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क्वाड और वैश्विक राजनीति

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सुखदेव वशिष्ठ

अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत – इन चारों देशों के सत्ताशीर्ष की 12 मार्च को हुई वर्चुअल बैठक को दुनिया के राजनयिक क्षेत्र में एक गंभीर परिघटना के रूप में दर्ज किया गया है. क्वाड नाम से चर्चित इस गठबंधन को चीन विरोधी व्यापक गोलबंदी की धुरी माना जा रहा है. एक अनौपचारिक रणनीतिक मंच के रूप में यह 2007 से कायम है, लेकिन इसकी शिखर बैठक पहली बार ही आयोजित हुई है और यही क्वाड की वास्तविक प्राण प्रतिष्ठा है.

पृष्ठभूमि

स्वतंत्रता के बाद से ही भारत वैश्विक प्रणाली में बड़े बदलाव का समर्थक रहा है, परंतु लंबे समय तक भारत की अपेक्षाओं और वैश्विक राजनीति पर इसके प्रभाव में एक बड़ा अंतर रहा. भारत अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ आदर्शवादी नीति का समर्थक रहा, परंतु शीत युद्ध ने शीघ्र ही इसे समाप्त कर दिया.

वर्ष 1970 के दशक में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non Aligned Movement-NAM) के नेता के रूप में भारत द्वारा ‘नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था’ के विचार को अपनाया गया, जिसके परिणाम बहुत ही सीमित रहे. शीत युद्ध के बाद भारत के दृष्टिकोण में एक बार पुनः बदलाव देखने को मिला, सोवियत संघ के विघटन के बाद एक ध्रुवीय व्यवस्था, भूमंडलीकरण के पक्ष में वाशिंगटन सहमति (Washington Consensus) का उदय हुआ. इसी दौरान भारत की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट हुई, जिसके बाद भारत ने राजनीतिक महत्त्वकांक्षाओं को पीछे छोड़ आर्थिक सुधार और अपने आंतरिक मुद्दों में अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप को कम करने पर ध्यान देने को अधिक प्राथमिकता दी.

हालांकि, उस समय विकास की गति में वृद्धि के लिये पश्चिमी देशों के साथ सहयोग बढ़ाया जाना आवश्यक था, परंतु परमाणु कार्यक्रम और कश्मीर मुद्दे पर अमेरिकी विरोध के भय से भारत ने अमेरिका को नियंत्रित करने और एक बहु-ध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था की. जिसके बाद ब्रिक्स (BRICS) समूह का गठन हुआ.

अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के कार्यकाल के दौरान जहां कश्मीर और परमाणु मुद्दे पर अमेरिका के रुख में बदलाव देखने को मिला, वहीं ये दोनों मुद्दे भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव का प्रमुख कारण बन गए.

भारत को यह भी पता चल गया है कि चीन पर नियंत्रण करना ब्रिक्स समूह के लिये असंभव है. ऐसे में जैसे-जैसे भारत एक बहु-ध्रुवीय एशिया की स्थापना पर अपना ध्यान मज़बूत कर रहा है, वैसे ही एशिया में एक स्थिर शक्ति संतुलन स्थापित करने में क्वाड की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है.

कैसे हुआ गठन

विशेषज्ञों के अनुसार, सूनामी तूफान के दौरान अमेरिका, भारत व कुछ अन्य देशों ने संयुक्त रूप से राहत कार्य शुरू किया था. इसकी पूरी दुनिया ने प्रशंसा की. सोमालिया के समुद्री लुटेरों के खिलाफ जब ऑपरेशन शुरू हुए तब भी अमेरिका व भारत सहित कुछ अन्य देश उसमें शामिल हुए. इसके बाद इन देशों को लगा कि वे मिलकर काम कर सकते हैं.

चीन ने इस बैठक को लेकर खुलकर अपनी आशंकाएं जाहिर कीं. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बैठक से ठीक पहले इस विषय में कहा कि विभिन्न देशों के बीच विचार-विमर्श और सहयोग की प्रक्रिया चलती रहती है, लेकिन इसका मकसद आपसी विश्वास और समझदारी बढ़ाने का होना चाहिए, किसी तीसरे पक्ष को निशाना बनाने या उसके हितों को नुकसान पहुंचाने का नहीं.

जाहिर है, चीन को यह कहने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि सीमावर्ती क्षेत्रों में उसके आक्रामक रुख से ये सभी देश किसी न किसी स्तर पर आहत या आशंकित महसूस करते रहे हैं.

लेकिन ध्यान देने की बात है कि चीन के बयान की यहां अनदेखी नहीं की गई. क्वाड शिखर बैठक में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि उसको किसी खास देश के खिलाफ न माना जाए. बातचीत का एजेंडा कोविड वैक्सीन, क्लाइमेट चेंज और नई तकनीकों से संभावित बदलाव जैसे मुद्दों पर ही केंद्रित रखा गया. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में ‘क्वाड’ विकसित हो चुका है और यह अब क्षेत्र में स्थिरता का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बना रहेगा. साझा मूल्यों को आगे बढ़ाने और सुरक्षित, स्थिर, समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए पहले से कहीं अधिक साथ मिलकर, निकटता से काम करेंगे. मैं इस सकारात्मक दृष्टिकोण को भारत के वसुधैव कुटुंबकम के दर्शन के विस्तार के तौर पर देखता हूं, जो पूरी दुनिया को एक परिवार मानता है.” क्वाड देशों ने इस शिखर बैठक के जरिए अभी सिर्फ एक संभावना की ओर संकेत किया है.

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