स्वयं भगवान तथा उनके अनन्य भक्तों ने हर युग में प्रयाग की यात्रा कर पवित्र स्थली को परम पवित्र किया है। त्रेतायुग में भगवान श्री रामचन्द्र, लक्ष्मण तथा माता सीता ने त्रिवेणी संगम के निकट स्थित भारद्वाज मुनि के आश्रम में कुछ समय व्यतीत किया था। प्रयाग वह प्रथम तीर्थस्थान है, जहाँ प्रभु श्री रामचन्द्र ने अयोध्या से वनवास की ओर जाते हुए पदार्पण किया था।
पाँचों पाण्डवों – युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव ने भी कुछ समय प्रयाग में बिताया था। उनकी प्रयाग यात्रा का उल्लेख महाभारत के वन पर्व में मिलता है, जो उनकी वनवास लीलाओं से सम्बंधित खण्ड है।
कुरुक्षेत्र के युद्ध काल में भगवान बलराम ने भारत के समस्त तीर्थस्थलों की यात्रा करने का निश्चय किया। नैमिषारण्य यात्रा के बाद जहाँ उन्होंने रोमहर्षण का वध किया। इसके पश्चात सरयू नदी के किनारों पर भ्रमण करते हुए प्रयागराज पहुँचे। यहाँ पहुँचकर उन्होंने स्नान किया तथा देव-तर्पणादि कार्य संपन्न किये। श्री चैतन्य-भागवत में भगवान् नित्यानंद प्रभु का मथुरा की ओर जाते हुए प्रयाग यात्रा का वर्णन है, ‘भगवान ने माघ महीने की शीतल प्रातः काल में त्रिवेणी संगम में स्नान किया और मथुरा की ओर प्रस्थान किया, जहाँ पूर्व युग में बलराम के रूप में अवतरित हुए थे।’ वाराणसी की यात्रा करते समय अद्वैत आचार्य भी प्रयाग से गुजरे थे। यहाँ पहुँचते ही उन्होंने अपना सिर मुंडाया तथा तीन पवित्र नदियों के संगम में स्नान किया। अपने पूर्वजों को भक्तिपूर्वक तर्पण देकर उन्होंने अपनी यात्रा पुनः प्रारम्भ की।
वहीं, जगन्नाथ पुरी से वृन्दावन की ओर जाते हुए श्री चैतन्य महाप्रभु ने भी प्रयाग में पदार्पण किया था। वापसी में माघ महीने (जनवरी/फरवरी) के कुम्भ मेले के समय प्रयाग में रुक गये तथा श्रील रूप गोस्वामी से भेंट की। प्रयाग में वल्लभाचार्य के निवास पर भी उन्होंने भेंट दी। श्रील प्रभुपाद ने भी यहाँ लगभग 20 वर्ष तक गृहस्थ के रूप में जीवन बिताया तथा 1932 में रूप गोस्वामी गौड़ीय मठ में श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर से दीक्षा प्राप्त की। भगवान बुद्ध तया शंकराचार्य ने भी प्रयाग की यात्रा की थी।
सुप्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वैन ने भी 1994 में प्रयाग यात्रा की, जिसका वर्णन उन्होंने अपनी एक पुस्तक ‘मोर ट्रॅम्स अब्रॉड्’ में किया है, ‘वस्तुतः यह भारत है। सौ राज्यों का, हजारों बोलियों का, तथा लाखों देवों का राज्य। यह मानवीय बोली की जन्मस्थली है, मानवता का पालना है, भाषाओं की जननी है तथा उपाख्यानों की दादी है। यह ऐसा राज्य है, जिसे हर कोई देखने का इच्छुक है और एक बार देख लेने के बाद कोई इस दृश्य से विमुख होकर शेष जगत् को देखना नहीं चाहेगा।’ लेख से प्रतीत होता है कि मार्क ट्वैन ने उसी वर्ष प्रयाग में आयोजित कुम्भ मेले में भाग लिया था। उन्होंने लिखा है ‘यह श्रद्धा का अद्भुत बल है। यह असंख्य वृद्धों, कमजोरों, युवाओं तथा दुर्बलों को स्वतः ही जल में प्रवेश करा सकता है।’
सातवीं शताब्दी के चीनी यात्री ह्युएन-त्सेंग ने भी अपनी प्रयाग यात्रा संकलित की है। कहा जाता है कि उन्होंने देश भर से आए भ्रमणशील साधु, संन्यासी तथा बुद्धिमान व्यक्तियों की मंडली से भेंट की तथा बुद्ध, सूर्यदेव, शिवजी, बौद्ध भिक्षु तथा ब्राह्मणों को पूजित होते देखा। इसका उसने अपनी पुस्तक में विस्तार से वर्णन किया है।
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