जालंधर
दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे तथाकथित किसान आंदोलन से लौटे लोग सुपर स्प्रेडर बन रहे हैं. जिस कारण पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमितों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ने लगी है और मृत्यु दर भी 58 फीसद हो गई है. इन धरनों में गाइडलाइन्स का पालन नहीं किया जा रहा है. न तो शारीरिक दूरी रखी जा रही है, न ही मास्क आदि का उपयोग किया जा रहा है. यही नहीं, बीमार होने पर टेस्ट भी नहीं करवा रहे. पंजाब में आयोजित महापंचायतों व धरने-प्रदर्शनों में शामिल लोगों की वजह से भी संक्रमण गांवों तक पहुंचा है.
दैनिक जागरण ने पंजाब के सात जिलों तरनतारन, मुक्तसर साहिब, बरनाला, संगरूर, बठिंडा, मानसा व मोगा के 19 गांवों में पड़ताल पर रिपोर्ट प्रकाशित की है. रिपोर्ट के अनुसार इन गांवों से बड़ी संख्या में लोग दिल्ली आंदोलन व अन्य धरने-प्रदर्शनों में शामिल रहे हैं. गांव के लोग खुलकर कुछ नहीं बोल रहे, फिर भी कुछ गांवों में आंकड़ों से स्थिति स्पष्ट हो जाती है.
रिपोर्ट के अनुसार तरनतारन में 900 लोग दिल्ली धरने से लौटे हैं. इनमें से अब तक सात की कोरोना से मौत हो चुकी है. इनमें भिखीविंड, माणकपुरा व नारला में दो-दो, जबकि नौशहरा पन्नूआ में एक व्यक्ति शामिल है. तरनतारन में माणकपुर गांव में बीस से अधिक लोग पॉजिटिव आए हैं. इनमें सात टीकरी बार्डर पर धरना देकर लौटे हैं, जो अन्य पाजिटिव हैं उनमें भी ज्यादातर उन लोगों के संपर्क में रहे हैं, जो दिल्ली से लौटे हैं.
इसी तरह श्री मुक्तसर साहिब के गांव आलमवाला में 40 कोरोना पॉजिटिव हैं. इनमें दस ऐसे हैं, जो दिल्ली मोर्चे में शामिल हुए थे. अन्य तीस लोग गांव के ही हैं जो इनके जान-पहचान के हैं. संभव है कि इनके संपर्क में ही आने से उन्हें भी कोरोना हुआ. कुछ गांव ऐसे भी हैं जहां काफी संख्या में लोग दिल्ली से लौटे हैं और वहां पॉजिटिव मरीजों की संख्या काफी है.
तरनतारन के भिखीविंड में करीब 150 प्रदर्शनकारी दिल्ली से लौटे हैं, यहां 22 पॉजिटिव केस हैं. कुल्ला गांव के 165 प्रदर्शनकारी दिल्ली से आए हैं, यहां 14 केस हैं. दो अन्य गांवों नारला व नारली से 50, एकलगड्ढा से 140 और नौशहरा पन्नूआ से 80 लोग दिल्ली आंदोलन में शामिल हो चुके हैं. यहां के आठ गांवों में 117 लोग संक्रमित हैं.
सहायक सिविल सर्जन डॉ. कंवलजीत सिंह ने बताया कि इन गांवों में कंटेनमेंट जोन बनाए गए हैं. यही लगता है कि बाहर से आने वालों से ही संक्रमण फैला है.
बरनाला के धनौला गांव में अब तक 31 लोगों की मौत हो चुकी है. यहां 104 एक्टिव केस हैं, लेकिन लोग बताने से इन्कार करते हैं कि इनमें से कितने दिल्ली धरने से लौटे हैं. वैसे गांव से कुल 1100 लोग धरने में गए थे. संगरूर के लोंगोवाल, मूनक व मोगा के महेश्वरी, दौलतपुरा व डरौली में भी ऐसी ही स्थिति है.
बरनाला के सिविल सर्जन डाक्टर हरिंदरजीत सिंह गर्ग का कहना है कि धरने-प्रदर्शनों में शारीरिक दूरी इत्यादि न रखने जैसी लापरवाही ही संक्रमण फैलने का कारण बन रही है.
उन्होंने माना कि गांवों में कई ऐसे लोगों की मौत हुई है, जिनमें लक्षण तो कोरोना जैसे थे, लेकिन ग्रामीण टेस्ट करवाने के लिए राजी नहीं हुए. यहां के तपा व महलकलां से 250 लोग दिल्ली व स्थानीय धरनों में शामिल हो चुके हैं. दोनों गांवों में 156 एक्टिव केस हैं और 35 की जान जा चुकी है. मानसा के नंगलकलां गांव में 50 मामले आ चुके हैं. इसे भी सील कर दिया गया है.
सही आंकड़े सामने न आने का एक कारण यह भी
किसान आंदोलन में मरने वाले लोगों के लिए पंजाब सरकार ने पांच लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की है. बीमार होने पर लोग प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती हो जाते हैं. मौत होने पर पता चलता है कि कोरोना जैसे लक्षण थे. परिवार यह जानकारी छिपाता है, क्योंकि यदि मौत का कारण कोरोना हुआ तो मुआवजे की राशि नहीं मिलेगी. यही कारण है कि ग्रामीण इलाकों में टेस्टिंग की दर 40 फीसद ही है.
इनपुट साभार : दैनिक जागरण