डॉ. आनंद सिंह राणा
वीरांगना रानी दुर्गावती का सैन्य संगठन एवं युद्ध नीति
रानी दुर्गावती की युद्ध नीति और कूटनीति विलक्षण थी, जिसकी तुलना काकतीय वंश की वीरांगना रुद्रमा देवी को छोड़कर विश्व की अन्य किसी वीरांगना से नहीं की जा सकती है. युद्ध के 9 पारंपरिक युद्ध व्यूहों क्रमशः वज्र व्यूह, क्रौंच व्यूह, अर्धचन्द्र व्यूह, मंडल व्यूह, चक्रशकट व्यूह, मगर व्यूह, औरमी व्यूह, गरुड़ व्यूह, और श्रीन्गातका व्यूह से परिचित थीं. इनमें क्रौंच व्यूह और अर्द्धचंद्र व्यूह में सिद्धहस्त थीं. क्रौंच व्यूह रचना का प्रयोग, जब सेना ज्यादा होती थी तब किया जाता था. जिसमें क्रौंच पक्षी के आकार के व्यूह में पंखों में सेना और चोंच पर वीरांगना होती थीं और शेष अंगों पर प्रमुख सेनानायक होते थे. वहीं दूसरी ओर जब सेना छोटी हो और दुश्मन की सेना बड़ी हो, तब इस व्यूह रचना का प्रयोग किया जाता था, जिससे सेना एक साथ ज्यादा से ज्यादा जगह से दुश्मन पर मार सके. वीरांगना की रणनीति अकस्मात् आक्रमण करने की होती थी. रानी दुर्गावती दोनों हाथों से तीर और तलवार चलाने में निपुण थीं. गोंडवाना साम्राज्य की सत्ता संभालने के कुछ दिन बाद ही गढ़ों की संख्या 52 से बढ़कर 57 हो गई थी. वीरांगना ने एक बड़ी स्थायी और सुसज्जित सेना तैयार की, जिसमें 20 हजार अश्वारोही एक सहस्र हाथी और प्रचुर संख्या में पदाति थे. तत्कालीन भारत में गोंडवाना साम्राज्य प्रथम साम्राज्य था, जहां महिला सेना का भी दस्ता था और रानी दुर्गावती की बहन कमलावती और पुरागढ़ की राजकुमारी कमान संभालती थीं.
वीरांगना रानी दुर्गावती के शौर्य, साहस एवं पराक्रम के संबंध में प्रकाश डालते हुए तथाकथित छल समूह के इतिहासकारों ने कुल 4 युद्धों का टूटा-फूटा वर्णन कर इति श्री कर ली है. जबकि वीरांगना ने 16 युद्ध (छुटपुट युद्धों को छोड़कर) लड़े. 16 युद्धों में से 15 युद्धों में विजयी रहीं, जिसमें 12 युद्ध मुस्लिम शासकों से लड़े गये, उसमें से भी 6 मुगलों के विरुद्ध लड़े गये. पिता राजा कीरतसिंह के साथ मिलकर, हनुमान द्वार का युद्ध, गणेश द्वार का युद्ध, लाल दरवाजा का युद्ध.. बुद्ध भद्र दरवाजा का युद्ध (कालिंजर का किला अब कामता द्वार, पन्ना द्वार, रीवा द्वार हैं) लड़े, जिसमें विजयश्री प्राप्त की.
गोंडवाना की साम्राज्ञी के रुप में सत्ता संभालते ही मांडू के अय्याश शासक बाजबहादुर ने विधवा महिला जानकर गोंडवाना साम्राज्य पर दो बार आक्रमण किए, परंतु रानी दुर्गावती ने दोनों बार जमकर दुर्गति कर डाली और मांडू राजधानी तक खदेड़ा. बाजबहादुर जीवन भर शरणागत रहा. आगे मालवा के सूबेदार शुजात की कभी हिम्मत नहीं हुई. शेरखान (शेरशाह) कालिंजर अभियान में मारा गया. कुछ दिनों बाद मुगलों ने पानीपत के द्वितीय युद्ध के उपरांत पुनः सत्ता हथिया ली और अकबर शासक बना. शीघ्र ही येन केन प्रकारेण साम्राज्य विस्तार करना आरंभ कर दिया.
रानी दुर्गावती के गोंडवाना साम्राज्य की संपन्नता और समृद्धि की चर्चा कड़ा और मानिकपुर के सूबेदार आसफ खान ने मुगल दरबार में की. धूर्त, लंपट और चालाक अकबर ने लूट और विधवा रानी को कमजोर समझते हुए जबरदस्ती गोंडवाना साम्राज्य हथियाने के उद्देश्य से रानी को आत्मसमर्पण के लिए धमकाया, परंतु गोंडवाना की स्वाभिमानी और स्वातंत्र्यप्रिय वीरांगना रानी दुर्गावती नहीं मानी. अकबर का संदेश था कि स्त्रियों का काम रहंटा कातने का है, तो रानी ने संदेश के साथ एक सोने का पींजन भेजा और कहा कि आपका भी काम रुई धुनकने का है. अकबर तिलमिला गया और उसने आसफ खान को गोंडवाना साम्राज्य की लूट और उसके विनाश के लिए रवाना किया. इसके पूर्व अकबर ने दो गुप्तचरों क्रमशः गोप महापात्र और नरहरि महापात्र को भेजा, परंतु वीरांगना ने दोनों को अपनी ओर मिला लिया. उन्होंने अकबर की योजना और आसफ खाँ के आक्रमण के बारे में रानी दुर्गावती को सब कुछ बता दिया.
वीरांगना रानी दुर्गावती सतर्क हो गईं और सिंगौरगढ़ में मोर्चा बंदी कर ली. आसफ खान 6 हजार घुड़सवार सेना, 12 हजार पैदल सेना एवं तोपखाने तथा स्थानीय मुगल सरदारों के साथ सिंगोरगढ़ आ धमका. इधर रानी दुर्गावती के साथ, उनके पुत्र वीर नारायण सिंह, अधार सिंह, हाथी सेना के सेनापति अर्जुन सिंह बैस, कुंवर कल्याण सिंह बघेला, चक्रमाण कलचुरि, महारुख ब्राह्मण, वीर शम्स मियानी, मुबारक बिलूच, खान जहान डकीत, महिला दस्ता की कमान रानी दुर्गावती की बहन कमलावती और पुरा गढ़ की राजकुमारी (वीर नारायण की होने वाली पत्नी) संभाली. अविलंब युद्ध आरंभ हो गया. सिंगोरगढ़ का प्रथम युद्ध – आसफ खान ने आत्मसमर्पण के लिए कहा. वीरांगना ने कहा कि किसी शासक के नौकर से इस संदर्भ में बात नहीं की जाती है. वीरांगना ने भयंकरआक्रमण किया, मुगलों के पैर उखड़ गये, आसफ खान भाग निकला. सिंगौरगढ़ का द्वितीय युद्ध – पुन: मुगलों के वही हाल हुए. लेकिन मुगलों का तोपखाना पहुंच गया और रानी को खबर लग गयी. उन्होंने गढ़ा में मोर्चा जमाया और सिंगौरगढ़ छोड़ दिया. सिंगौरगढ़ का तृतीय युद्ध – मुगलों का तोपखाना भारी पड़ गया और सिंगौरगढ़ हाथ से निकल गया. चंडाल भाटा (अघोरी बब्बा) का युद्ध – यह चौथा युद्ध था, जिसका उद्देश्य मुगल सेना को पीछे हटाना था ताकि वीरांगना गढ़ा से बरेला के जंगलों की ओर निकल जाए. घमासान युद्ध हुआ और सेनानायक अर्जुन सिंह बैस ने आसफ खाँ को बहुत पीछे तक खदेड़ दिया. वीरांगना ने तोपखाने से निपटने के लिए एक शानदार रणनीति बनायी, जिसके अनुसार बरेला (नर्रई) के सकरे और घने जंगलों के मध्य मोर्चा जमाया ताकि तोपों की सीधी मार से बचा जा सके.
गौर नदी का युद्ध – वीरांगना रानी दुर्गावती के जीवन के 15वें और मुगलों से 5वें युद्ध में 22 जून 1564 को स्वतंत्रता, स्वाभिमान और शौर्य की देवी – वीरांगना रानी दुर्गावती ने, प्रात:सेनानायक अर्जुन सिंह बैस के बलिदान का समाचार मिलते ही “अर्द्धचंद्र व्यूह” बनाते हुए “गौर नदी के युद्ध” में आसफ खाँ सहित मुगलों की सेना पर भयंकर आक्रमण किया और पुल तोड़ दिया ताकि तोपखाना नर्रई (बरेला) न पहुँच सके. मुगल सेना तितर बितर हो गई. जिसको जहां रास्ता मिला भाग निकला..वीरांगना ने पुन: रात्रि में हमले की योजना बनाई, परंतु सरदारों की असहमति के कारण निर्णय बदलना पड़ा.. यहीं भारी चूक हो गई, यदि रात्रि में आक्रमण होता तो इतिहास कुछ और ही होता.. अंततः वीरांगना ने नर्रई की ओर कूच किया और युद्ध के लिए “क्रौंच व्यूह” रचना तैयार की..23 जून 1564 को नर्रई में प्रथम मुठभेड़ हुई, रानी और उनके सहयोगियों ने मुगलों की दुर्गति कर डाली. 23 जून की रात तक तोपखाना गौर नदी पार कर बरेला पहुंच गया. 23 जून की रात को घातक षड्यंत्र हुआ. आसफ खान ने रानी के एक छोटे सामंत बदन सिंह को घूस देकर मिला लिया.. उसने रानी की रणनीति का खुलासा कर दिया कि कल युद्ध में रानी मुगलों को घने जंगलों की ओर खींचेगी. जहाँ तोपखाना कारगर नहीं होगा और सब मारे जाएंगे. आसफ खान डर गया, उसने उपचार पूछा.. तब बदन सिंह ने बताया कि नर्रई नाला सूखा पड़ा है और उसके पास पहाड़ी सरोवर है. जिसे यदि तोड़ दिया जाए तो पानी भर जाएगा और रानी नाला पार नहीं कर पाएगी और तोपों की मार सीधा पड़ेगी. उधर रात में ही रानी को अनहोनी अंदेशा हुआ. उन्होंने सरदारों से रात में ही हमले का प्रस्ताव रखा पर सरदार नहीं माने.. यदि मान जाते तो इतिहास कुछ और होता..बहरहाल युद्ध की अंतिम घड़ी आ ही गयी.. वीरांगना ने “क्रौंच व्यूह” रचा.. सारस पक्षी के समान सेना जमाई गई.. चोंच भाग पर रानी दुर्गावती स्वयं और दाहिने पंख पर युवराज वीरनारायण और बाएं पंख पर अधारसिंह खड़े हुए.. 24 जून 1564 को प्रातः लगभग 10 बजे मोर्चा खुल गया.. घमासान युद्ध प्रारंभ हुआ.. पहले हल्ले में मुगलों के पांव उखड़ गए.. मुगलों ने 3 बार आक्रमण किये और तीनों बार गोंडों ने जमकर खदेड़ा… इसलिए मुगलों ने तोपखाना से मोर्चा खोल दिया.. रानी ने योजना अनुसार जंगलों की ओर बढ़ना शुरू किया, परंतु बदन सिंह की योजना अनुसार पहाड़ी सरोवर तोड़ दिया गया.. नर्रई में बाढ़ जैसी स्थिति बन गयी.. अब रानी घिर गयी.. इसी बीच अपरान्ह लगभग 3 बजे वीरनारायण के घायल होने की खबर आई.. वीरांगना जरा भी विचलित नहीं हुई.. आंख में तीर लगने के बाद भी युद्ध जारी रखा, .. मुगल सेना के बुरे हाल थे, परंतु रानी को एक तीर गर्दन पर लगा. रानी ने तीर तोड़ दिया.. परंतु रानी समझ गयी थी कि अब वो नहीं बचेंगी. इसलिए अब वो युद्ध के गोल में समा गयीं और भीषण युद्ध किया, जब उनको मूर्छा आने लगी तो उन्होंने अपनी कटार से प्राणोत्सर्ग किया.. वहीं सेनापति आधार सिंह के नेतृत्व में कल्याण सिंह बघेला और चक्रमाण कलचुरी ने युद्ध जारी रखा और वीरांगना के पवित्र शरीर को सुरक्षित किया तथा युवराज वीर नारायण सिंह को रणभूमि से सुरक्षित भेज कर अपनी पूर्णाहुति दी.
(विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग श्री जानकी रमण महाविद्यालय जबलपुर, व उपाध्यक्ष, इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत)