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वक्फ अधिनियम के विरोध के नाम पर हिंसा व उपद्रव हेतु उकसाने से बाज आएं – विश्व हिन्दू परिषद

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नई दिल्ली। वक़्फ़ संशोधन अधिनियम पारित होने के बाद से ही कुछ कट्टरपंथी नेता व संगठन देश के मुसलमानों को भड़काने, बरगलाने व हिंसा के लिए उकसाने में सक्रिय हैं। झूठ फैलाकर दुष्प्रचार करने वाली इस गैंग में अब कुछ कथित मुस्लिम बुद्धिजीवी भी कूद पड़े हैं, जिन्होंने हाल ही में एक पत्र लिखा है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए विश्व हिन्दू परिषद के अखिल भारतीय प्रचार प्रसार प्रमुख विजय शंकर तिवारी ने कहा कि यह पत्र मिथ्या प्रचार कर मुस्लिम समाज को हिंसा व देश विरोध के लिए प्रेरित करने के साथ संसदीय व्यवस्था तथा संविधान का सीधा-सीधा उल्लंघन है। इस पत्र के माध्यम से उनके मंसूबों की भी कलई खुल गई है जो सपना कभी कट्टरपंथी नेता सैयद शहाबुद्दीन ने भी देखा था।

पत्र में अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा की तो बात की है, किंतु उसमें नाम सिर्फ मुसलमानों का लिया है। इसमें ‘मुस्लिम समाज का गला घोंटने’ और ‘मुसलमानों के गरिमापूर्ण अस्तित्व के लिए संघर्ष’ करने के लिए उकसाने की बात की है। पत्र में ‘मुसलमानों की सामूहिक आवाज़ को बुलंद’ कर संसद के अंदर व बाहर प्रदर्शन व संसद के बहिष्कार की अपील भी की है, जिससे ‘देश विदेश के मीडिया का रणनीतिक रूप से ध्यान आकृष्ट किया जा सके।’

विजय शंकर तिवारी ने कहा कि कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि पत्र के हस्ताक्षरकर्ता सिर्फ कट्टरपंथी मुस्लिम नेता या जिहादी संगठन नहीं अपितु, उनके साथ भारत के संविधान में पंथ निरपेक्षता की शपथ खा कर विधायक, सांसद, आईएएस, आईपीएस, सैन्य अधिकारी, अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन, विश्व विद्यालयों के कुलपति, वक्फ बोर्ड के अधिकारी, वरिष्ठ अधिवक्ता व पत्रकार भी शमिल हैं। इन सब के लिए देश से बड़ा मजहब है, जिसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।

विहिप ने कहा कि मजहबी आधार पर भारत के एक और विभाजन इनका दिवास्वप्न तो कभी पूरा नहीं होगा, किंतु इनके भड़कावे के परिणाम स्वरूप देश भर में यदि कुछ उपद्रव हुआ तो उसकी जिम्मेदारी इन सभी हस्ताक्षरकर्ताओं को लेनी होगी और सम्पूर्ण देश के समक्ष अपराधी के रूप में खड़े होंगे।

यह स्मरण रखना चाहिए कि इन कथित मुसलमानों के अलावा देश के सभी अल्पसंख्यक नए कानून से प्रसन्न हैं क्योंकि अधिकांश लोग वक्फ बोर्ड व उसके अवैध कब्जाधारियों के आतंक से त्रस्त हैं।

भारत एक संप्रभु, पंथ निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसकी मूल आत्मा संविधान है। किसी भी संगठन द्वारा यह कहना या संकेत देना कि उनके लिए मज़हबी क़ानून संविधान से ऊपर है, न केवल भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरा है, बल्कि यह लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था का भी अपमान है।

विहिप ने कहा कि हम केंद्र सरकार और न्यायपालिका से अपेक्षा करते हैं कि इस पत्र प्रकरण को गंभीरता से लिया जाए क्योंकि इसी मानसिकता ने पहले ही भारत का विभाजन कराया था। संविधान से ऊपर मज़हब को रखने वाली सोच देश की आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक समरसता के लिए भी घातक हो सकती है।

संविधान सर्वोपरि है, और किसी भी मज़हबी या जातिगत संगठन को संविधान की मर्यादा को लांघने की छूट नहीं मिलनी चाहिए।

 

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