प्रत्येक राष्ट्र के अपने कुछ आदर्श होते हैं. उन सभी आदर्शों को किसी एक आदर्श में समाहित करके देखना सरल कार्य नहीं है. भारत और भगवान राम दोनों ही उक्त विषय में एक दूसरे के पूरक हैं क्योंकि राम भारत में अवतरित हुए. वह ध्रुव तारा हैं, जिन्हें सभी महापुरुषों में देखा जा सकता है. राम में बुद्ध सी सरलता है, महावीर सा संयम, मीरा सा समर्पण है, कबीर सा वैराग्य, गुरुनानक सा ज्ञान है, कृष्ण सी लीला, राम श्रवण से आज्ञाकारी हैं, गुरु गोविन्द सिंह जैसे बलिदानी, व्यास जैसे धर्मवान और शिव जैसे सात्विक व निर्मोही भी.
ऐसा कोई महान व्यक्तित्व नहीं, जिसे राम में नहीं देखा जा सकता. इसलिए राम सम्पूर्ण भारतवासियों की आस्था के निर्विवाद केन्द्र हैं. राम भारत की आस्था हैं, सहजता हैं, सरलता हैं. युगों से विश्व विख्यात भारतीय संस्कृति जिन गुणों से जानी गयी है, उन गुणों का मूर्त रूप श्री राम हैं. त्याग की बात पर आप किसे ध्यान करते हैं? आज्ञाकारिता, मित्रता, विश्वास, वीरता और सरलता के लिए आप किसे याद करते हैं? इस पुण्यभूमि पर कोई ऐसा वर्ग अथवा समुदाय नहीं, जिसके मतों का राम को मानने वाली संस्कृति सभ्यता से मतभेद हो सके. राम की सभ्यता इतनी विराट और इतनी सह्रदय है कि संसार के प्रत्येक मत, पन्थ और समुदाय को इसमें समाहित किया जा सकता है.
दुनिया जब महिलाओं के मताधिकार और आजादी पर विमर्श कर रही थी, उस से भी हजारों वर्ष पूर्व सीता के नाम के आगे महारानी सीता विशेषण लगा हुआ था. इतना ही नहीं चक्रवर्ती सम्राट राजा राम के सिंहासन पर महारानी सीता स्वयं विराजमान होती थीं. संसार की कोई ऐसी सभ्यता, कोई ऐसी विरासत नहीं जिसमें नारी का वह आदर और सम्मान प्रस्तुत किया हो जो राम राज्य ने प्रस्तुत किया है.
सदियों के लंबे संघर्ष के बाद भगवान राम अयोध्या में जन्मस्थान पर विराजमान होने वाले हैं, जिससे प्रत्येक भारतवासी के मन में उत्साह और उमंग है. इस राष्ट्र के लिए राम का जो महत्व है, उसको किसी भी शब्द श्रृंखला में वर्णित नहीं किया जा सकता. यह भारतीय जनमानस की अखंड विजय का प्रतीक है. राम भारतीय स्वाभिमान, भारतीय संस्कृति के ऐसे अक्षुण्ण और अभिन्न अंग हैं, जिसके बिना भारत की कल्पना सदैव अधूरी है. राम का अयोध्या में पुनर्स्थापन, राम मंदिर का भव्य निर्माण यह कोई उत्सव मात्र तक सिमट जाने वाला विषय नहीं है. अपितु युगों-युगों के लिए निर्मित होने वाला वह सौभाग्यशाली क्षण है, जिससे भारतीयों की गरिमा सदैव के लिए अमर हो जाएगी.
राम को पुन: पाने की यह यात्रा बहुत संघर्ष और बलिदानों से भरी हुयी है. जिस धैर्य, साहस और सरलता का परिचय राम भक्तों ने दिया है, उसके प्रेरणा स्रोत स्वयं भगवान श्री राम ही हैं. राम की आत्मीयता महलों तक सीमित नहीं है, वह आदिवासी, वनवासी और गिरिवासियों तक पहुंची है. निषादराज राम के परम मित्र हैं, जामवंत राम को अति प्रिय हैं, गिरिवासी सुग्रीव उनके मंत्री हैं और स्वयं वानरराज हनुमान उनके परम प्रिय हैं. लोक मर्यादा के आदर्श प्रभु श्री राम का पतिधर्म भी सती माता अनसुइया से कम नहीं है. चक्रवर्ती सम्राट राजा राम महलों में वनवासी सा जीवन व्यतीत करते हैं, भूमिशयन करते हैं.
भगवान श्री राम ने जिस सर्वस्पर्शी व्यक्तित्व का परिचय दिया है, वैसा दूसरा उदाहरण खोजना मुश्किल है. राम निषादराज के पास उसी सहजता से पेश आते हैं जैसा कि किष्किन्धा नरेश सुग्रीव से. राम की यही सम दृष्टि आज मानवीय सभ्यता के लिए आदर्श प्रस्तुत करती है. शबरी हो अथवा दशरथ नरेश की प्रिय रानी कैकयी, महिलाओं के प्रति राम का सम्मान भी अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है. राम मंदिर का पुर्स्थापन केवल मंदिर की स्थपना नहीं, बल्कि सर्व समाज के लिए उन्हीं मानवीय मूल्यों का मूर्त रूप और आदर्श प्रतीक है, जिसे भगवान श्री राम ने अपने जीवन से प्रस्तुत किया है.
लोक मंगल का यह क्षण विश्व समुदाय के लिए संदेश है कि हिंसा, लोभ और स्वयं की सिद्धि ही किसी शासन का अंतिम उद्देश्य नहीं है.
वरुण सोनी