नई दिल्ली. विश्व हिन्दू परिषद ने उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण कानून का स्वागत किया है, पर साथ ही उसमें से एक बच्चे की नीति को हटाने का आग्रह किया है. राज्य विधि आयोग को भेजे सुझाव में विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय कार्याध्यक्ष एडवोकेट आलोक कुमार ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण और परिवार में दो बच्चों की नीति को प्रोत्साहन देने के प्रस्तावित कानून के उद्देश्य से परिषद सहमत है, किन्तु एक बच्चे के लिए प्रोत्साहन के प्रस्ताव से जनसंख्या में नाकारात्मक वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा.
विहिप ने कहा कि प्रस्तावित कानून में निश्चित समय सीमा में कुल प्रजनन दर 1.7 तक लाने का लक्ष्य रखा गया है, जिस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए. विशेष तौर पर एक ही बच्चा होने पर सरकारी कर्मचारियों और अन्य लोगों को प्रोत्साहन की नीति पर फिर से विचार होना चाहिए.
उनके अनुसार किसी समाज में जनसंख्या तब स्थिर होती है, जब एक महिला से जन्म लेने वाले बच्चों की औसत संख्या कुल प्रजनन दर 2 से कुछ अधिक होती है. प्रजनन दर यदि 2.1 होगी, तब यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है. प्रजनन दर यदि 2.1 होगी, तब किसी कारणवश एक बच्चे की असामयिक मृत्यु होने पर भी लक्ष्य प्राप्ति में परेशानी नहीं होगी.
प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण के लिए दो बच्चों की नीति पर विचार होना चाहिए. एक महिला के औसतन दो से कम बच्चों की नीति अपनाने से जनसंख्या को लेकर समय के साथ अंतर्विरोध पैदा होंगे. इस कारण कई तरह के सामाजिक और आर्थिक दुष्प्रभाव होंगे. युवाओं और परिवार पर निर्भर लोगों की संख्या का अनुपात गड़बड़ा जाएगा. एक बच्चे की नीति का अर्थ यह है कि एक समय पर परिवार में 2 माता-पिता और बुजुर्ग पीढ़ी के 4 सदस्यों की देखभाल की जिम्मेदारी सिर्फ एक कामकाजी युवा के कंधों पर आ जाएगी.
आलोक कुमार के अनुसार एक बच्चे की नीति उत्तर प्रदेश अलग-अलग समुदायों के बीच जनसंख्या असंतुलन पैदा कर सकती है, क्योंकि परिवार नियोजन और गर्भ निरोध के उपायों को लेकर सबकी सोच अलग है. भारत के कई प्रदेशों में यह असंतुलन पहले से ही बढ़ रहा है. असम और केरल में यह खतरे के स्तर तक बढ़ गया है, जहां जनसंख्या की कुल वृद्ध दर घट गई है. इन दोनों प्रदेशों में हिन्दू समुदाय में प्रजनन दर 2.1 से कम हो गई है. असम में मुस्लिम प्रजनन दर 3.16 और केरल में 2.33 हो गई है. इसलिए उत्तर प्रदेश को इस स्थिति में पहुंचने से बचना चाहिए. जनसंख्या नीति में आवश्यक सुधार किया जाना चाहिए, अन्यथा एक बच्चे की नीति उद्देश्य से भटका सकती है.
आलोक कुमार ने कहा कि चीन ने 1980 में एक बच्चे की नीति अपनायी थी. तकनीकी तौर पर इसे 1-2-4 की नीति कहते हैं. इसके दुष्परिणामों को दूर करने के लिए चीन को उन माता-पिता के लिए इस नीति में ढील देनी पड़ी, जो अपने माता-पिता के अकेले बच्चे थे. कहा जा सकता है कि चीन में एक बच्चे की नीति आधे से अधिक अभिभावकों पर कभी लागू नहीं हो सकी. तीन दशकों के अंदर इस नीति को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया.