प्रभाव के अनुरूप काम करते हैं यानी एक तरह से हमारा जीवन प्रोग्राम्ड हो जाता है. प्रोग्राम्ड होने से हमारी कार्य क्षमता सीमित हो जाती है.
व्याख्यानमाला की प्रस्तावना एवं न्यास का परिचय उपाध्यक्ष राधेश्याम मालवीय ने कराया. कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. अंशुल राय ने किया.
इस अवसर पर लेखक, पत्रकार एवं मीडिया शिक्षक लोकेंद्र सिंह की पुस्तक ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ का विमोचन भी किया गया. लेखक ने पुस्तक में राष्ट्रध्वज तिरंगा, सांस्कृतिक ध्वज भगवा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंतर्संबंधों का विश्लेषण किया है. राष्ट्रध्वज और आरएसएस के संदर्भ में कई नए तथ्य यह पुस्तक हमारे सामने लेकर आती है. इसके साथ ही संघ के संदर्भ में चलने वाले झूठे विमर्श को भी खंडित करती है. यह पुस्तक हमें बताती है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने कब और किन परिस्थितियों में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के सम्मान में अपने प्राणों तक की आहुति दी. साथ ही पुस्तक राष्ट्रध्वज के निर्माण की कहानी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य भी हमारे सामने लेकर आती है. पुस्तक ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ का प्रकाशन अर्चना प्रकाशन, भोपाल ने किया है.