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सार्वजनिक गणेशोत्सव – सामाजिक प्रतिबद्धता की निरंतर परंपरा

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मुंबई (विसंकें). ब्रिटिश कालखंड में भारत को अंग्रेजों की परतंत्रता से मुक्त करवाने के लिए समाज का एकजुट होना आवश्यक था. इसे ध्यान में रखते हुए लोकमान्य तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव की स्थापना की. लोगों ने लोकमान्य तिलक के प्रयास का भरपूर समर्थन किया तथा धीरे-धीरे गणेशोत्सव मंडलों की संख्या बढ़ती गयी. कुछ वर्षों में ही महाराष्ट्र में कई गणेशोत्सव मंडल स्थापित हो गए.

सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडलों द्वारा उत्सव के आयोजन के साथ ही सामाजिक कार्य भी होने लगे. महाराष्ट्र के विविध मंडलों ने सामाजिक कार्य की परंपरा को आगे बढ़ाया. आज भी सामाजिक कार्यों द्वारा मानवीय मूल्यों का संरक्षण करना, समाज के प्रति संवेदना निर्माण करना, यह प्रयास सभी मंडल कर रहे हैं. गणेशोत्सव के काल में ही नहीं, बल्कि पूरे वर्ष में छोटे-बड़े सामाजिक कार्य किये जाते हैं. गणेशोत्सव मंडलों के कार्यकर्ता पूरी क्षमता का उपयोग करके, कोई भी अपेक्षा रखे बिना सेवा कार्य करते रहते हैं. समाज हितैषी भूमिका से गणेशोत्सव कभी दूर नहीं गए. सामाजिक दायित्व समझकर जनजागरण, समाज प्रबोधन और अनेकों सामाजिक उपक्रम चलाने वाले महाराष्ट्र के गणेशोत्सव मंडलों की यह जानकारी……

स्वाधीनता संग्राम में अपना बहुमूल्य योगदान देने वाला मंडल है पुणे का श्रीमंत भाऊसाहेब गणपती ट्रस्ट. इस ट्रस्ट द्वारा अनेक सामाजिक काम किये जाते है. कुछ सालों पहले भरी बारिश में पुणे में पानी की पाइपलाइन टूट गयी. परिसर की सभी झुग्गियों में पानी भर गया, लोगों का असीम नुकसान हुआ. इस कठिन समय में ट्रस्ट द्वारा जीवनावश्यक वस्तुओं का वितरण किया गया. स्कूलों में स्टेशनरी एवं अन्य उपयोगी साहित्य देना. बाढ़, भूकंप के समय बाधितों को आवश्यक मदद करना आदि सामाजिक कार्य मंडल द्वारा किये जाते हैं

पुणे के दगडूशेठ हलवाई गणपति ट्रस्ट की मदद से पुणे के पुरंदर तालुका के पिंगोरी गाँव के जलाशय का ४० साल पुराना मैला निकाला गया. एक करोड़ लीटर पानी जमा करने वाले जलाशय की क्षमता भी बढ़ गई. इससे गांव की पानी की समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो गयी है. ट्रस्ट ने पुणे के कोंढवा में ‘पिताश्री’ वृद्धाश्रम की स्थापना की है. ट्रस्ट द्वारा मेडिकल कैम्प और गरीब विद्यार्थियों को मदद की जाती है.

पुणे का ग्रामदैवत अर्थात कसबा गणपति. कसबा गणेशोत्सव मंडल ने अहमदनगर जिले के पाथर्डी, खंडोबावाडी सूखाग्रस्त गाँव २०१६ से गोद लिया है. इन गाँवों में ३५० परिवार हैं और कुल ९०० लोग रह रहे हैं. इन ग्रामस्थों की सभी आवश्यकताएँ मंडल द्वारा पूरी की जाती है. पानी, पर्यावरण पूरक स्वच्छता, शिक्षा, जैविक खेती, बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर आद सुविधाएं शामिल हैं. ग्रंथालय, संगणक स्थापित करना, युवकों के लिए जिम, एक लाख लीटर जल क्षमता की पानी की टंकी, वाटर एटीएम आदि सुविधाएं मंडल द्वारा उपलब्ध करवाई गई हैं.

गिरगांव के केशव जी नाईक चाल में सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल द्वारा लोकमान्य तिलक पुण्यस्मरण कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. दीपोत्सव का आयोजन किया जाता है. इसमें सामाजिक कार्य करने वाले व्यक्तियों का सम्मान किया जाता है. २०१९ में कोल्हापुर में आई बाढ़ में प्रभावित सरकारी स्कूल को मंडल द्वारा ६५ हजार का डोनेशन स्टेशनरी के रूप में दिया गया.

गिरगाव के निकदवरी लेन में १९२८ में श्री सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल की स्थापना हुई. विसर्जन के पश्चात पानी में से निकालने वाले गणेश प्रतिमा के अवशेषों के छायाचित्र निकालने वाले फोटोग्राफरों के विरोध में इस मंडल ने आवाज उठाई थी. इस संघर्ष से ही बृहन्मुंबई सार्वजनिक गणेशोत्सव समन्वय समिति का जन्मा हुआ. आज यह समन्वय समिति मुंबई के सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडलों का आधार है. निकदवरी ट्रस्ट द्वारा विद्यार्थी दत्तक योजना चलायी जाती है. गरीब विद्यार्थियों को १२वीं तक की शिक्षा निःशुल्क देने का संस्था ने संकल्प लिया है. रक्तदान, नेत्र चिकित्सा, मेडिकल कैम्प आदि का आयोजन मंडल द्वारा किया जाता है.

‘लालबागचा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल’ द्वारा रुग्णों को केवल १०० रुपये में डायलिसिस सेवा उपलब्ध करायी जाती है. सरकारी रुग्णालय में उपचार लेने वाले रुग्णों को ‘रुग्ण सहाय्य योजना’ द्वारा मदद की जाती है. ‘लालबागचा राजा प्रबोधिनी’ ने अनेक उपक्रमों द्वारा विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए अनेक दरवाजे खोल दिए है. २६ जुलाई की महावर्षा से रायगड जिले के महाद तालुका के जुई गाँव में ६० घर ध्वस्त हो गए. मंडल ने तक़रीबन ५० लाख रुपये खर्च करके ४०० वर्ग फीट के ३० घर उस गांव में बनवाए.

१९२० में में स्थापित ‘चिंचपोकली सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल’ गरीबों को मदद करने के साथ रक्तदान, नेत्रदान कैम्प लगाए जाते हैं.

भांडुप पश्चिम के विकास मंडल ने स्थापना वर्ष से ही गरीब, अंध, दिव्यांग, मतिमंद लोगों को सहायता करने का निरंतर प्रयास किया है. दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले विद्यार्थियों को आर्थिक मदद मंडल द्वारा की जा रही है. कुपोषित, मनोविकार ग्रस्त, अनाथ के लिए यह मंडल सहारा बना है. गांवों में जल साक्षरता एवं जल संवर्धन अभियान में अपना सहयोग दिया है.

‘श्री गणेशोत्सव मंडळ, लोकमान्य आळी’ मंडल ठाणे लोकमान्य तिलक की आरती कर उनका स्मरण करवाने वाला महाराष्ट्र का एकमात्र मंडल है. समय की आवश्यकता के अनुसार कार्य किये जाते हैं, रक्तदान अभियान, नेत्रचिकित्सा अभियान, कपड़ों का वितरण आदि उपक्रम संस्था द्वारा चलाए जाते है.

कल्याण के सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल सूबेदार वाडा के विश्वस्त सुरेश पटवर्धन ने कहा, सुबेदार वाडा गणेशोत्सव मंडल का व्यवस्थापन हर दो साल बाद बदलता है. कल्याण के अलग अलग समूह मंडल का व्यवस्थापन देखते है. इसी के कारण समाज के सभी स्तर के व्यक्तियों को गणेशोत्सव व्यवस्थापन का अनुभव मिलता है. उत्सव के माध्यम से सामाजिक कार्य का वर्कशॉप भी चलाया जाता है. किसी भी नैसर्गिक एवं अनैसर्गिक आपदा के समय मंडल द्वारा मदद की जाती है.

कल्याण में त्वष्टा कसार गणेशोत्सव मंडल में समाज के दानी व्यक्तियों द्वारा दी गयी राशि दीवाली में अनाथ आश्रमों को दी जाती है. मंडल द्वारा २०१२ में परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए. इस वजह से चोरी की घटनाएं कम हुईं.

रत्नागिरी-दापोली के ‘मानाचा गणपती सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल’ ने निरपेक्ष सेवा से समाज में आदर्शों का नया आयाम प्रस्थापित किया है. इस मंडल को दापोली का देवदूत भी कहा जाता है.

२०१९ में सांगली में बाढ़ से क्षेत्र में काफी नुकसान हुआ था. इस कठिन समय में संती गणेशोत्सव मंडल, नागपुर द्वारा ५० हजार की मदद की गयी. मंडल द्वारा पिछले छह साल से पांच गरीब छात्राओं की पढ़ाई का खर्च वहन किया जाता है. गडचिरोली के जनजातियों को आरोग्य सेवकों द्वारा उपचार के लिए नागपुर लाया जाता है, ऐसे १०० जनजातियों के खाने की व्यवस्था मंडल द्वारा की जाती है.  जरुरतमंदों का वैद्यकीय खर्च भी वहन किया जाता है.

गोवा-मडगाव का पिम्पलकट्टा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल द्वारा गरीब, अनाथ, दिव्यांग छात्र-छत्राओं की पढ़ाई एवं स्वास्थ्य संबंधित खर्च किया जाता है. हर साल १ से २ लाख का डोनेशन दिया जाता है.

धार्मिक कार्य के साथ लोगों को संगठित करना, सामाजिक दायित्व पूरा करना और प्रबोधन के साथ मनोरंजन भी करना, ऐसे अनेक उद्देश्य पूर्ण करने वाले गणेशोत्सव का पिछले १०० साल में विश्वभर में विस्तार हुआ है. काल के अनुसार उत्सव का स्वरुप बदलता गया, परन्तु सामाजिक आयाम वैसे ही हैं.

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