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पीएफआई के कारनामे – केरल में जींस पहनने पर छात्राओं को ईशनिंदा का दोषी ठहराया, पैगम्बर पर सवाल पूछने पर एक प्रोफेसर के हाथ काटे

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नई दिल्ली. एक बार फिर से पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) का नाम हिंसा की साजिश रचने में सामने आ रहा है. केरल के इस संगठन पर उत्तरप्रदेश में जातीय संघर्ष खड़ा की साजिश में शामिल होने के आरोप लग रहे हैं. हाथरस मामले की जांच के दौरान पुलिस ने सबूतों का हवाला देते हुए दावा किया है कि पीएफआई जातीय हिंसा भड़काना चाहता था और इसके लिए उसे विदेशों से पैसा भी मिला.

पीएफआई का नाम पहले भी अनेक घटनाओं में सामने आ चुका है. इसी साल दिल्ली दंगों में भी पीएफआई की संलिप्तता की बात सामने आई थी. नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के नाम पर हिंसक प्रदर्शनों के पीछे भी पीएफआई की साजिश थी. कई राज्य सरकारें संगठन को प्रतिबंधित करने की मांग केंद्र सरकार से कर चुकी हैं. इन मामलों में पुलिस ने पीएफआई के अनेक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार भी किया है. बेंगलुरु हिंसा में भी पीएफआई का नाम सामने आया है.

90 के दशक की शुरुआत में केरल में एक संस्था का गठन हुआ, जिसका नाम था नेशनल डेवलेपमेंट फ्रंट (एनडीएफ). स्थापना का उद्देश्य था मुस्लिम समुदाय पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ लड़ना और समुदाय के सामाजिक व आर्थिक कल्याण के लिए काम करना था. लेकिन जल्द ही संस्था के जबरन धर्मांतरण करवाने में संलिप्तता की घटनाएं सामने आने लगीं. कट्टर और सांप्रदायिक संस्था बनने लगी और हिंसक घटनाओं में भी भूमिका का जिक्र होने लगा.

एक अंग्रेजी समाचार पत्र की रिपोर्ट के अनुसार, एनडीएफ ने केरल में मुस्लिम समुदाय के लोगों को सीपीएम और आरएसएस के खिलाफ हिंसक लड़ाई का भी प्रशिक्षण दिया और इन संगठनों से लड़ने को जिहाद बताया गया. रिपोर्ट में आतंकी संगठन ‘इस्लामिक स्टेट’ की केरल इकाई के प्रमुख राशिद अब्दुल्लाह के हवाले से यह भी लिखा गया था कि एनडीएफ की स्थापना करने वालों का मुख्य उद्देश्य ‘अल्लाह की राह पर चलते हुए जिहाद करना’ था.

21वीं सदी के पहले दशक की शुरुआत में ही एनडीएफ गंभीर आरोपों से घिरने लगा. एक बड़ा मामला वर्ष 2002 का था, जब केरल में आठ हिन्दू लड़कों की हत्या कर दी गई थी. घटना की जांच हुई तो एनडीएफ की संलिप्तता की बात सामने आई. एनडीएफ पर पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सी आईएसआई से मिलीभगत और उनके इशारे पर काम करने की भी बात सामने आई.

साल 2006 में एनडीएफ का दो अन्य संगठनों के साथ विलय हो गया. ये संगठन थे ‘कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी’ और ‘मनिथ नीति पासरई’. इसी विलय ने पीएफआई यानि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को जन्म दिया. कई अन्य इस्लामिक संगठन भी इससे जुड़े, और पीएफआई की पहुंच देश के कई राज्यों तक हो गई. पीएफआई पर हत्या, लूट, अपहरण, धर्मांतरण, सांप्रदायिक नफरत फैलाना, दंगे भड़काना, धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देना और लव जिहाद को अंजाम देने की बातें सामने आईं.

साल 2011 में प्रकाशित वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार पीएफआई से जुड़े लोगों ने केरल में छात्राओं को जींस पहनने या हिजाब न रखने पर ईशनिंदा का दोषी ठहराया और उन्हें लगातार धमकी दी गई. ईशनिंदा के ऐसे ही एक और मामले में भी पीएफआई का नाम आया, जिसमें पैगम्बर मुहम्मद पर सवाल पूछने के कारण एक प्रोफेसर का हाथ काट दिया गया था.

पीएफआई पर लगने वाले आरोपों का सिलसिला यहीं नहीं थमता. यह भी कहा जाता है कि पीएफआई सिमी का ही नया संस्करण है. सिमी यानि ‘स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया’ का गठन 1970 के दशक में अलीगढ़ में हुआ था. लेकिन, आगे चलकर भारत सरकार ने इसे आतंकी संगठन घोषित करते हुए प्रतिबंध लगा दिया था. सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद इसके कई सदस्य पीएफआई में शामिल हो गए. कई घटनाओं में जांच के दौरान पुलिस ने पीएफआई के कार्यालयों या इससे जुड़े लोगों के पास से कई तरह के हथियार बरामद किए हैं. पीएफआई से जुड़े अनेक लोग समय-समय पर हत्याओं और दंगों में शामिल होने के आरोप में गिरफ़्तार हो चुके हैं. गठन से आज तक पीएफआई पर दर्जनों बार हिंसा भड़काने और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के आरोप लग चुके हैं. इनमें से कई मामले तो बेहद चर्चित भी रहे हैं. एक ही एक मामला 2017 का भी है, जब केरल की अखिला अशोकन नाम की एक लड़की के धर्मांतरण का मुद्दा राष्ट्रीय सुर्खियों में शामिल हुआ था.

नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में हुए प्रदर्शनों से लेकर दिल्ली में हुए दंगों और श्रीलंका में हुए बम धमाकों तक में पीएफआई का नाम सामने आया था.

एनआईए ने अपनी जांच में पाया कि हादिया की ही तरह दर्जनों लड़कियों का धर्मांतरण करके उनकी शादी किसी मुस्लिम से करवाई है और ऐसे कई मामलों में पीएफआई ने सक्रिय भूमिका निभाई है. पीएफआई पर केरल में कई हत्याओं के आरोप भी हैं.

हाल की घटनाओं का जिक्र करें तो नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में हुए प्रदर्शनों से लेकर दिल्ली में हुए दंगों और श्रीलंका में हुए बम धमाकों तक में पीएफआई का नाम सामने आता रहा है. प्रवर्तन निदेशालय यानि ईडी ने केंद्र सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सीएए के खिलाफ हुए प्रदर्शनों को बढ़ाने के लिए पीएफआई ने विदेशों से पैसा लिया है और देश के कई हिस्सों में यह पैसा पहुंचाया है.

इनपुट – दैनिक भास्कर

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