प्रयागराज. 13 जनवरी से प्रारंभ हो रहे महाकुम्भ के लिए संगम नगरी को सजाया जा रहा है. धर्म-अध्यात्म और संस्कृति से संबंधित कलाकृतियां तैयार की गई हैं. इसी क्रम में एक विशालकाय डमरू तैयार किया जा रहा है. महाकुम्भ क्षेत्र से थोड़ी दूर स्थापित विशालकाय डमरू को खूबसूरती से तैयार किया जा रहा है कि देखने वालों की नजर नहीं हट पा रही.
विशालकाय डमरू महादेव की नगरी काशी से महाकुम्भ क्षेत्र में दाखिल होने वाले रास्ते पर झूसी में दोनों तरफ की सड़क के बीचों-बीच लगाया गया है. कांसे और अन्य धातुओं से निर्मित डमरू को एक बड़े चबूतरे पर रखा गया है. डमरू की चौड़ाई तेरह फीट और ऊंचाई आठ फीट है. चबूतरे को भी जोड़ दिया जाए तो डमरू की ऊंचाई लगभग बीस फीट हो जाती है. डमरू को गाजियाबाद की एक कंपनी ने तैयार किया है. दो दर्जन शिल्पकारों की टीम ने दिन-रात परिश्रम कर डमरू को तैयार किया है.
डमरू भगवान शिव का अत्यंत प्रिय वाद्य यंत्र है. उन्होंने डमरू की धुन पर ही तांडव नृत्य किया था, डमरू के साथ भोलेनाथ के अस्त्र त्रिशूल को भी रखा गया है.
झूंसी में रेलवे ब्रिज के पास जिस जगह डमरू को स्थापित किया जा रहा है, उसे एक पार्क के तौर पर तैयार किया जा रहा है. रेलवे लाइन के दूसरी तरफ डमरू की ही तरह बड़े आकार का स्वास्तिक भी तैयार किया जा रहा है. स्वास्तिक के चारों कोनों पर हाथ की आकृति बनाई गई है. यह आस्था के पर्व महाकुम्भ में आने वाले श्रद्धालुओं का स्वागत व अभिनंदन भी करेगा.