गुवाहाटी. गुवाहाटी प्रेस क्लब में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में जनजाति धर्म संस्कृति-सुरक्षा मंच के बिनुद कुंबांग, सह संयोजक जनजाति धर्म संस्कृति सुरक्षा मंच, असम प्रांत; मोंटूराम कोहराम- संयोजक, जनजाति धर्म संस्कृति सुरक्षा मंच, असम प्रांत; दीपक बासुमतारी-युबा प्रमुख, जनजाति धर्म संस्कृति सुरक्षा मंच, असम प्रांत ने कहा कि धर्मांतरण हमारे देश में एक ज्वलंत मुद्दा है और इस धर्मांतरण का सबसे पहला शिकार हमारे समाज के गरीब अनुसूचित जनजाति होते हैं. उनकी गरीबी का लाभ उठाकर विभिन्न प्रकार के प्रलोभनों के साथ धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया उनकी जातीय भाषा, धर्म और संस्कृति के अस्तित्व के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करती है.
उन्होंने कहा कि धर्म परिवर्तन का अर्थ संस्कृति में परिवर्तन है. धर्म और संस्कृति के बिना एक राष्ट्र को कभी भी एक पूर्ण राष्ट्र के रूप में पहचाना या माना नहीं जा सकता है. धर्म परिवर्तन करते ही व्यक्ति ने सबसे पहले धार्मिक परंपराओं को बदला और धीरे-धीरे पूर्व के पारंपरिक रीति-रिवाजों को बदल दिया, जैसे शादी और मौत के समय किए जाने वाले अनुष्ठान, और अंत में सब कुछ त्याग दिया. यदि यह रूपांतरण प्रक्रिया इसी तरह जारी रही तो असम की जनजातियां जैसे बोडो, तिवा, कार्बी, दिमासा, गारो, राभा, मिसिंग आदि जल्द ही अपनी मूल (मूल) भाषा, धर्म, संस्कृति और पारंपरिक रीति-रिवाजों को खो देंगी.
मंच के पदाधिकारियों ने कहा कि अपनी भाषा, धर्म, संस्कृति, पारंपरिक रीति-रिवाज व जाति की पहचान के प्रमुख तत्व हैं. धर्म बदलने का मतलब संस्कृति में बदलाव है. अगर धर्म खो जाता है, तो संस्कृति खो जाती है. धर्म संस्कृति के बिना एक जाति नहीं हो सकती है. जैसे ही धर्म बदलता है, संस्कृति बदल जाती है. एक जाति की अपनी भाषा, धर्म, संस्कृति और परंपरा को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है.
अनुसूचित जनजातियों की स्वदेशी भाषाओं, धर्मों, संस्कृति और पारंपरिक रीति-रिवाजों को संवैधानिक रूप से संरक्षित के संविधान में संशोधन करने की मांग को लेकर 12 फरवरी को 10 बजे गुवाहाटी के खानापाड़ा खेल मैदान में चलो दिसपुर नामक एक विशाल जनजाति जन रैली का आयोजन किया गया है. उस रैली में असम के प्रत्येक जिले से लगभग एक लाख अनुसूचित जाति लोग परंपरागत परिधान में शामिल होकर संविधान की धारा 342 में संशोधन करने के लिए ज्ञापन पत्र पर हस्ताक्षर कर राष्ट्रपति को प्रेषित करेंगे.