मनोरंजन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी परोस देने की मनमानी पर प्रभावी अंकुश की तैयारी है. इस बार सरकार की ओर से नहीं, बल्कि देश की शीर्ष अदालत की पहल पर बहुत समय से की जा रही ठोस कानून की मांग मूर्त रूप ले सकती है.
सर्वोच्च न्यायालय ने सोशल मीडिया को रेगुलराइज करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा हाल में लाई गई गाइडलाइंस को नाकाफी बताया. ‘तांडव’ वेब सीरीज मामले पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आर.एस. रेड्डी की खंडपीठ ने कहा कि सोशल मीडिया पर केन्द्र सरकार के नियम महज दिशानिर्देश हैं. इनमें गलत चीजें दिखाने वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म के खिलाफ कार्रवाई का कोई प्रावधान नहीं है.
इससे पहले शीर्ष अदालत ने कहा था कि ओटीटी कंटेंट के स्क्रीनिंग की जरूरत है. कुछ ओटीटी प्लेटफॉर्म तो पोर्नोग्राफी तक दिखा रहे हैं. ऐसे में इसके कंटेंट पर नजर रखने के लिए स्क्रीनिंग की आवश्यकता है. सर्वोच्च न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि वह नई गाइडलाइंस को सर्वोच्च न्यायालय के सामने पेश करें. न्यायालय ने गाइडलाइंस को नख-दंतहीन करार दिया था. जिसके बाद सरकार से ओर से उपयुक्त कानून लाने का आश्वासन दिया गया है.
इसके साथ ही बेंच ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा, “हमने आपके (सरकार) नियमों को देखा है. इसमें मुकदमा चलाने का कोई प्रावधान नहीं हैं. ये सिर्फ दिशा-निर्देश हैं. इनके स्थान पर कानून की जरूरत है.’ इसके जवाब में सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि सरकार दो सप्ताह के भीतर बेहतर नियमों का मसौदा पेश करेगी और नए नियमों को “नो-सेंसरशिप और आंतरिक स्व-विनियमन’ के बीच संतुलन के रूप में लाया जाएगा.
केन्द्र सरकार की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार अदालत की ओर से सुझाए गए उचित कदमों पर विचार करेगी, डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए किसी भी तरह के नियमों को अदालत के सामने पेश किया जाएगा.
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 25 फरवरी को इस मामले को अत्यधिक गंभीर मानते हुए आरोपियों को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था.
उल्लेखनीय है कि सैफ अली खान, मोहम्मद जीशान अयूब और डिंपल कपाड़िया की वेब सीरीज तांडव जनवरी में अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई थी. सीरीज के कई दृश्यों को लेकर आपत्तियां उठी थीं. इनमें हिंदू-देवी देवताओं के अपमान, पुलिस की गलत छवि दिखाने और प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पद की गरिमा से खिलवाड़ के आरोप लगे थे. इस कारण देशभर में तांडव को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गयी थीं.
नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर निगरानी और नियंत्रण के लिए स्वायत्त संस्था के गठन की मांग वाली एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय में पिछले वर्ष दायर की गई थी. याचिका में कहा गया था कि ओटीटी प्लेटफॉर्म में लगातार ऐसे कार्यक्रम दिखाए जा रहे हैं जो सामाजिक और नैतिक मानदंडों के मुताबिक नहीं हैं. कुछ कार्यक्रमों में सैन्य बलों का भी गलत चित्रण किया गया है. इसलिए, एक स्वायत्त संस्था का गठन किया जाए, जिससे ओटीटी के कार्यक्रमों की निगरानी हो सके. न्यायालय ने अक्तूबर में इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया था कि इस पर विचार चल रहा है.
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने एक स्वायत्त निकाय द्वारा ओटीटी प्लेटफॉर्म नियंत्रण की मांग वाली याचिका पर केंद्र से छह हफ्ते में अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने को कहा था. सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र से कहा था कि वह ओटीटी प्लेटफोर्म के शो और वेब सीरीज की निगरानी करे.
भारत में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर निगरानी और नियंत्रण के लिए जो आवाज उठ रही थी, वह नई बात नहीं है. दुनिया के सभी देशों में ठोस और प्रभावी कानून और नियम बने हुए हैं जो देश की अस्मिता, संप्रभुता पर सवाल खड़ा नहीं करते. अमेरिका में दो साल पहले तक ऑनलाइन कंटेंट के लिए भले कोई कानून नहीं था, लेकिन 2019 से वहां स्वतंत्र कमीशन बना दिया गया है…वहां अब सब तरह के कंटेंट पर सरकार का नियंत्रण है. सिंगापुर ने भी 3 साल पहले ही मीडिया नियमन इकाई बनी है. ऑस्ट्रेलिया में सभी प्रकार की सामग्री का वर्गीकरण ऑस्ट्रेलियन क्लासिफिकेशन बोर्ड करता है. इसी प्रकार यूरोपीय यूनियन ने 2020 में सख्त गाइडलाइन बनाकर राष्ट्रीय सुरक्षा से जड़ी किसी भी प्रकार की सामग्री के प्रसार पर रोक के लिए विशेष कानून बनाया है.