भोपाल में तीन दिन से एक शख्स सुर्खियों में है. सुर्खी की वजह कुछ बच्चियां हैं. जब बुरा वक्त आता है तो ऊंट पर बैठने वालों को भी श्वान काट जाता है. यह शख्स ऊंट की ही सवारी कर रहा था, लेकिन वक्त बुरा आया तो नीचे खबर दूसरी आई. इन दिनों बहुत सारे ऊंट सवारों की शामत आई हुई है. कानपुर, इंदौर और भोपाल तक कई ऊंट धराशायी हो रहे हैं. ये सारे ऊंट कभी शाही जलसों की रौनक हुआ करते थे. अपने आसपास इन्होंने जन्नत रची थी.
भोपाल के प्यारे मियां का नाम सियासत और मीडिया में एक पहचाना हुआ नाम है. हैंड कम्पोजिंग के दौर में दैनिक भास्कर में फोरमैन रहा यह शख्स आज 30 हजार का ईनामी भगोड़ा है, जिसने स्कूल की पढ़ाई भी पूरी नहीं की और एक अखबार का मालिक बनकर अपने जीते-जी जन्नत पैदा करने की तरफ कदम बढ़ाए. दैनिक अफकार नाम का ऊर्दू अखबार देवनागरी में छापा. अब प्रशासन के अफसर अफकार नाम के मैरिज गार्डन से लेकर जाने किस-किस वैध-अवैध प्रापर्टी का परिचय हर दिन दे रहे हैं. अचानक क्या हो गया? मियां साहब ने ऐसा क्या कर दिया, जो हार फूल पहनाने वाले और एक फोन पर अदब से पेश आने वाले हाथ बुलडोजर घुमा रहे हैं?
पर्दाफाश जैसा कुछ हुआ है. कुछ बच्चियां नशे में किसी पुलिस वाले के हाथ लगीं तो एक नई कहानी पैदा हो गई. 12-13 साल की बच्चियां फ्लैट या फार्म हाऊसों पर देर रात की दावतों में बुलाई जाती थीं. उन्हें शराब पिलाई जाती थी और इसके आगे वह सब जो हूरों के साथ हलाल है. अकेले भी हलाल है. सामूहिक रूप से भी हलाल है. लेकिन ये जन्नत की हूरें नहीं, गरीब बस्तियों की बच्चियां थीं. पैसों के लालच में लाई जाती थीं. वे मियां साहब को अब्बू कहकर पुकारती थीं. पता नहीं अब्बू का क्या अर्थ उन्हें पता होगा! मियां साहब का यह शौक हो सकता है, उनके करीबियों को ही पता रहा हो, लेकिन अब भोपाल से लेकर दिल्ली तक अब्बू चर्चा में हैं.
अब्बू के अखबार को खूब विज्ञापन मिलते ही रहे होंगे. अब्बू राज्य स्तरीय अधिमान्यता प्राप्त पत्रकार भी थे. अब्बू को सरकारी बंगला भी नसीब था. बावजूद इसके कि अब्बू के खुद के मकान, फ्लैट और फार्म हाऊस भी होंगे. अब्बू की उम्र 68 साल बताई गई है और साथ में यह भी कि 12-13 साल की लड़कियां अब्बू और अब्बू के दोस्तों की खास पसंद थीं. नाती-नातिन और पोते-पोतियां भी इनसे बड़े ही होंगे. और यह कोई एकाध लड़की का ऐसा केस नहीं है, जो अनजाने में हो गई भूल के खांचे में फिट कर दिया जाए. कई हैं, जो घिनौने सच से परदा उठा रही हैं.
फिल्में हराम हैं. शराब हराम है. लेकिन अब्बू के लिए सब हलाल है. इस माले गनीमत में टटपुंजिए अफसर और नेता भी हिस्सेदार रहे होंगे. बोटियों के हिस्सेदार. किसी रात किसी बच्ची के साथ बिताकर जब ये अगली सुबह उसी उम्र की अपनी बेटी या पोती को घर में देखते होंगे तो इनके दिमागों में क्या चलता होगा, यह उस भोली-भाली बेटी या पोती को कभी अहसास भी नहीं होता होगा. ये किस जमात के लोग हैं? क्या ये इंसान हैं?
सरकारें और उनके कारिंदे भी गजब हैं. पुलिस वाले मारे जाते हैं तो एक विकास दुबे अचानक दुर्दांत अपराधी के रूप में सामने आ जाता है, जो धरती पर बोझ है. हनीट्रेप में शिखर की तरफ उंगली उठाने वाले को हमेशा के लिए बरबाद करके छोड़ने लायक मसाले माय होम में मिल जाते हैं. दशकों से अपने हिस्से के सूटकेस और लिफाफे पाने वाले अचानक एक गुटखा कारोबारी को सदी का सबसे बड़ा टैक्स चोर मानकर टूट पड़ते हैं. दशकों से शराब में वारे-न्यारे करने-कराने वाला एक कारोबारी अचानक सैनेटाइजर जैसे टुच्चे और दो महीने के गुमटी कारोबार में जेल की हवा खाने भेज दिया जाता है. यह सबकी मिलीभगत की ऐसी अंधेरी दुनिया है, जहां सौजन्य से सब खुश रहते हैं. हां, कभी कोई बच्ची, गुटखे या सिगरेट का पैकेट, कोई हार्ड डिस्क सितारों को गर्दिश में ले आती है! भोपाल के प्यारे अब्बा इस अंधेरी दुनिया से सामने आया सबसे ताजा चेहरा है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं एवं वर्तमान में मध्यप्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त के पद पर कार्यरत हैं)