मैं रहूं या न रहूं, भारत ये रहना चाहिए
उदयपुर. जिस उम्र में किशोर-किशोरियों का ध्यान पढ़ाई पर होता है, अपने कैरियर की तरफ होता है, सोचिये उस उम्र में मणिकर्णिका के कंधों पर एक साम्राज्य का भार आया और वह भी उन परिस्थितियों में जब देश में औपनिवेशिक शासन येन-केन-प्रकारेण अपनी सीमाएं बढ़ा रहा था. तब बालपन की मणिकर्णिका ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के रूप में देश रक्षा का दायित्व उठाया और औपनिवेशिक शासन के सामने डटकर खड़ी हो गई.
साध्वी भुवनेश्वरी देवी जी शनिवार शाम को राष्ट्र सेविका समिति उदयपुर की ओर से रानी लक्ष्मीबाई जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में संबोधित कर रही थीं. हिरण मगरी सेक्टर-4 स्थित विद्या निकेतन स्कूल के वैद्य भागीरथ सभागार में आयोजित कार्यक्रम में साध्वी जी ने कहा कि मणिकर्णिका रानी लक्ष्मीबाई के रूप में कठोर दायित्व इसलिए निभा सकीं क्योंकि उन्हें बचपन से ही राष्ट्ररक्षा के संस्कारों का वातावरण मिला. कार्यक्रम में उपस्थित माताओं से अपनी पुत्रियों में भी राष्ट्रहित के प्रति डटकर खड़े रहने के संस्कारों के संचरण का आह्वान किया.
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता पूर्व कुलपति डॉ. परमेन्द्र दशोरा ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन प्रसंगों पर प्रकाश डाला और बेटियों को उनके जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान किया. कार्यक्रम में ‘मणिकर्णिका: मां भारती की कालजयी पुत्री’ नाटिका का मंचन भी किया गया, जिसमें कलाकारों ने मणिकर्णिका के बचपन और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के रूप में पीठ पर शिशु को बांधे अंग्रेजों को ललकारने, युद्ध के दृश्य और प्राणोत्सर्ग के दृश्य को जीवंत कर दिया. लघु नाटिका के मंचन के भारत माता के जयकारों से सभागार को गूंज उठा.