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रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम पर रोक, पर इफ्तार की अनुमति

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प्रभु श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा (नवनिर्मित श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में) के अवसर पर दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में कोई कार्यक्रम नहीं होने दिया गया था, लेकिन उसी परिसर में इफ्तार पार्टी हो गई.

बिहार का दरभंगा हमेशा विवादों में रहता है. कभी आतंकवाद के दरभंगा मॉडल को लेकर, तो कभी बम विस्फोट को लेकर. अब दरभंगा का मेडिकल कॉलेज भी इस कड़ी में जुड़ गया है. दरभंगा में एम्स को लेकर खासा बवाल हुआ था. डीएमसीएच को ही एम्स बना दिया जाए इसकी भी चर्चा थी, लेकिन अब वह मामला शांत भी नहीं हो पाया था कि एक दूसरा विवाद सामने आ गया है.

22 जनवरी को सम्पूर्ण समाज राम मंदिर निर्माण को लेकर उत्सव मना रहा था. इस अवसर पर दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के विद्यार्थी काफ़ी उत्साहित थे. कॉलेज के प्रशासनिक भवन के समीप कुछ विद्यार्थी रंगोली बना कर दीप जलाने की तैयारी कर रहे थे. यह बात जब प्राचार्य डॉ. के एन मिश्र को पता चली तो उन्होंने रंगोली को झाड़ू से साफ करवा दिया और उत्साही युवकों को दीप जलाने से रोक दिया. लेकिन उसी महाविद्यालय में जब 31 मार्च को इफ्तार पार्टी का आयोजन हुआ तो उन्होंने अपनी आंखें बंद कर लीं. आश्चर्य की बात यह है कि इस इफ्तार पार्टी का आयोजन स्थल महिला छात्रावास के सामने था, जबकि दरभंगा लव जिहाद की घटनाओं के लिए भी कुख्यात है.

विवादों से पुराना नाता

डीएमसीएच का विवादों से पुराना नाता रहा है. वैसे तो इस महाविद्यालय की स्थापना दरभंगा के पूर्व महाराजा रामेश्वर सिंह ने 1925 ई में ‘मेडिकल अध्ययन के मंदिर’ (टेम्पल ऑफ़ मेडिकल लर्निंग) के तौर पर की थी. महाराजा ने इसे 1946 ई में राज्य सरकार को सौंप दिया. इस काम के लिए ब्रिटिश सरकार को महाराजा ने 25 हज़ार रुपये भी दिए थे. इसके अतिरिक्त तत्कालीन महाराज ने मेडिकल कॉलेज के लिए 300 एकड़ जमीन दान में दी थी. लेकिन 2022 में दरभंगा के सांसद गोपाल जी ठाकुर ने जब ड्रोन से परिसर की मैपिंग करवाई तो 300 एकड़ के स्थान पर 227 एकड़ जमीन ही मिली. यानी 73 एकड़ जमीन गायब हो गई. उस समय दरभंगा में एम्स के निर्माण को लेकर काफ़ी बवाल मचा था. गोपाल जी का मानना था कि 200 एकड़ में एम्स बने और 100 एकड़ में डीएमसीएच का परिसर बना रहे. लेकिन यहाँ तो जमीन ही गायब थी. केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2016 में ही कैबिनेट से दरभंगा में एम्स के निर्माण को स्वीकृति मिल चुकी थी. काफ़ी हो-हल्ले के बाद यह मामला सुलझ गया.

यहाँ विवादों की लम्बी सूची है. कभी यह महाविद्यालय सूअरों से तो कभी चूहों को लेकर चर्चा में रहता है. कुछ वर्ष पूर्व यहाँ एक ऐसे चिकित्सक की नियुक्ति कर दी गई, जो 11 माह पूर्व ही मर चुकी थीं. उनका नाम था डॉ. शिवांगी.

परिसर में अवैध निर्माण

महाविद्यालय में अवैध निर्माण को लेकर भी झड़प होती रहती है. यहाँ के एक पूर्ववर्ती छात्र थे निर्मल सिंह. कम्युनिस्ट पार्टी के छात्र संगठन एसएफआई से जुड़े थे. इनकी हत्या वर्ष 1975 में हो गई. आरा के रहने वाले निर्मल सिंह नक्सली विचारधारा से प्रभावित थे. वर्षों बीत जाने के बाद उस विचारधारा के लोगों को निर्मल सिंह की याद आई. ऐसा आरोप है कि एल्युमनी एसोसिएशन को आगे कर वर्ष 2013 में उनकी मूर्ति अवैध तरीके से परिसर में लगाई गई. बिहार विधान परिषद में यह मामला उठा. विधान पार्षद हरेंद्र प्रताप पाण्डेय ने तत्काल संज्ञान लेने को कहा. प्रशासन सक्रिय हुआ और निर्मल सिंह की प्रतिमा वहां से हटाई जा सकी.

इसी प्रकार का एक दूसरा मामला अवैध मस्जिद के निर्माण को लेकर भी बताया जा रहा है.

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