काशी के खोजवां क्षेत्र में शंकुलधारा पोखरे पर बुधवार को आयोजित अक्षय कन्यादान महोत्सव की पावन बेला पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी उपस्थित रहे। समारोह में कुल 125 कन्याओं का विवाह संपन्न हुआ। सरसंघचालक जी ने सोनभद्र के रेणूकूट की जनजाति समाज की बेटी राजवंती का कन्यादान किया, उसके वर अमन के पांव पखारे। सरसंघचालक जी ने परिणय सूत्र में बंधने पर सभी दंपत्तियों को शुभाशीर्वाद दिया।
सरसंघचालक जी ने कहा कि विश्व में अपनेपन से शांति लाई जा सकती है। जिसने भी विश्व को अपना कुटुंब माना, उसके सामने सब झुक जाते हैं। जैसे ठोस मकान के निर्माण में पक्की ईंट की भूमिका होती है। उसी तरह कुटुंब संस्कारों से पक्का होता है। प्रत्येक समाज की ईंट परिवार होता है और यह परिवार संस्कारों से, अपनेपन से पक्का होता है। संस्कारित व्यक्ति, समाज और देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अच्छे मनुष्य का प्रशिक्षण कुटुंब में ही होता है। जो समाज का अविभाज्य अंग होता है। कई बार अपनों के लिए हमें त्याग करना पड़ता है, जो संस्कार से आता है। यह अपनेपन को और मजबूती देता है। इसी अपनेपन से विश्व में शांति आएगी। यह स्वभाव हम सभी को अपने में विकसित करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि विवाह के बाद दूसरे घर से आई कन्या को हम अपनेपन के कारण ही परिवार का सदस्य बना पाते हैं। अपनेपन की ऐसी रीति है कि वह सतत बढ़ता है। भारतीय समाज का यही अपनापन जब एक व्यक्ति में उत्पन्न होता है, तो वह सारी दुनिया को अपना परिवार मानता है। भारत का संस्कार इस प्रकार का है कि अपनों के लिए कार्य करने की हमारी पुरानी परंपरा है और यही संस्कार देश का उद्धार करने वाला होगा, यही संस्कार संपूर्ण विश्व में शांति की स्थापना करेगा।
अक्षय कन्यादान महोत्सव आयोजक एवं संघ के क्षेत्र कार्यवाह वीरेंद्र जायसवाल जी को शुभकामनाएं देते हुए इस कार्यक्रम को आगे भी जारी रखने का संकल्प दिलाया।
यह विवाह कार्यक्रम उपकार की भावना से आयोजित नहीं हुआ है, बल्कि इसके पीछे अपनत्व का भाव कार्य कर रहा है। विवाह से कुटुंब, कुटुंब से समाज और उससे देश का निर्माण होता है। भारतीय समाज में कुटुंब अपनेपन के कारण स्थायी रहता है। उन्होंने दो महत्वपूर्ण बिंदुओं को लेकर आग्रह किया, प्रथम आज जिन-जिन यजमानों ने कन्यादान किया है, वह सभी उन परिवारों से वर्ष में कम से कम एक बार मिलने जाएंगे। दूसरा सामूहिक विवाह जैसे संस्कारित कार्यक्रम समाज में प्रतिवर्ष आयोजित होने चाहिए क्योंकि ऐसे ही संस्कार युक्त कार्यक्रम मर्यादा की सीमा से बाहर आकर स्वभाव में आते हैं। सामूहिक विवाह का प्रतिवर्ष आयोजन समाज में अपनेपन की भावना में वृद्धि करेगा।
Jay hind sir ji
सदियों से ये काम करते करते हम सिकुड़रहे हैं। जैसे यात्रा में कोई यात्री को हम जगह देते हैं, बाद में वो अपना पैर पसारता जाता है और एक समय पर हम अपनी सीट से उठ खड़े हो जाते हैं क्योंकि हमें शांति चाहिए,अब ऐसी शांति से हमारा जी घबरा रहा है,आओ बैठो शांति से रहते हैं तो रहने दो, अगर ऐसे पैर पसारने की बात करें तो एक बार नम्र निवेदन बाद में ठोक दो, फिर जो चाहे वो हो जाए।
I am Ajaz naikoo state president Bhartiya pashmada samaj j&k ut i am joining the RSS party state leader ship Jay Hind
Jai Hind Jay Maharastra Sir .
Jai hind
Great Sir
Jay Hind
I am joining RSS
Shrimaan sir ji hum garib logo ko moka do aage aane ka hum garib log desh ke liye Marne ke liye tayar hai hum garib yuva ko moka do desh ki seva karne ka
महोदय,
एक बार एक खबर देखी थी -लिखा था बैंगन में कैंसर को बढ़ाने वाले तत्व होते हैं।
कुछ दिन बाद फिर एक खबर देखी थी -लिखा था बैंगन कैंसर रोग में लाभ दायक है।
किसी केस को ही लें, जिसके पुलिस के पास सभी तथ्य उपलब्ध रहते हैं , पुलिस फिर भी उसके सम्बन्ध में अनुसंधान करती है।
दास सिर्फ इतना कहना चाहता है – हम अपने अनुसंधान में/मनुष्य को समझने में इतने पीछे क्यों हैं?
I am sofi Rafiq national president sanyukt sanatan Gauraksha vahini Yuva morcha Rss
श्रीमान
विवाह हर एक समाज में एक सत्य के दृष्टि से देखा जाता और थे परंपरा पूरे विश्व में प्रचलित है।
मेरा प्रश्न है
क्या सिर्फ़ भारत भारत की इस दृष्टिगत सोच से हम पूरे विश्व में शांति स्थापित कर सकते है।
धन्यवाद
मेरा ये मानना हैं हो सकता है अगर भारत के बाहर रहने वाले भारतीय भी हमारी इस संस्कृति और विरासत को संभाल कर रहे तो ।