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मसीही नशे के दलदल में फंसता पंजाब

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मुरारी गुप्ता

पंजाब की पहचान उसकी बहादुरी और परिश्रम के कारण होती रही है. इसका एक कारण है, पंजाब ने भारतीय सेना को बड़ी संख्या में बहादुर सैनिक दिए हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से पंजाब दो व्याधियों से बुरी तरह पीड़ित है. ड्रग्स और क्रॉस. नशे की लत और तेजी से बढ़ते मतांतरण ने समाज के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं.

नशे की लत ने पंजाब की युवा पीढ़ी को बर्बाद कर दिया है तो क्रॉस के कथित षड्यंत्र ने सामाजिक ढांचे पर गहरी चोट की है. कुछ समाज विज्ञानी चिंता भी जता रहे हैं कि ऐसा नहीं हो कि आने वाले कुछ दशकों में पंजाब में पगड़ीधारी सिक्ख अल्पसंख्यक हो जाएं और तथाकथित क्रॉसधारी बहुसंख्यक हो जाएं. जिस तेजी से पंजाब में चर्चों का निर्माण हो रहा है, पानी के कुंडों, तालाबों में डुबकी लगवा कर सिक्खों और अनुसूचित जाति समाज के लोगों को भरमाकर उनका मतांतरण करवाया जा रहा है, उससे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी चिंतित है.

कमेटी के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने ईसाई मिशनरीज पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि पंजाब के सीमांत क्षेत्र के गुरदासपुर, जालंधर, लुधियाना, फतेहगढ़, डेरा बाबा नारक, मजीठा और अमृतसर जैसे क्षेत्रों में गरीब सिक्ख युवकों को लालच देकर उनका मतान्तरण करवाया जा रहा है. हाल ही में एक पोस्टर वायरल हुआ, जिसमें मोगा में विवादास्पद पादरी बजिंदर सिंह ने लोगों को हीलिंग क्रूसेड के लिए आमंत्रित किया था. पोस्टर में मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी और सोनू सूद की तस्वीर छपी है. इस तरह के पोस्टर पूरे पंजाब में नजर आएंगे. सीमांत क्षेत्रों में गलियों में क्रॉस लिए लोगों की प्रभात फेरियां अब पंजाब की दिनचर्या का हिस्सा बन गई हैं.

कितने आश्चर्य की बात है कि दुनिया में बीस से ज्यादा देशों में ईसाई राजधर्म है और दुनिया की सबसे बड़ी आबादी ईसाइयत को मानने वाली है, इसके बावजूद मिशनरियों की भूख खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. वे अपना शिकार पंजाब के गरीब और पिछड़े तबके के लोगों को बना रहे हैं.

स्वामी विवेकानंद कहते थे कि एक व्यक्ति के मतांतरण से हिन्दू या सिक्ख समाज का एक व्यक्ति कम नहीं होता, बल्कि राष्ट्र का एक दुश्मन बढ़ जाता है. हम कब तक अपने दुश्मनों की संख्या बढ़ाते रहेंगे. सीमांत क्षेत्रों में लगातार हो रहा मतान्तरण देश की सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी खतरनाक है. देश की सुरक्षा एजेंसियों को इस मुद्दे पर तेजी से ध्यान देना चाहिए. दुर्भाग्य से मिशनरियों के इस अभियान में सियासत का भी लगातार छौंक लगाया जा रहा है. ऐसा संभव नहीं है कि सियासत और व्यवस्था के प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन के बिना मतांतरण का इतना व्यापक अभियान चलाया जा रहा हो. पंजाब में गुड फ्राइडे पर अखबारों में फुल पेज सरकारी विज्ञापन से इसे समझा जा सकता है कि किस तरह तुष्टिकरण की राजनीति इस प्रदेश में बल पकड़ती जा रही है.

जिस पंथ के गुरुओं ने हिन्दू समाज की सुरक्षा के लिए अपना शीश तक बलिदान कर दिया, उस पंथ के युवक अगर वीजा और कुछ पैसों के कारण अपने मत से भ्रष्ट हो रहे हैं तो यह ईसाइयत की जीत नहीं है, बल्कि सिक्ख और हिन्दू मत की हार है. आखिर क्या कारण है कि युवा छोटे से लालच के कारण गुरुनानक, गुरु तेगबहादुर और गुरु गोबिंदसिंह के महान रास्तों का त्याग कर रहे हैं. क्या गुरुद्वारा और मंदिर समितियां समाज के युवा और गरीब-वंचित वर्ग का ध्यान नहीं रख पा रही हैं? क्या हम उन्हें अपने साथ जोड़े रखने में विफल हो गए हैं? हालांकि सुखद पहलू यह है कि गुरुद्वारा कमेटी अब सचेत हो गई है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी की अध्यक्ष बीबी जागीर कौर ने पंजाब में पैर पसारती ईसाइयत पर चिंता जताते हुए सिक्ख प्रचारकों की डेढ़ सौ टीमें बनाई हैं जो सिक्ख युवकों को अपना मत परिवर्तन नहीं करने के लिए समझाएंगे. इस अभियान को घर घर अंदर धर्मसाल नाम दिया गया है.

प्रचारकों की यह टीम सिक्ख युवकों के बीच जाकर गुरवाणी, सिक्ख इतिहास और धार्मिक रीतियों के बारे में बताएगी. लोगों को धार्मिक साहित्य का वितरण करेगी. निश्चित ही यह अच्छी पहल है. लेकिन बहुत देर से की गई पहल है. पंजाब में शहरों और कस्बों में चर्च और मिशनरी गतिविधियां जिस तेजी से पैर पसार रही थीं, क्या शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी और सिक्ख सियासत करने वाले लोगों को उनकी हरकतों के बारे में खबर नहीं रही होगी? बजिंदर जैसे लोगों के खिलाफ कई आपराधिक मामले लंबित होने के बावजूद उसको लगातार हीलिंग क्रूसेड जैसे मतांतरण करने वाले कार्यक्रमों की अनुमति कैसे मिलती रही है? आश्चर्य की बात है कि बजिंदर जैसे लोगों के कार्यक्रमों के पोस्टर में मुख्यमंत्री की तस्वीर भी छप रही है. ऐसा लगता है कि मतांतरण के खेल में पैसा और लालच ही नहीं, बल्कि सियासत का भी परोक्ष समर्थन है.

मतान्तरण का यह खेल सिर्फ पंजाब तक सीमित नहीं है. दक्षिण भारत के तमिलनाडु, केरल, और कर्नाटक में अवैध मतांतरण करवाने वाली मिशनरियां और गैर सरकारी संगठन युद्ध स्तर पर अपना काम कर रहे हैं. वहां के पिछड़े और गरीब वर्ग के लोगों को प्रलोभन के बल पर मतांतरित करवाया जा रहा है. हरियाणा, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश के लगभग पन्द्रह जिलों में मिशनरी अंधविश्वास के हथियार का प्रयोग करके लोगों को मतांतरित कर रहे हैं. राजस्थान के दक्षिणी जिलों में इनकी गतिविधियां राजनैतिक रूप लेने लगी हैं.

कितने अचरज की बात है कि मतांतरण के विरुद्ध भारत के नौ राज्यों अरुणाचल प्रदेश, ओडिसा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात हिमाचल प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश में कानून बने हैं, लेकिन इसके बाद भी इन प्रदेशों में मतांतरण जारी है. बड़ा सवाल हिन्दू समाज के धर्म गुरुओं, संस्थाओं और समाज से भी पूछा जाना चाहिए कि क्या कारण है कि उनके अपने बंधु मिशनरियों के आसान शिकार बन रहे हैं. क्या उन्हें अपने आश्रमों, मठों और मंदिरों से बाहर निकलकर समाज के सामने खड़ी इस ज्वलंत समस्या का सामना नहीं करना चाहिए? हमें याद रखना चाहिए कि आज का ईरान कभी पर्सिया हुआ करता था, जहां का पारसी समाज हंसता-खेलता था. उनकी अपनी एक समृद्ध संस्कृति और परंपराएं थीं. मगर आज उस पर्सिया की हालात क्या है? वह सौ  प्रतिशत मुस्लिम देश है. पारसी समाज के अवशेष भारत सहित कुछ अन्य देशों में रह गए हैं.

(लेखक युवा कहानीकार हैं)

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